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Vishwakarma Jayanti 2023 : विश्‍वकर्मा जयंती पर 50 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग, जानें मुहूर्त और पूजा विधि

Vishwakarma Jayanti 2023 : विश्‍वकर्मा जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है। भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला वास्तुकार माना गया है। मान्‍यता है कि इसी दिन निर्माण के देवता विश्‍वकर्मा का जन्‍म हुआ था। विश्‍वकर्मा को देवशिल्‍पी यानी कि देवताओं के वास्‍तुकार के रूप में पूजा जाता है। विश्वकर्मा जयंती के दिन लोग अपने संस्थान, फैक्ट्रियों में औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं। साथ ही इस दिन वाहनों की भी पूजा की जाती है। आइए जानते हैं विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त और सामग्री…

विश्कर्मा पूजा 2023 मुहूर्त

भगवान विश्वकर्मा की पूजा 17 सितंबर 2023, रविवार को कन्या संक्राति के दिन की जाएगी। वैसे तो इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की पूरे दिन जा सकती है।

  • पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक हैं।
  • दूसरा शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से दोपहर 3 बजकर 30 मिनट तक का है।

विश्वकर्मा जयंती 2023 पर शुभ योग

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, लगभग 50 साल बाद विश्वकर्मा जयंती पर कई दुर्लभ संयोग का निर्माण हो रहा है। इनमें सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत योग, द्विपुष्कर योग और ब्रह्म योग शामिल हैं। मान्यता है कि ये शुभ योग आपकी हर मनोकामना पूरी कर सकते हैं।

  • सर्वार्थ सिद्धि योग : 17 सितंबर 2023 को सुबह 06:07 से सुबह 10:02 बजे तक।
  • द्विपुष्कर योग : 17 सितंबर 2023 को सुबह 10:02 से सुबह 11.08 बजे तक।
  • ब्रह्म योग : 17 सितंबर 2023 को प्रात: 04:13 से 18 सितंबर 2023, प्रात 04:28 बजे तक।
  • अमृत सिद्धि योग : 17 सितंबर 2023 को सुबह 06:07 से सुबह 10:02 बजे तक रहेगा।

विश्वकर्मा पूजा-सामग्री

  • सुपारी, रोली, पीला अष्टगंध चंदन, हल्दी, लौंग, मौली, लकड़ी की चौकी।
  • पीला कपड़ा, मिट्‌टी का कलश, नवग्रह समिधा, जनेऊ, इलायची।
  • इत्र, सूखा गोला, जटा वाला नारियल, धूपबत्ती, अक्षत, धूप, फल, मिठाई।
  • बत्ती, कपूर, देसी घी, हवन कुण्ड, आम की लकड़ी, दही, फूल।

विश्वकर्मा जयंती का महत्व

भगवान विश्वकर्मा ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से तमाम इंजीनियर, मिस्त्री, वेल्डर, बढ़ई, जैसे कार्य से जुड़े लोग अधिक कुशल बनते हैं। शिल्पकला का विकास होता है। कारोबार में बढ़ोत्तरी होती है साथ ही धन-धान्य और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला बड़ा इंजीनियर माना जाता है। इस दिन दुकान, वर्कशाप, फैक्ट्री में यंत्रों और औजारों की पूजा करने से कार्य में कभी कोई रुकावट नहीं आती और खूब तरक्की होती है। शास्त्रों में ऐसा भी कहा गया है कि विश्वकर्मा जी ने इंद्रपुरी, त्रेता में लंका, द्वापर में द्वारिका एवं हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ, कलयुग में जगन्नाथ पुरी आदि का निर्माण किया था।

अस्त्र-शस्त्र भागवान विश्वकर्मा ने बनाए

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में देवताओं के महल और अस्त्र-शस्त्र भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाए थे। इसलिए इन्हें स्वयंभू और निर्माण का देवता कहा जाता है। भगवान विश्वकर्मा ने श्रीहरि भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र, शिव जी का त्रिशूल, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज को भी भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया था।

पुष्पक विमान का निर्माण इनकी एक बहुत महत्वपूर्ण रचना रही है। इसके अलावा कर्ण का कवच या कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र हो या फिर भगवान शिव का त्रिशूल हो, ये सभी चीजें भगवान विश्वकर्मा के निर्माण का प्रभाव है। यमराज का कालदण्ड हो या इंद्र के शस्त्र इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया है।

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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