
नई दिल्ली। भारत के चुनाव पर दुनियाभर की नजरें लगीं थी और अब चुनाव नतीजों पर भी दुनियाभर के प्रमुख मीडिया संस्थानों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है। न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है कि भारत के लोकसभा चुनाव में कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है और शुरूआती रुझान उम्मीदों के विपरीत चल रहे हैं। अल जजीरा ने लिखा है कि रुझानों में मोदी की भाजपा बहुमत से पिछड़ रही है। सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि भारत के लोकसभा चुनाव में शुरूआती रुझानों में भाजपा आगे चल रही है, लेकिन कांग्रेस मुख्यालय में खुशी की लहर है।
एग्जिट पोल्स के निराशाजनक अनुमानों के विपरीत कांग्रेस कई सीटों पर आगे चल रही है। ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने लिखा कि भारत के पीएम मोदी तीसरी बार जीतने की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन वो चुनाव में भारी जीत से पीछे रह सकते हैं। प्रधानमंत्री की बीजेपी को एग्जिट पोल के अनुमान के मुताबिक दोत् िाहाई बहुमत मिलने की संभावना नहीं है।
निवेशकों को पसंद है केवल स्थिर सरकार
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद शेयर बाजार पौने 6 फीसदी की गिरावट के साथ बंद हुआ है। इससे साफ हो गया है कि कि शेयर बाजार को सिर्फ स्थिर सरकार पसंद है। अमेरिका की ब्रोकरेज फर्म यूबीएस की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि एनडीए सत्ता में आए या फिर कोई और, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें या फिर कोई दूसरा शख्स। निवेशकों को निराशा ही हाथ लग सकती है। यूबीएस ने अपनी रिपोर्ट में तीन सिनेरियो को सामने रखा है। इन तीनों परिस्थितियों में बाजार की स्थिति वैसी नहीं रहने वाली है, जिस तरह की बीते 10 सालों में देखने को मिली थी।
पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनाई जाए खिचड़ी सरकार
यूबीएस ने पहले सिनेरियो में कहा है अगर मोदी विशुद्ध एनडीए सरकार में पीएम बनते हैं तो सरकार वैसी दमदार नहीं होगी, जिस तरह से बीते 10 वर्षों में थी। ऐसे में शेयर बाजार में अस्थिरता देखने को मिल सकती है। क्योंकि शेयर बाजार को एक स्थिर सरकार पसंद है। बीते 10 सालों में सेंसेक्स ने निवेशकों को 3 जून 2024 तक 217 फीसदी का रिटर्न दिया है।
अगर बिना पीएम नरेंद्र मोदी के बने एनडीए सरकार
यूबीएस ने एक दूसरी परिस्थति भी खड़ी की है। अगर एनडीए सरकार बिना नरेंद्र मोदी के फेस के बने तो? ऐसी हालत में भी शेयर बाजार में गिरावट देखने को मिल सकती है। शेयर बाजार का सेंटीमेंट नए चेहरे को देखकर गड़बड़ा सकता है। भले ही नया पीएम पुरानी पॉलिसी को चेंज ना करे, लेकिन उन पॉलिसी को समझने और उन्हें सुचारू रूप से चलाने में मुश्किल खड़ी हो सकती है।
अगर पाला बदल लें सहयोगी दल?
यूबीएस की रिपोर्ट ने एक तीसरी परिस्थिति भी सामने रखी है। वो ये कि बीजेपी के प्रमुख सहयोगी दल पाला बदलकर दूसरे गठबंधन से हाथ मिला सकते हैं। दूसरा गठबंधन सरकार भी बना ले। ऐसे में शेयर बाजार और ज्यादा रिएक्ट कर सकता है। क्योंकि अलग दल या गठबंधन की सरकार पुरानी पॉलिसी को बदलकर नई पॉलिसीज सामने लाएगी। जिसका असर शेयर बाजार पर साफ देखने को मिल सकता है। मिड टर्म या फिर लॉन्ग टर्म में वो पॉलिसीज कितनी सही हैं, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। जिसकी वजह से शेयर बाजार पैनिक कर सकता है। बाजार लंबे समय से चली आ रही मजबूत सरकार की पॉलिसी के साथ आगे बढ़ता है। जब भी सरकार बदलती है या फिर पुरानी सरकार कमजोर होती है तो पॉलिसी लेवल पर अस्थिरता की भावना खड़ी हो जाती है।