जबलपुरमध्य प्रदेश

भातखंडे संगीत महाविद्यालय की पहले बढ़ाई लीज़, फिर दे दिया तोड़ने का नोटिस

जून में नगर निगम ने दूसरी बार दिया है लीज को 30 साल का विस्तार

जबलपुर. संगीत जगत की धरोहर भातखंडे संगीत महाविद्यालय को हाल ही में जून माह में लीज का एक्सटेंशनल मिला है और 2 माह बाद यानि अगस्त में इसे फ्लाई ओवर की जद में आने के चलते नोटिस मिल गया। जिले के  संगीत जगत के  इस तीर्थ समान स्थल को बचाने की जद्दोजहद में इसका प्रबंधन लगा हुआ है।

1947 में हुई थी शुरुआत

गौरतलब है कि भातखंडे संगीत महाविद्यालय के बीज देश को आजादी मिलने वाले वर्ष यानि 1947 में डाल गए थे। दादा सखाराम देशपांडे ने जिले के संगीत सीखने के आकांक्षी जनों के लिए इस संस्था का गठन किया था। उनके अथक प्रयासों और तत्कालीन नगर के गणमान्य जनों ने इसमें सहयोग किया। पहले यह वर्तमान चंचलाबाई महाविद्यालय  परिसर में संचालित होता रहा जिसके बाद महाराष्ट्र हाई स्कूल में चला। वर्ष 1960 में महाविद्यालय के मौजूदा परिसर की लीज नगर निगम से मिली और इसका वर्तमान भवन बड़े संघर्षों के बाद एक मंजिला बना। बाद में डॉ. बलवंत राय हर्षे ने अपने पिता स्व. मनोहरराव हर्षे की स्मृति में इसकी दूसरी मंजिल बनवाई। तब से यह इसी स्वरूप में संचालित होता आया है।

मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

वर्तमान प्राचार्य विलास मंडपे बताते हैं कि हमने महाविद्यालय को बचाने और पुर्नस्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पिछले दिनों पत्र लिखा है जिसमें यह कहा है कि हम विकास के विरोधी नहीं हैं, मगर संगीत की इस धरोहर को बचाने के लिए हमें अन्यत्र पुर्नस्थापित करवाने में मदद करें।


मैंने ही भातखंडे संगीत महाविद्यालय की लीज का एक्सटेंशन जून माह में करवाया है। हमें क्या पता था कि दो माह बाद नगर निगम ही इसे तोड़ने का नोटिस देने वाला है। हमने इस संबंध में मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा है।
विलास मंडपे,प्राचार्य,भातखंडे संगीत महाविद्यालय

संगीत किसी भी व्यक्ति को डिप्रेशन से बाहर लाता है। यह हमारी महान प्राचीन परंपरा है। मैं स्वयं शारदा संगीत महाविद्यालय की छात्रा हूं और गायन का प्रशिक्षण ले रही हूं। सौ साल से पुराने शारदा संगीत महाविद्यालय को भी जगह की जरूरत है। भातखंडे संगीत महाविद्यालय को पुर्नस्थापित करने के साथ मेरी मांग ऐसे सभी संस्थानों को प्रश्रय देने की है।
कौशल्या गोंटिया,पूर्व मंत्री,मप्र शासन।


संगीत क्षेत्र की इतनी पुरानी संस्था जिसने देश को एक से बढ़कर एक कलाकार दिए उसकी यह दुर्दशा। क्या शासन में बैठे लोगों को कुछ नहीं दिख रहा है। हर हाल में इस संस्था को बचाया जाना चाहिए। मैंने यहां वर्ष 1981 से 1990 तक शिक्षा ली है। इसके बाद सितार विषय का प्राध्यापक बनकर रीवा कॉलेज ज्वाइन किया था।
प्रो. डॉ. अखिलेश सप्रे,शिक्षा विद्।

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