
HOLI 2025। रंगों और खुशियों का त्योहार होली पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह केवल रंगों से खेलना ही नहीं, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत, सामाजिक सौहार्द और प्रेम का भी प्रतीक है। इस दिन लोग पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं, संगीत और नृत्य के साथ उत्सव मनाते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि, भारत में कुछ ऐसे स्थान भी हैं जहां होली नहीं मनाई जाती। जी हां, ये स्थान किसी धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक घटना या सांस्कृतिक मान्यता के कारण इस रंगीन पर्व से दूरी बनाए हुए हैं। आइए जानते हैं उन जगहों के बारे में जहां होली के दिन रंगों की जगह एक अलग तरह की परंपरा निभाई जाती है।
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रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड – देवी को पसंद नहीं शोर
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में दो गांव – क्विली और कुरझान ऐसे हैं, जहां होली नहीं खेली जाती। यहां के लोगों का मानना है कि, उनकी इष्ट देवी त्रिपुरा सुंदरी को शोर-शराबा बिल्कुल पसंद नहीं है।
क्या है मान्यता?
कहा जाता है कि, अगर इन गांवों में होली खेली गई तो देवी नाराज हो सकती हैं और गांव में विपत्ति आ सकती है। इसी कारण, लोग यहां केवल पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ होली का पर्व मनाते हैं। गांव के लोग श्रद्धा के साथ देवी की आराधना करते हैं लेकिन रंगों और ढोल-नगाड़ों से परहेज करते हैं।
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दुर्गापुर, झारखंड – राजा का शोक बना परंपरा
झारखंड के बोकारो जिले के दुर्गापुर गांव में होली नहीं मनाई जाती। यह परंपरा लगभग 100 साल पुरानी है और इसके पीछे एक दुखद घटना जुड़ी हुई है।
क्या है मान्यता?
मान्यता है कि, इस गांव के राजा के बेटे की मौत होली के दिन हुई थी। इसके ठीक एक साल बाद राजा की भी मृत्यु होली के ही दिन हो गई। मरने से पहले राजा ने गांव वालों से कहा कि, इस गांव में अब कभी होली नहीं मनाई जाएगी। तब से लेकर आज तक यहां के लोग इस त्योहार से दूर रहते हैं और यह परंपरा चली आ रही है।
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रामसन, गुजरात – 200 साल पुराना श्राप
गुजरात के बनासकांठा जिले का एक गांव रामसन पिछले 200 वर्षों से होली नहीं मना रहा है। यहां के लोगों के अनुसार, इस गांव को श्राप दिया गया था कि यदि यहां होली खेली गई तो पूरे गांव में विपत्ति आ सकती है।
क्या है मान्यता?
कहा जाता है कि, इस गांव में एक बार साधु-संत आए थे, जो गांववालों के व्यवहार से नाराज हो गए थे। उन्होंने गांव को श्राप दिया कि, अगर यहां होली खेली गई तो गांव में आग लग जाएगी। दूसरा कारण यह बताया जाता है कि, 200 साल पहले जब गांव में होलिका दहन हुआ, तब गांव में भीषण आग लग गई और कई घर जलकर राख हो गए। इस घटना के बाद से गांववालों ने होली न मनाने की कसम खा ली और आज भी यह परंपरा जारी है।
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महाबलीपुरम, तमिलनाडु – जब पूर्वज धरती पर आते हैं
तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर महाबलीपुरम में भी होली का उत्सव नहीं मनाया जाता। यहां होली के बजाय मासी मगम नामक धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है।
क्या है मान्यता?
यहां के लोगों का विश्वास है कि, होली के दिन देवी-देवता और पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं। इस दिन पवित्र जल में स्नान करने से आत्माएं शुद्ध होती हैं, इसलिए रंगों से होली खेलने की परंपरा यहां नहीं है। यहां के लोग होली की जगह पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में व्यस्त रहते हैं।
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कोयंबटूर, तमिलनाडु – रंगों से परहेज
तमिलनाडु के कोयंबटूर में भी होली का उत्सव बहुत कम मनाया जाता है।
क्या है मान्यता?
यहां के लोग रंगों से होली खेलने के बजाय भगवान मुरुगन की पूजा करते हैं। इस दिन विशेष रूप से कवाड़ी उत्सव मनाया जाता है, जिसमें लोग कांवड़ लेकर मंदिरों में जाते हैं। यहां के लोग मानते हैं कि, होली खेलने से शरीर और मंदिर परिसर अशुद्ध हो सकते हैं।