
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर को अपने फैसले में गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए मोदी सरकार के कानून पर सहमति दी थी। उस समय कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश समेत कुछ नेताओं ने फैसले का स्वागत किया था। रमेश ने कहा था कि ईडब्ल्यूएस के लिए 10 फीसदी कोटा बरकरार रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पार्टी स्वागत करती है। इस यात्रा में कांग्रेस ने अहम भूमिका निभाई। ये आरक्षण मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के जरिए आरंभ की गई प्रक्रिया का परिणाम है।
अब एक कांग्रेस नेता ने ही सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की है।कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने शीर्ष अदालत में याचिका लगाकर 7 नवंबर के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।
3:2 के बहुमत से सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था फैसला
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि आर्थिक न्याय करने की सरकार की कोशिश को व्यर्थ करने में संविधान के मूल ढांचे का उपयोग करना स्वीकार्य नहीं हो सकता। न्यायालय ने 3:2 के बहुमत वाला अपना फैसला 103वें संविधान संशोधन के पक्ष में दिया था।
2019 के चुनावों से पहले मोदी सरकार लाई थी कानून
मोदी सरकार ने 2019 में लोकसभा चुनावों से पहले आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का अध्यादेश लागू किया था। इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लगी थीं। जिसमें कहा गया था कि इससे आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 फीसदी की सीमा से अधिक हो जाएगा। हालांकि, सरकार का तर्क था कि यह व्यवस्था 50 फीसदी के दायरे से छेड़छाड़ किए बगैर की गई है। यानी पहले से जिन्हें आरक्षण मिल रहा है, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। हालांकि, तत्कालीन सीजेआई यूयू ललित और रविंद्र भट इसके खिलाफ थे। लेकिन तीन जज इसे पक्ष में थे, इसलिए इस कानून पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई थी। इसका फायदा ऐसे लोगों को मिलेगा, जिनकी कमाई सालाना 8 लाख से कम है।
सबसे पहले नरसिम्हा राव सरकार ने किया था आरक्षण का फैसला
1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था। लेकिन, 1992 में शीर्ष अदालत की 9 सदस्यीय पीठ ने इसे असंवैधानिक करार देकर खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा था कि संविधान में आरक्षण का प्रावधान सामाजिक गैर-बराबरी दूर करने के मकसद से रखा गया। ऐसे में आरक्षण का इस्तेमाल गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तौर पर नहीं किया जा सकता। इसके बाद 2003 में भाजपा और 2006 में कांग्रेस सरकार ने एक कमेटी बनाकर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों का अध्ययन कराया। लेकिन, कानून लागू नहीं हो सका।