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मणिपुर में नहीं थम रही हिंसा : कुकी उग्रवादियों ने सेंट्रल फोर्स की चौकी पर फेंका बम, CRPF के 2 जवान शहीद; दो घायल

इंफाल। मणिपुर में हिंसा का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। बिष्णुपुर ​​​जिले ​​के ​नारानसैना इलाके में शुक्रवार (26 अप्रैल) देर रात कुकी उग्रवादियों के हमले में CRPF के दो जवान शहीद हो गए, जबकि 2 घायल बताए जा रहे हैं। मणिपुर पुलिस ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि, देर रात 12:45 बजे से लेकर 2:15 बजे के दौरान कुकी समुदाय के उग्रवादियों ​​​​​ने मैतेई बहुल गांव नारानसैना की ओर फायरिंग करने के साथ ही बन भी फेंके।

क्या है पूरा मामला

जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार (26 अप्रैल) देर रात 12:45 बजे से लेकर 2:15 बजे के दौरान कुकी समुदाय के उग्रवादियों ​​​​​ने मैतेई बहुल गांव नारानसैना की ओर फायरिंग की। इसके साथ ही बम भी फेंके। इस दौरान नारानसैना में CRPF की चौकी के अंदर धमाका हुआ। मृतक जवानों की पहचान एन सरकार और अरूप सैनी के रूप में की गई है। ये जवान राज्य के विष्णुपुर जिले से नारानसैना इलाके में तैनात CRPF की 128 बटालियन के थे। वहीं CRPF की 128वीं बटालियन के इंस्पेक्टर जादव दास, सब इंस्पेक्टर एन सरकार, हेड कॉन्स्टेबल अरूप सैनी और कॉन्स्टेबल आफताब हुसैन घायल हो गए।

इंफाल में भड़की थी हिंसा

इससे पहले उपद्रवियों ने तीन जिलों कांगपोकपी, उखरूल और इंफाल पूर्व के ट्राइजंक्शन जिले में एक दूसरे पर फायरिंग की। जिसमें कुकी समुदाय के 2 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद थौबल जिले के हेइरोक और तेंगनौपाल के बीच 2 दिन की क्रॉस फायरिंग के बाद इंफाल पूर्वी जिले के मोइरंगपुरेल में फिर से हिंसा भड़क उठी। जिसमें कांगपोकपी और इंफाल पूर्व दोनों के हथियारबंद उपद्रवी शामिल थे।

एक साल से जारी है हिंसा

मणिपुर में पिछले साल 3 मई (करीब एक साल) से हिंसा जारी है। मैतेई और कुकी मसुदायों के बीच जातीय हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद जातीय हिंसा भड़की थी। इसकी वजह से मणिपुर में 180 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। 1100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। 65 हजार से ज्यादा लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, वे 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं।

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