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एक साल में बाघों के हमले में 15 ग्रामीणों की मौत, वजह- कोर एरिया छोड़ बाहर निकल रहे

􀂄 मप्र में आपसी संघर्ष से 55 बाघों की मौत 􀂄 लोग जान देने को तैयार,पर गांव छोड़ने को नहीं

संजय कुमार तिवारी- जबलपुर। टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में बाघों की हो रही लगातार मौत और बाघों के इंसानों पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं, जो चिंता के विषय हैं। कारण, महाकोशल- विंध्य के कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा पन्ना और संजय दुबरी नेशनल पार्कों में टाइगर की संख्या बढ़ रही है, लेकिन इनके एरिया में कोई वृद्धि नहीं हुई। एक बाघ को कम से कम 22 वर्ग किमी की टेरेटरी चाहिए होती है। इससे बाघ व अन्य वन्यप्राणी पार्क से सटे गांवों में घुस रहे हैं। एक साल में 15 ग्रामीणों की हमलों में और 55 बाघों की मौत आपसी संघर्ष में हुई है।

400 से अधिक गांव: सभी 6 नेशनल पार्कों के कोर, बफर एरिया में 400 से अधिक गांव हैं। यहां ग्रामीणों पर बाघों के हमले के मामले सामने आ रहे हैं।

मुआवजा लेने को तैयार नहीं

बांधवगढ़ के कोर एरिया में गढ़पुरी समेत 12 गांवों का विस्थापन होना है। इसमें सरकार परिवार के हर वयस्क को 15-15 लाख रुपए और जमीन दे रही है, लेकिन ग्रामीण गांव छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। गढ़पुरी के ग्रामीण राममिलन यादव, किशोरी पाल का कहना है कि हम जंगल में ही रहेंगे। हम दूसरी जगह नहीं जाएंगे, चाहे हमारी जान भी चली जाए।

बाघों के हमले में मौत

  • बांधवगढ़: बाघ के हमले में 1 साल में 10 लोगों की मौत, 5 घायल हुए है।
  • कान्हा : एक साल में एक ग्रामीण की मौत और एक घायल हुआ है।
  • पेंच : तीन ग्रामीण घायल हुए। इसमें एक की मौत हो गई।
  • पन्ना और संजय दुबरी पार्क: एक-एक मौत बाघ के हमले से हुई।
  • घुंघुटी वन परिक्षेत्र: महुआ बीनने गई महिला की बाघ के हमले में मौत।

लड़ाई में कितने बाघ मरे

  • बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 22
  • कान्हा टाइगर रिजर्व में 12
  • पन्ना टाइगर रिजर्व में 4
  • सिवनी वनक्षेत्र में 1
  • सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में 2
  • शहडोल वनक्षेत्र में 3
  • संजय दुबरी, नौरादेही और पेंच टाइगर रिजर्व में 2-2
  • बालाघाट, अब्दुल्लागंज, छिंदवाड़ा, मंडला, चित्रकूट में 1-1 बाघ की मौत

पार्क प्रबंधन विस्थापन के लिए वन विभाग मुख्यालय को गांवों की सूची देता है। बांधवगढ़ में 16 गांवों को विस्थापित कराने की प्रक्रिया 2005- 06 से शुरू हुई थी। अब तक चार गांवों को विस्थापित किया गया है। – अर्पित मिराज, एसडीओ, ताला पतौर रेंज, बांधवगढ़

बाघों के बीच फाइटिंग वाइल्ड लाइफ का एक अहम हिस्सा भी है, क्योंकि नए बाघों को भी अपनी टेरेटरी बनानी होती है। बाघ के क्षेत्र का निर्धारण उसे उपलब्ध होने वाले शिकार पर निर्भर करता है। – असीम श्रीवास्तव, पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ मप्र, भोपाल

टाइगर रिजर्व और अन्य क्षेत्रों में इंसान और बाघों के संघर्ष प्रबंधन को प्रभावी रूप से लागू करने फॉरेस्ट अफसरों को समय निकालना होगा। रिजर्व में रहने वाले ग्रामीणों का विश्वास हासिल कर उनको फिर से स्थापित करना होगा। – अजय दुबे, वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट भोपाल

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