
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने नागपुर के रेशम बाग में बुधवार को दशहरा समारोह मनाया। RSS प्रमुख मोहन भागवत ने शस्त्र की पूजा की। इस दौरान पहली बार महिला मुख्य अतिथि संतोष यादव मौजूद रहीं। बता दें कि वह दो बार माउंट ऐवरेस्ट फतह करने वालीं अकेली महिला हैं। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद रहे।
‘शक्ति ही शुभ और शांति का आधार है’
स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि शक्ति ही शुभ और शांति का आधार है। मोहन भागवत ने नारियों की स्थिति पर अपने संबोधन में कहा कि हम उन्हें जगतजननी मानते हैं। लेकिन, उन्हें पूजाघर में बंद कर देते हैं ये ठीक नहीं है। मातृशक्ति के जागरण का कार्यक्रम अपने परिवार से प्रारंभ करना होगा, फैसला लेने में महिलाओं को भी साबित करना होगा।

मोहन भागवत ने जनसंख्या असंतुलन का किया जिक्र
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में एक बार फिर पॉपुलेशन, मंदिर, जातिवाद जैसे मुद्दों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बढ़ती हुई आबादी में हम धार्मिक असंतुलन को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।
मोहन भागवत ने कहा कि जनसंख्या जितनी अधिक होगी बोझ उतना ही ज्यादा होगा। हमको यह देखना होगा कि हमारा देश 50 साल के बाद कितने लोगों को खिला और झेल सकता है। एक और दृष्टिकोण है जिसमें जनसंख्या को एक संपत्ति माना जाता है। हमें दोनों पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सभी के लिए जनसंख्या नीति पर काम करने की जरूरत है।
‘विश्व में बढ़ा भारत का सम्मान’
मोहन भागवत ने कहा कि आज विश्व में भारत का सम्मान बढ़ा है। जिस तरीके से भारत ने श्रीलंका की मदद की, रूस और युक्रेन के युद्ध में अपना हित रखा। इन्हें देखते हुए हमारा सम्मान बड़ा है। दुनिया में हमारे देश की बात सुनी जा रही है। राष्ट्र सुरक्षा के मामले में भारत स्वावलंबी हो रहा है। कोरोना से बाहर आने के बाद अर्थव्यवस्था पूर्व स्थिति में आ रही है। खेल के क्षेत्र में भी खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
‘दुश्मनी बढ़ाने वालों के बहकावे में न आएं’
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियां और दुश्मनी बनाने का काम स्वतन्त्र भारत में भी चल रहा है। ऐसे लोग अपने स्वार्थों के लिए हमारे हमदर्द बनकर आते हैं, उनके चंगुल में फंसना नहीं है। उन्होंने कहा, ऐसे लोगों के बहकावे में न फंसते हुए, उनकी भाषा, पंथ, प्रांत, नीति कोई भी हो उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए।