
भोपाल शहर अपने कबाब के जायके के लिए लखनऊ से कहीं पीछे नहीं है। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कबाब की दुकानों के कारण इब्राहिमगंज की एक गली का नाम ही चटोरी गली पड़ गया। जहां शाम होते ही कबाब प्रेमियों का जमावड़ा लग जाता है। इस गली के कबाबों का स्वाद ऐसा है जिसको चखने के लिए शहर के बाहर से भी लोग आते हैं। खासतौर पर विदेशी पर्यटक कबाबों के जायके की कहानी सुनकर यहां खींचे चले आते हैं। इसके अलावा पुराने शहर के बुधवारा, इतवारा, काजीकैंप, चार बत्ती, हमीदिया रोड में देर रात एक-डेढ़ बजे तक कबाब की दावतें चलती हैं। 14 जुलाई को वर्ल्ड कबाब डे मनाया जाता है। कबाब की आठ तरह की वैरायटी : यूं तो कबाब को कई प्रकार से बनाया जा सकता है, लेकिन इनमें आठ प्रकार के कबाब ऐसे हैं। जो मार्केट में सबसे ज्यादा चलते हैं। दुकानदार मो. सलीम ने बताया कि चांदी कबाब, सीक कबाब, शमी कबाब, दाल वाले कबाब, टुंडे कबाब, नरगिसी कबाब, बन कबाब बनाए जाते हैं। इनमें से अधिक सीक और शमी कबाब चलते हैं। कबाब की दुकानों के कारण इब्राहिमगंज की एक गली का नाम चटोरी गली पड़ा है। यहां दुकानों में कबाब की अलग-अलग कीमत है। हमारे यहां 10 रुपए में बन कबाब मिलते हैं। इसके अलावा अन्य कबाब 60 रुपए से शुरू हैं। भोपाल के कबाबों में जिन मसालों का इस्तेमाल होता है उसमें खड़े व पीसे गरम मसाले, पुदीना, अदरक, लाल मिर्च, हरी मिर्च, अलग-अलग प्रकार के मगज, खसखस, मूंगफली दाने का इस्तेमाल होता है जिसे मिलाकर पकाने में आधे घंटे का समय लगता है। इसे चटनी, प्याज व नींबू के साथ परोसा जाता है। खासतौर पर मिलते हैं।
40 साल से चटोरी गली में बिक रहे कबाब
इब्राहिमगंज स्थित चटोरी गली में 40 साल से कबाब बिक रहे हैं। यहां कई साल पहले तक कबाब की 10-15 दुकानें हुआ करती थी, लेकिन अब यहां इक्का-दुक्का दुकानों ही रह गई हैं क्योंकि अब दूसरी जगहों पर भी कबाब मिलने लगे हैं। मो.सलीम कबाब वाले की दुकान सात – आठ घंटे के लिए खुलती है, जहां 400 से अधिक लोग आकर कबाब खाते हैं। इससे ही कबाब की डिमांड का अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर में कबाब का कितना क्रेज रहता है।