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नाले में बदली कान्ह को अतिक्रमण से मुक्ति की दरकरार

नेहा जैन इंदौर। कान्ह और सरस्वती नदी इंदौर शहर की प्राकृतिक धरोहर होने के साथ सांस्कृतिक विरासत है, जिसके घाट कई ऐतिहासिक , सामाजिक और धार्मिक घटनाओं के साक्षी रहे हैं। 70 के दशक में तेजी से औद्योगीकरण के बाद से कान्ह सरस्वती एक सीवेज डंपयार्ड में बदल कर नाले में तब्दील हो गई है। बीते डेढ़ दशक से इंदौर की सिविल सोसायटी कान्ह और सरस्वती नदी के संरक्षण और इसे पुनर्जीवित करने की मांग कर रही है। इस बीच केंद्र और राज्य ने विभिन्न मदों में नदी संरक्षण के उद्देश्य से 2 हजार करोड़ खर्च कर दिए है। 511 करोड़ और प्रस्तावित है। विशेषज्ञ की नजर में प्रयासों में वैज्ञानिक सोच के अभाव से नतीजा सिफर रहा है।

सरकार ने माना- कान्ह नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित

जल प्रदूषण के मामले में प्रदेश के टॉप 10 स्थलों में से 7 स्थान तो कान्ह नदी के ही गिनाए गए हैं। इनमें इंदौर के कवीटखेड़ी, शक्करखेड़ी, धानखेड़ी, बड़ोदिया कलां, सांवेर और उज्जैन के राघोपिपल्या में नदी का पानी निर्धारित मापदंड से अत्यधिक प्रदूषित मिला है। विधानसभा में सरकार की ओर से दी गई जानकारी में यह ब्यौरा दिया गया है।

कान्ह और सरस्वती के उद्गम स्थल से लेकर इनके प्राकृतिक बहाव या ढाल क्षेत्र को चिह्नित करना होगा। इस मार्ग क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करना पहला कदम होगा। शेष वैज्ञानिक तरीकों से नदियों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। – सुधींद्र मोहन शर्मा, विशेषज्ञ, पूर्व सलाहकार, भारत सरकार

नगर निगम द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन नदी साफ नहीं हुई। यदि नदी को जल प्रवाहित होने योग्य बनाने का प्रयास होता तो हर वर्ष सफाई पर किए गए व्यय से एक चौथाई में नदी पुनर्जीवित हो जाती। – शिवाजी मोहिते, पूर्व अध्यक्ष, अभ्यास मंडल

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