
देशभर में आज जन्माष्टमी का का पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस बार जन्माष्टमी की तिथि को लेकर भी भ्रम की स्थिति थी। कुछ जगहों पर जन्माष्टमी कल ही मना ली गई थी। वहीं 19 अगस्त यानी आज को मनाई जाने वाली जन्माष्टमी मथुरा और वृंदावन के आधार पर मनाई जा रही है। आइए जानते हैं आज का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि।
कब हुआ था श्रीकृष्ण का जन्म
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में मनाया जाता है। माना जाता है कि भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में रात के 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी के दिन भक्त बाल-गोपाल की पालकी सजाते हैं और पूरी श्रद्धा भाव से उनका श्रृंगार करते हैं।
जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 18, 2022 को रात 09 बजकर 20 मिनट से शुरू
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 19, 2022 को रात 10 बजकर 59 मिनट पर खत्म
निशिता पूजा का समय – अगस्त 20, सुबह 12 बजकर 20 मिनट से सुबह 01:बजकर 05 मिनट तक
कृष्ण जन्माष्टमी कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कंस चंद्रवंशी यादव राजा था। उसकी एक बहन थी जिसका नाम देवकी थी। कंस ने देवकी का विवाह वासुदेव से करवाया। कंस का जन्म चंद्रवंशी क्षत्रिय यादव राजा उग्रसेन और रानी पद्मावती के यहां हुआ था। कंस ने अपने पिता को अपदस्थ किया और मथुरा के राजा के रूप में खुद को स्थापित किया लेकिन उसे अपनी बहन देवकी से बहुत स्नेह था। देवकी की शादी के बाद यह आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। यह आकाशवाणी सुनकर कंस काफी डर गया और उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया। इसके बाद कंस ने देवकी और वासुदेव की 7 संतानों को मार डाला। इसके बाद देवकी आठवीं बार मां बनने वाली थी। देवकी की आठवीं संतान के जन्म के वक्त आसमान में बिजली कड़कने लगी और कारागार के सभी ताले अपने आप टूट गए।
मान्यता के मुताबिक,उस समय रात के 12 बजे थे और सभी सैनिक गहरी नींद मे थे। उसी समय भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने देवकी और वासुदेव को बताया कि वह देवकी की गोद से जन्म लेंगे। साथ ही उन्होंने देवकी और वासुदेव को यह भी बताया कि वह जन्म के बाद उनके अवतार को गोकुल में नंद बाबा के पास छोड़ आएं और उनके घर में जन्मी कन्या को कंस को सौंप दें। भगवान श्री कृष्ण के कहे अनुसार वासुदेव ने वैसा ही किया। नंद और यशोदा ने मिलकर श्री कृष्ण को पाला और बाद में श्री कृष्ण ने कंस का वध किया।
कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि
जन्माष्टमी का व्रत अष्टमी तिथि को रखा जाता है और नवमी तिथि के दिन इस व्रत का पारण किया जाता है। जन्माष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और साफ कपड़े पहन लें। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण को गंगा जल और दूध से स्नान कराएं और नए कपड़े पहनाएं और आसन पर बैठाएं। इसके बाद भगवान को फल, मिठाई, मिश्री आदि का भोग लगाएं। इसके बाद रात के 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें पूजा करने के बाद कृष्ण आरती करें। 12 बजे के बाद ही आप अपना व्रत खोलें। इस व्रत में अनाज का सेवन नहीं किया जाता है तो पारण के दौरान फल या कुट्टू और सिंघाड़े के आटे से बनी चीजों का सेवन कर सकते हैं।
(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)