श्रीलंका। कच्चाथीवू को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां लगातार जारी हैं। इस विवाद को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कच्चाथीवू विवाद पर भारत की तरफ से पूरी कहानी बताने के बाद अब श्रीलंका की तरफ से पहला आधिकारिक बयान सामने आया है। श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने कहा, “यह मुद्दा 50 साल पहले सुलझा लिया गया था। इसे दोबारा उठाने की कोई जरूरत नहीं है।”
भारत में सिर्फ राजनीतिक बहस चल रही : श्रीलंका विदेश मंत्री
इफ्तार डिनर के दौरान कच्चाथीवू पर किए गए सवाल के जवाब में साबरी ने कहा, “कच्चाथीवू पर कोई विवाद नहीं है। भारत में सिर्फ राजनीतिक बहस चल रही है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। लेकिन इस पर अधिकार को लेकर कोई बात नहीं हुई है।”
भारत ने चुनाव के लिए उठाया कच्चाथीवू मुद्दा
वहीं भारत में 2018-20 के दौरान श्रीलंका के हाई कमिश्नर रहे ऑस्टिन फेर्नांडो ने कच्चाथीवू मामले को लेकर बात करते हुए कहा, “भारत में अभी भले ही सिर्फ वोट हासिल करने के लिए कच्चाथीवू का मुद्दा उठाया गया है, लेकिन चुनाव होने के बाद भारत सरकार के लिए इससे पीछे हटना मुश्किल हो जाएगा। उन्हें इस बारे में सोचना चाहिए।”
तमिलनाडु के वोटरों को खुश करने के लिए दिए गए बयान
ऑस्टिन फेर्नांडो ने आगे कहा, “तमिलनाडु के वोटरों को खुश करने के लिए भारत के विदेश मंत्री कहना चाहते हैं कि वे कच्चाथीवू में भारतीय मछुआरों को मछली पकड़ने का हक दिलवाएंगे। लेकिन इस दौरान कोई विवाद हुआ तो उसे कौन संभालेगा।”
करीब 2 दिन पहले श्रीलंका के एक मंत्री ने कहा था, “भारत ने कच्चाथीवू पर अधिकार लौटाने को लेकर श्रीलंका से कोई बात नहीं की है। अगर भारत की तरफ से ऐसी कोई रिक्वेस्ट आई तो हम जरूर जवाब देंगे।”
1974 के समझौते की जयशंकर ने बताई तीन कंडीशन
जयशंकर ने 1974 में हुए समझौते की कंडीशन के बारे में बात करते हुए बताया कि, 1974 में इंडिया और श्रीलंका ने एक समझौता किया था। जिसमें दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा तय की गई। इस सीमा को तय करते वक्त कच्चाथीवू को श्रीलंका में दे दिया गया। जिसके लिए 3 कंडीशन रखीं गईं थीं।
पहली- दोनों देशों का अपनी समुद्री सीमा पर पूरा अधिकार और संप्रभुता होगी।
दूसरी- कच्चाथीवू का इस्तेमाल भारतीय मछुआरे भी कर सकेंगे और इसके लिए भारतीयों को किसी ट्रैवल डॉक्यूमेंट की जरूरत नहीं होगी।
तीसरी- दोनों देशों की नौकाएं एक-दूसरे की सीमा में वो यात्राएं कर सकेंगी जो वो परंपरागत रूप से पहले से करती आ रही हैं।
यह समझौता संसद में रखा गया। तब के विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह जी ने 23 जुलाई 1974 को संसद को भरोसा दिलाया था। उनके स्टेटमेंट में लिखा था, मुझे विश्वास है कि भारत और श्रीलंका के बीच सीमाओं का तय न्यायसंगत है और सही है। इस समझौते को करते वक्त दोनों देशों को भविष्य में मछली पकड़ने, धार्मिक कार्य करने और नौकाएं चलाने का अधिकार रहेगा।
पीएम मोदी ने रविवार को कच्चाथीवू का मसला उठाया था
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को एक RTI रिपोर्ट का हवाला देकर कहा था कि कांग्रेस ने भारत के रामेश्वरम के पास मौजूद कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था। हर भारतीय इससे नाराज है और यह तय हो गया है कि कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
285 एकड़ में फैला है कच्चाथीवू, रामेश्वरम से 19 KM दूर है
भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच काफी बड़ा समुद्री क्षेत्र है। इस समुद्री क्षेत्र के पास कई सारे द्वीप हैं, जिसमें से एक द्वीप का नाम कच्चाथीवू है। कच्चाथीवू 285 एकड़ में फैला एक द्वीप है। ये द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ता है। ये द्वीप 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बना था। जो रामेश्वरम से करीब 19 किलोमीटर और श्रीलंका के जाफना जिले से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर है।
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