
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित मानहानिकारक प्रकाशनों को वापस लेने के लिए एक मीडिया घराने को निर्देश देने के अनुरोध वाली भाजपा सांसद गौतम गंभीर की याचिका को लेकर ‘मौजूदा स्तर पर’ अंतरिम आदेश देने से बुधवार को इनकार कर दिया। जिसमें गंभीर के खिलाफ ‘झूठे, अपमानजनक और बदनाम करने वाले’ बयान दिए गए हैं। गंभीर ने हर्जाने के रूप में दो करोड़ रुपए की भी मांग की है, जो धर्मार्थ संगठनों को दान किया जाएगा।
गंभीर का दावा- ‘झूठी और दुर्भावनापूर्ण’ रिपोर्ट प्रकाशित की
हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया वह इस मामले पर विचार की आवश्यकता को लेकर सहमत है और प्रतिवादियों – एक हिंदी दैनिक, इसके प्रधान संपादक और तीन पत्रकारों – को समन जारी किया जाना चाहिए। क्रिकेटर से नेता बने गंभीर ने अपने वाद में दावा किया कि प्रतिवादियों ने उनके खिलाफ ‘झूठी और दुर्भावनापूर्ण’ रिपोर्ट प्रकाशित की। साथ ही उन्होंने बिना शर्त माफी मांगने के लिए अदालत से निर्देश देने की मांग की, जिसे मीडिया हाउस द्वारा प्रकाशित करने के साथ ही सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाए।
जजों को भी मोटी चमड़ी का होना चाहिए!
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने मुख्य वाद पर मीडिया हाउस और चार अन्य को नोटिस और समन जारी किया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध की। न्यायाधीश ने कहा कि आप पब्लिक सर्वेंट हैं, आपको इतना संवेदनशील होने की जरूरत नहीं है। किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति को ‘मोटी चमड़ी वाला’ होना चाहिए। आजकल न्यायधीशों को भी मोटी चमड़ी वाला होनी चाहिए। गंभीर ने अदालत से अनुरोध किया कि अंतरिम राहत के रूप में समाचार पत्र द्वारा कथित मानहानिकारक प्रकाशनों को तुरंत वापस लिया जाए और मुकदमे के लंबित रहने के दौरान इसी तरह के आरोप लगाने से रोका जाए।
‘गौतम’ के वकील का ‘गंभीर’ आरोप
गंभीर के वकील जय अनंत ने आरोप लगाया कि उनके याचिकाकर्ता के खिलाफ घटिया बयानबाजी की गई और ऐसा लगा कि मीडिया हाउस किसी तरह के ‘मिशन’ पर है। गंभीर के वकील ने कहा कि पिछले साल 23 नवंबर को अखबार को एक कानूनी नोटिस भेजा गया था, जिसमें भाजपा सांसद के खिलाफ कोई भी मानहानिकारक प्रकाशन रोकने के लिए कहा गया था, लेकिन आज तक कोई जवाब नहीं मिला है।
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