
भोपाल। दो दिवसीय 10वें मप्र राज्य न्यायिक अधिकारी सम्मेलन के अंतिम दिन रविवार को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अभय एस ओक ने न्यायाधीशों से कहा कि सोशल मीडिया को इगनोर करें। यह आप को परेशान और प्रभावित कर सकता है, लेकिन इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। आपको अपने काम पर फोकस करना है। ये जजमेंटिव प्लेटफार्म नहीं हो सकता है। वे आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस और सोशल मीडिया का न्यायपालिका पर प्रभाव विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म का उपयोग आप निजी तौर पर कर सकते हैं, लेकिन प्रोफेशनल तौर पर इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसकी विश्वसनीयता नहीं है। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ ने कहा कि एआई न्यायिक सेवाओं की दक्षता में सुधार करने का एक उपकरण है, न कि निर्णय लेने का। सम्मेलन में सुप्रीम, हाईकोर्ट सहित जिला न्यायालय के लगभग 1500 न्यायाधीश उपस्थित थे।
जिला न्यायालय में सबसे ज्यादा मामले निपटते हैं: आर्य
न्यायाधीश ओक ने कहा कि सोशल मीडिया का उपयोग विधि का ज्ञान बढ़ाने, स्वास्थ्य और अन्य जानकारियां लेने के लिए किया जा सकता है। इसमें विभिन्न घटनाओं और विभिन्न इश्यू पर कमेंट और प्रतिक्रिया देने से न्यायाधीश बचें। उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश के न्यायमूर्ति रोहित आर्य ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में आठ से दस फीसदी मामले आते हैं, वहीं हाईकोर्ट में करीब दस से 15 फीसदी तक पहुंचते हैं, जबकि 80 से 85 फीसदी मामले जिला न्यायालय में निराकृत होते हैं। इसलिए जिला न्यायालय सबसे बड़ी अदालत मानी जाती है।
एआई सपोर्ट दे सकता है न्याय आपको ही करना है : मलिमठ
मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का रोल आप को सपोर्ट करने के लिए हो सकता है, लेकिन इसके जरिए आप जजमेंट नहीं कर सकते हैं। जजमेंट आप को ही करना होगा। ये कार्यक्रम न्यायाधीशों के लिए अकादमिक और तकनीकी दोनों तरह के डेवलपमेंट का मौका देता है। हमे अगले 25 वर्ष का प्लान तैयार करना चाहिए कि हम न्याय व्यवस्था मजबूत कैसे बना सकते हैं। इस पेशे में आने के लिए कानून की पढ़ाई पहली योग्यता है, लेकिन प्रेक्टिकली ज्ञान जरूरी है।
विजन 2047: लक्ष्य-कोई भी केस 1 साल पुराना न हो
मप्र न्यायाधीश संघ के अध्यक्ष सुबौध जैन ने बताया कि कॉन्फ्रेंस का आयोजन प्रदेश में भोपाल और जबलपुर में ही होता है। कोविड के बाद से 4 साल से कॉन्फ्रेंस हुई है। जैन बताते हैं कि हर दो साल में सम्मेलन का आयोजन होता है। इसका उद्देश्य न्यायधीशों में विश्वास पैदा करना है कि उनको जो लक्ष्य दिया गया है, उसको कैसे पूरा करना है। हमारा विजन 2047 है क्योंकि इस साल में भारत की आजादी के 100 साल पूरे हो रहे हैं। हम एक रोडमैप बना रहे हैं कि अदालतों की क्या स्थिति होना चाहिए और कोई भी केस 1 साल पुराना नहीं होना चाहिए।
कॉन्फ्रेंस की मुख्य बातें
- मप्र हाईकोर्ट के न्यायाधीश रोहित आर्य ने कहा कि जिलों में पदस्थ न्यायाधीश खुद को छोटा नहीं समझें।
- मुख्य न्यायाधीश, हाईकोर्ट रवि मलिमठ ने कहा कि ज्यूडीशियल सर्विस नौकरी नहीं है, यह काम सेवा है। जो बिना किसी लोभ लालच के हमको इस काम को करना चाहिए।