ताजा खबरभोपालमध्य प्रदेश

TIGER RESCUE : अनाथ शावकों को मिला नया आशियाना, रातापानी के बजाय वन विहार में होगा ठिकाना, 9 घंटे चला रेस्क्यू ऑपरेशन

संतोष चौधरी, भोपाल। रातापानी सेंचुरी की मृत बाघिन टी-121 के दोनों अनाथ शावकों का 9 घंटे चले कठिन ऑपरेशन के बाद आखिरकार गुरुवार अलसुबह 3.30 बजे झिरी में सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया गया। इन शावकों को सुरक्षित पकड़ना एक कठिन चुनौती था , जिसके लिए बोमा ट्रैप जैसी स्थानीय तकनीक और स्थानीय लोगों का सहारा लिया गया। दोनों शावकों को सुबह करीब 9 बजे भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क लाया गया, जहां उन्हें क्वारंटाइन में रखा गया है। वन विभाग का अलमा उनकी निगरानी में तैनात है। हालांकि सुबह जब इन शावकों को यहां भोजन परोसा गया तो उन्होंने इसे नहीं खाया। दोनों शावक फिलहाल थोड़े सहमे हुए हैं। वन विहार के वन्य प्राणी विशेषज्ञ ने उनका स्वास्थ्य परीक्षण किया है और उनके अनुसार जल्द ही ये शावक अपने नए आशियाने का साथ तालमेल बिठा लेंगे।

12 दिनों से लापता थे दोनों शावक

केरवा-कलियासोत की बाघिन टी-121 और उसके तीन शावक पिछले 12 दिनों से लापता बताए जा रहे थे। 1 मई को बाघिन के इन दोनों शावकों को स्थानीय ग्रामीणों ने भोपाल से सटे झिरी में घूमते हुए देखा था। इसके बाद पार्क प्रबंधन ने बाघिन और शावकों की तलाश तेज कर दी थी। 3 मई को बाघिन का शव मिला था, जबकि अगले ही दिन 4 मई को एक अन्य शावक का भी शव रातापानी में मिला था। ऐसे में शेष बचे दो अनाथ शावकों को बचाना प्रबंधन के लिए बेहद मुश्किल भरा टास्क था, क्योंकि उसी इलाके में एक मेल टाइगर और तेंदुए का भी मूवमेंट था। प्रबंधन ने यहां टैप कैमरे और पिंजरे भी लगाए थे। तीन दिनों से दोनों शावक कैमरे में कैद तो हो रहे थे, लेकिन पिंजरे तक नहीं आ रहे थे। हालांकि इस दौरान दोनों शावकों ने किसी अन्य वन्य प्राणी द्वारा किए गए शिकार को खाया था। इसकी जानकारी वहां लगाए गए कैमरों में दर्ज फुटेज में हुई थी। दोनों शावक स्वस्थ भी दिखाई दे रहे थे।

9 घंटे चला कठिन रेस्क्यू ऑपरेशन

रेस्क्यू टीम में शामिल एक शख्स ने बताया कि दोनों शावकों के रेस्क्यू के लिए बोमा ट्रैप से मिलती-जुलती स्थानीय तकनीक का सहारा लिया गया। इसके साथ ही शावकों की लोकेशन को ट्रेस करने के लिए दो ड्रोन की मदद से एरियल सर्वे भी जारी था। दोनों शावकों की 24 घंटे सातों दिन ग्राउंड मॉनिटरिंग भी की जा रही थी। उनकी मौजूदगी का पता लगते ही झिरी पहाड़ी के ऊपर वाले जंगल में पीएफ-901 नामक लोकेशन पर 500 वर्ग मीटर का एनक्लोजर बनाया गया, जिसे तीनों तरफ से बंद कर केवल एक तरफ से खुला रखा ताकि शावक अंदर घुस सकें, लेकिन बाहर निकलने के लिए उनके पास कोई दूसरा विकल्प न हो।

शावकों को आकर्षित करने के लिए बनाए गए बाड़े में भोजन की भी व्यवस्था की गई थी, ताकि वे लालच में आकर एनक्लोजर में प्रवेश कर जाए। वन अमले को ड्रोन के जरिए पता चला कि दोनों शावक बुधवार शाम 6 बजे एनक्लोजर में घुसे। इसके बाद उनके प्रवेश का एकमात्र रास्ता भी बंद कर दिया गया। इसके बाद शाम 7 बजे डीएफओ हेमंत रायकवार और सेंक्चुरी के अधीक्षक सुनील भारद्वाज की मौजूदगी में अमले ने स्थानीय वन समिति के सदस्यों की मदद से रेस्क्यू आपरेशन शुरू किया और अलसुबह 3.30 बजे दोनों को सुरक्षित जाल में पकड़ लिया गया। इसके बाद रातापानी में ही इनकी प्राथमिक जांच और सेहत का जायजा लिया गया। सुबह 8 बजे इन्हें रातापानी से वन विहार रवाना कर दिया गया, जहां लगभग डेढ़ घंटे के सफर के बाद वे अपने नए आशियाने वन विहार पहुंचे।

इनका कहना है

लगातार मॉनिटरिंग के बाद दोनों शावकों को करीब 9 घंटे की मशक्कत के बाद सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया गया। दोनों की सेहत ठीक है और उन्हें वन विहार नेशनल पार्क भेजा गया है। यह ऐसा पहला रेस्क्यू है जो स्थानीय वन समिति के सदस्यों, स्थानीय तकनीक और सीमित संसाधनों के बल पर किया गया।

(हेमंत रायकवार, डीएफओ, औबेदुल्लागंज)

ये भी पढ़ें – एक साल में बाघों के हमले में 15 ग्रामीणों की मौत, वजह- कोर एरिया छोड़ बाहर निकल रहे 

संबंधित खबरें...

Back to top button