हर साल 29 जनवरी को दिल्ली के विजय चौक पर बीटिंग द रिट्रीट समारोह होता है। इससे गणतंत्र दिवस के समारोह का समापन होता है। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति और सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर राम नाथ कोविन्द शामिल होंगे। पहली बार इस प्रदर्शन को आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में समारोह का हिस्सा बनाया गया है, जिसे ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाया जा रहा है।
सेना की वापसी का प्रतीक है ये सेरेमनी
बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी सेना की वापसी का प्रतीक है। इस दौरान राष्ट्रपति सेनाओं को अपनी बैरकों में लौटने की इजाजत देते हैं। पहले जब सेनाएं युद्ध के दौरान सूर्यास्त के बाद हथियारों को रखकर अपने कैंप में लौटती थी तब संगीतमय समारोह होता था, जिसे बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी कहा जाता है। इसलिए इसका आयोजन सूर्यास्त के समय होता है।
कब हुई थी इसकी शुरुआत
- दुनिया के कई देशों में बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी की परंपरा है। भारत में 1950 के दशक में इसकी शुरुआत हुई थी। तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने सेनाओं के बैंड्स के डिस्प्लेस के साथ इस सेरेमनी को पूरा किया था।
- इस समारोह में राष्ट्रपति मुख्य अतिथी रहते हैं, उनके आते ही उन्हें नेशनल सैल्यूट दिया जाता है।
- इसके बाद राष्ट्रगान जन-गण-मन होता है और फिर तीनों सेनाओं के बैंड मिलकर पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं।
- बैंड के बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, उसी दौरान बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की अनुमति लेते हैं।
- बैंड मार्च वापस जाते हुए ‘सारे जहां से अच्छा’ की धुन बजाते हैं।
बड़े पैमाने पर होगा ड्रोन शो
देश में बने 1,000 ड्रोन आज विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट समारोह में दर्शकों को रोमांचित करते नजर आएंगे। ड्रोन प्रदर्शन का आयोजन आईआईटी दिल्ली औप विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की सहायता से स्टार्टअप ‘बोटलैब डायनेमिक्स’ कर रही है। इस ड्रोन प्रदर्शन के दौरान क्रमबद्ध बैकग्राउंड संगीत भी बजाया जाएगा। ये ड्रोन शो 10 मिनट तक चलेगा।
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि चीन, रूस और ब्रिटेन के बाद भारत 1,000 ड्रोन के साथ इतने बड़े पैमाने पर ड्रोन शो का आयोजन करने वाला चौथा देश बन जाएगा।
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बजेंगी 26 धुनें
इस बार बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी के दौरान 26 धुन बजाई जाएंगी। लेकिन इस बार महात्मा गांधी की फेवरेट धुन नहीं बजेगी। वो धुन 1950 से बीटिंग रिट्रीट गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल है। शुरुआत में अंग्रेजी धुनें ही बजाई जाती थीं। बाद में धीरे-धीरे भारतीय धुनों ने अपनी जगह बनाई। अंग्रेजी धुन ‘Abide With Me’ बीटिंग रिट्रीट समारोह में बनी रही। यह महात्मा गांधी को बहुत पसंद थी।
Abide With Me को स्कॉटलैंड के कवि हेनरी फ्रांसिस लाइट ने 1847 में लिखा था. इसकी धुन प्रथम विश्व युद्ध में बेहद लोकप्रिय हुई।
जोड़ी गईं धुनें
इस बार बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में कई धुनें जोड़ी गई हैं। इनमें ‘केरल’, ‘हिंद की सेना’ और ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ शामिल हैं। इस कार्यक्रम का समापन ‘सारे जहां से अच्छा’ की धुन के साथ होगा।
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बीटिंग रिट्रीट का इतिहास
- बीटिंग रिट्रीट 17वीं शताब्दी के अंत से मनाई जा रही है। इंग्लैंड में इसकी शुरुआत हुई थी। तब इसका अर्थ था सूर्यास्त के समय सैन्य टुकड़ियों का युद्ध से अलग होना।
- रॉयल आयरिश वर्चुअल मिलिट्री गैलरी के अनुसार, 18 जून 1690 को James II की सेना को ड्रम बजाकर रात में पीछे हटने के लिए कहा गया था। उस वक्त इस समारोह को वॉच सेटिंग कहा जाता था।
- बाद में 1694 में William III की सेना ने इसी तरह के आदेश दिए। बिगुल, तुरही और ढोल की आवाज सैनिकों को अपनी तलवारें लपेटने और युद्ध के मैदान से हटने का संकेत देती थी।