
बिजनेस डेस्क। मुंबई-अहमदाबाद रूट पर बुलेट ट्रेन चलाने के पीएम मोदी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए टेंडरों की शर्तों में अचानक बदलाव कर दिया गया है। इससे प्रोजेक्ट पर काम करने की इच्छुक कंपनियां सकते में हैं। प्रोजेक्ट से जुड़े सूत्रों के मुताबिक नेशनल हाई-स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NHSRCL) ने हाल ही में फास्ट-ट्रैक रेलवे परियोजनाओं के टेंडर बुलाए थे। इस स्पेशल प्रोजेक्ट को तीन पैकेज C1, C2 और C3 के तहत किया जा रहा है। लेकिन C2 पैकेज की शर्तों में अचानक बदलाव कर दिया गया है। इससे अनुभवी कंपनियां टेंडर के लिए अपात्र हो जाएंगी।
पहले नहीं था चौथी शर्त का उल्लेख
प्रोजेक्ट से जुड़े सूत्रों के मुताबिक C1 पैकेज के लिए जब बोली लगी थीं, उस दौरान चौथी शर्त का उल्लेख नहीं थी, लेकिन C2 की बिडिंग के दौरान NHSRCL ने कंपनियों के लिए जारी शर्तों में अचानक से नया संशोधन जोड़ दिया। पहले की शर्तों के मुताबिक बोली लगाने वाली कंपनी तीन साल पहले तक दिवालिया नहीं घोषित की गई हो। इसके अलावा बोली में शामिल होने वाली कंपनी ने पिछले तीन साल में न तो कोई डेब्ट रीस्ट्रक्चरिंग (ऋण पुनर्गठन) की हो और न किसी तरह के लोन का आवेदन किया हो। यदि कंपनी ने तीन वर्ष के अंतराल में कोई कर्ज लिया है तो उसे एक ट्रस्ट एंड रिटेंशन अकाउंट खोलना होगा और सब कॉन्ट्रैक्टर, एडवाइजर, सेलर और सप्लायर की लिस्ट देनी होगी। बैंक कॉन्ट्रैक्टर के कहने पर लिस्ट में शामिल लोगों को पेमेंट करेगा, लेकिन जिस प्रोजेक्ट के लिए लोन लिया गया है, उसके अलावा किसी और उद्देश्य के लिए पेमेंट करने की अनुमित नहीं होगी।
नए संशोधन में ये पेंच
C1 पैकेज टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इस टेंडर को लेने वाले जॉइंट वेंचर ने सबसे कम बोली लगाकर NHSRCL को 600 करोड़ रुपए तक का लाभ दिया। लेकिन, पिछले दिनों C2 पैकेज की शर्तों में चौथा संशोधन जारी कर दिया गया। इसमें कहा गया है कि लोन रीस्क्ट्रक्चिरंग कराने वाले बोलीदाताओं के लिए ट्रस्ट एंड रिटेंशन अकाउंट अब लागू नहीं होगा। यानी, जो कंपनियां लोन रीस्ट्रक्चरिंग करवा चुके हैं या जिनके लोन आवेदन प्रक्रिया में हैं, वे बोली नहीं लगा सकेंगी। ऐसी स्थिति में कई कंपनियां बोली में भाग लेने से पूरी तरह से बाहर हो जाएंगी।
कंपनियां बाहर होने से क्या नुकसान
जानकारों का कहना है कि ज्यादातर कंपनियों के बाहर होने से यह टेंडर चंद कंपनियों तक सिमट जाएगा। ऐसी स्थिति में वे टेंडर में मनमानी बोली लगाएंगे और मनमानी लागत पर कॉन्ट्रैक्ट लेंगे, क्योंकि कंपनियों के लिए कॉम्पिटिशन कम हो जाएगा।