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नहीं रहे पद्मश्री रामसहाय पांडे : राई नृत्य को विश्व पटल पर पहुंचाने वाले लोक कलाकार का निधन, 92 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

सागर। राई नृत्य के जादूगर, बुंदेलखंड की माटी से जुड़े और लोककला को समर्पित जीवन जीने वाले पद्मश्री रामसहाय पांडे अब हमारे बीच नहीं रहे। 92 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और सागर के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे। इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।

साधारण किसान परिवार से कला के शिखर तक

रामसहाय पांडे का जन्म 11 मार्च 1933 को मध्यप्रदेश के सागर जिले के मडधार पठा गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें नृत्य और संगीत में रुचि थी। बुंदेलखंड की पारंपरिक नृत्य शैली ‘राई’ को उन्होंने न केवल अपनाया, बल्कि उसे मंचों पर जीवंत कर दुनिया तक पहुंचाया।

अस्पताल में मिलने पहुंचे थे सागर विधायक शैलेंद्र जैन और भाजपा जिलाध्यक्ष श्याम तिवारी।

राई को दिलाई नई पहचान

राई नृत्य को पहले सिर्फ ग्रामीण मनोरंजन का साधन माना जाता था, लेकिन पांडे जी ने इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित किया। उन्होंने हजारों लोगों को इस कला में प्रशिक्षित किया और कई मंचों पर प्रदर्शन कर इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

मिला पद्मश्री सम्मान

सरकार ने उनके योगदान को सम्मान देते हुए वर्ष 2022 में उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से नवाजा। यह सम्मान न केवल उनकी कला के प्रति समर्पण को दर्शाता है, बल्कि लोक संस्कृति की शक्ति को भी उजागर करता है।

लोककला जगत में शोक की लहर

रामसहाय पांडे के निधन से पूरे लोककला जगत में शोक की लहर है। उनके शिष्यों, प्रशंसकों और कला प्रेमियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। मध्य प्रदेश सरकार ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है और उनके योगदान को अमूल्य बताया है।

याद रहेंगे “राई सम्राट”

रामसहाय पांडे को ‘राई सम्राट’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने जिस लगन और निष्ठा से इस लोकनृत्य को जीवित रखा, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगी। वे चले गए, लेकिन उनकी कला, उनका योगदान और उनके द्वारा सहेजी गई सांस्कृतिक विरासत हमेशा हमारे बीच जीवित रहेगी।

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