Mahila Naga Sadhu: प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है। इस बार डेढ़ महीने तक चलने वाले इस महाकुंभ में करीब 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। इसके साथ बड़ी संख्या में साधु-संत संगम में स्नान करने के लिए मीलों दूर से पहुंच रहे हैं। कुंभ की कल्पना नागा साधुओं के बिना अधूरी मानी जाती है। इन साधुओं की वेशभूषा और खानपान सामान्य से अलग होते हैं। इसमें महिला नागा साधु भी होती हैं, जो अपने जीवन को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित कर देती हैं।
पूजा-पाठ के साथ दिन की शुरुआत और अंत
नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में तो सभी ने सुना होगा, लेकिन महिला नागा साधुओं का जीवन इससे भी कहीं ज्यादा कठिन और अलग होता है। गृहस्थ जीवन से दूर, ये महिला साधु अपने दिन की शुरुआत और अंत पूजा-पाठ से ही करती हैं। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा होता है, और वे किसी भी तरह की सांसारिक चीजों से परे होती हैं। नागा साधु दुनिया से कोई जुड़ाव नहीं रखते, और उनकी हर बात, हर क्रिया अन्य लोगों से अलग होती है।
खुद को करना होगा ईश्वर को समर्पित
महिला नागा साधु बनने के लिए परीक्षा बहुत कठिन और कड़ी होती है। इसके लिए किसी महिला को 10 से 15 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है। इसके साथ आपको अपने गुरु का यकीन भी जीतना होगा की आप नागा साधु बनने लिए योग्य हैं और ईश्वर के प्रति समर्पित हो चुके हैं।
इसके साथ पहले महिला के बीते जीवन के बारे में जाना जाता है। इस चीज की परीक्षा ली जाती है कि वह ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित है या नहीं। साथ ही नागा साधु बनने के बाद महिला कठिन साधना कर सकती है या नहीं। इसके बाद नागा साधु बनने से पहले महिला को जिंदा रहते हुए अपना पिंडदान करना पड़ता है और फिर मुंडन कराना पड़ता है।
पुरुष नागा साधु के बाद स्नान करती है महिला नागा साधु
महिला नागा साधुओं को अखाड़े में सम्मान मिलता है और उनके धार्मिक कार्यों को विशेष महत्व दिया जाता है। कुंभ मेले के दौरान, महिला नागा साधु भी शाही स्नान करती हैं। हालांकि पुरुष नागा साधु स्नान करने के बाद ही महिला नागा साधु नदी में स्नान करती हैं। अखाड़े में महिला साधुओं को माई, अवधूतानी या नागिन के नाम से संबोधित किया जाता है। लेकिन उन्हें अखाड़े के प्रमुख पदों पर नहीं चुना जाता है।
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