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सुप्रीम कोर्ट ने ही दिया था कॉलेजियम में केंद्र के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव : किरेन रिजिजू

नई दिल्ली। कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को कहा कि सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के कॉलेजियम में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग अधिनियम (NJAV) को रद्द करने के दौरान शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार की गई कार्रवाई है। रिजीजू ने यह टिप्पणी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा दिए गए बयान के बाद की।

केजरीवाल ने केंद्र सरकार की ओर से कॉलेजियम में अपने प्रतिनिधियों को शामिल करने की सुप्रीम कोर्ट से की गई मांग को बेहद खतरनाक करार दिया है। केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट किया- मुझे उम्मीद है कि आप अदालत के निर्देश का सम्मान करेंगे। यह सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग अधिनियम को रद्द किए जाने के दौरान दिए गए सुझाव के अनुसार की गई कार्रवाई है।

सरकार के हस्तक्षेप पर SC ने जताई थी नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कॉलेजियम प्रणाली की प्रक्रिया के स्वरूप को पुनर्गठित करने का निर्देश दिया था। केंद्रीय कानून मंत्री ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है, ताकि न्यायाधीशों के चयन में पादर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही को समाहित किया जा सके। केजरीवाल ने इससे पहले ट्वीट किया था – यह बहुत ही खतरनाक है। न्यायिक नियुक्तियों में सरकार का निश्चित तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

कहां से शुरू हुआ विवाद

पिछले साल नवंबर में रिजिजू ने कहा था कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम प्रणाली संविधान से बिलकुल अलग व्यवस्था है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी दावा किया था कि न्यायपालिका, विधायिका की शक्तियों में अतिक्रमण कर रही है। एक संसदीय समिति ने भी इस पर आश्चर्य जताया था कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच करीब 7 साल बाद भी शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संशोधित प्रक्रिया ज्ञापन (MOP) पर सहमति नहीं बन पाई है।

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