
इंटरनेशनल डेस्क। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा(NASA) ने अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) को पृथ्वी पर लाने के लिए एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स को चुना है। कैलिफोर्निया की ये कंपनी अगले दशक की शुरुआत में इस अंतरिक्ष स्टेशन को धरती पर स्थित प्रशांत महासागर तक लाने के लिए एक वाहन का निर्माण करेगी, जो 430 टन वजनी ISS को धरती तक लाएगा। नासा इस काम के लिए स्पेसएक्स को 84.3 करोड़ डॉलर में करार किया है। अगर भारतीय मूल्य के हिसाब से देखा जाए तो ये रकम लगभग आज के एक्सचेंज रेट के हिसाब से लगभग 7 हजार 110 करोड़ रुपए होती है।
1998 में तैयार हुआ था ISS
ISS का निर्माण 1998 में शुरू हुआ और 2000 में यहां अंतरिक्ष यात्रियों का आना-जाना शुरू हुआ। यह स्पेस स्टेशन हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है। यह पृथ्वी के ऑर्बिट में 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर है। अगर वैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो ISS पर हजारों प्रयोग किए जा चुके हैं। अमेरिका समेत अन्य देश भी यहां मनुष्यों की उम्र बढ़ाने से लेकर नए प्रॉडक्ट के फॉर्मूले तक की जांच करते रहे हैं। स्पेस एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई थी कि ISS का वजन काफी ज्यादा है और अगर ये अपने आप धरती पर वापस आएगा तो इससे लोगों को खतरा हो सकता है।
डी-ऑर्बिट व्हीकल से लाया जाएगा सुरक्षित
नासा के अंतरिक्ष संचालन निदेशक केन बावरसॉक्स ने एक बयान में दावा किया कि ISS को लाने के लिए डी-ऑर्बिट वाहन का निर्माण किया जाएगा। मस्क की कंपनी स्पेसएक्स इसका निर्माण करेगी। फिलहाल अमेरिका और रूस मिलकर ISS प्रोजेक्ट का नेतृत्व करते हैं और इसमें यूरोपीय देशों के साथ कनाडा और जापान सहायक भूमिका निभाते हैं। अगर यूरोपीय देशों की बात करें तो ये सभी 2030 तक स्टेशन के लिए फंड देने पर सहमत हैं, जबकि रूस भी 2028 तक इसका खर्चा उठाने की सहमति पहले ही दे चुका है। प्लान यही है कि 2030 में ही ISS को रिटायर कर धरती पर लाया जाए।
तीन स्टेज में टूटेगा ISS
इससे पहले मीर और स्काईलैब जैसे अन्य अंतरिक्ष स्टेशन धरती के वायुमंडल में वापस आते ही नष्ट हो गए थे। उसे देखते हुए नासा के इंजीनियरों को उम्मीद है कि इस बार ऐसा नहीं होगा। उन्हें उम्मीद है कि ISS धरती तक आते-आते तीन चरणों में टूटेगा। सबसे पहले सोलर पैनल और रेडिएटर बंद होंगे, इसके बाद स्पेस स्टेशन के अलग-अलग मॉड्यूल ट्रस अलग हो जाएंगे। सबसे अंत में ट्रस और मॉड्यूल खुद ही नष्ट हो जाएंगे। नासा को उम्मीद है कि धरती की कक्षा में प्रवेश करते ही ISS की अधिकांश सामग्री भाप बन जाएगी, लेकिन फिर भी कई बड़े टुकड़े बच सकते है। इसी कारण नासा ने ISS को प्रशांत महासागर के प्वाइंट निमो में गिराने का लक्ष्य रखा है, जिसे दुनिया के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में से एक माना जाता है। इस जगह को उपग्रहों और अंतरिक्ष यानों का कब्रिस्तान भी कहा जाता है।
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