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नवरात्रि स्पेशल : जानिए मैहर शारदा माता मंदिर का रहस्य, पट खुलने से पहले कौन करता है आरती और श्रृंगार…!

धर्म डेस्क। हमारे देश में मां दुर्गा के कुछ ऐसे चमत्कारी मंदिर है जहां विज्ञान भी अपने घुटने टेकते हुए दिखाई देता है। ऐसा ही एक चमत्कारी मंदिर नवगठित मैहर जिले के त्रिकूट पर्वत पर स्थित शारदा माता मंदिर है। मैहर का मतलब है मां का हार। मैहर माता को बुध्दि की देवी माना जाता है। पूरे भारत में यह मां शारदा का इकलौता मंदिर भी है। मंदिर से जुड़े कई रहस्य हमेशा से ही लोगों के बीच चर्चाओं की वजह रहे हैं। मैहर में शाम की आरती के बाद कपाट बंद कर दिए जाते है। सुबह सुबह मंदिर के अंदर से घंटा बजने और पूजा करने की आवाज आती है। जब मां के दरबार के पट खोलते हैं तो मां का श्रृंगार भी हो चुका होता है, जबकि मंदिर के कपाट बंद होने के बाद कोई भी इस मंदिर के अंदर नहीं रहता। ऐसे में आखिर कौन है जो मां की आरती और श्रृंगार रोज सुबह करता है….तो आज इसी राज से पर्दा उठाने की कोशिश करते हैं…

ये करते हैं सबसे पहले दर्शन, श्रृंगार और पूजन

इस बारे में एक बेहद रोचक किवदंती है। आल्हा और ऊदल नाम के दो भाई थे। दोनों बुंदेलखंड के प्रतापी वीर थे और उन्होंने ही जंगलों के बीच पहाड़ पर मां शारदा की इस छोटी सी मढ़िया की स्थापना की थी। एक कहानी ये भी है कि दोनों को पहाड़ पर ये मढ़िया दिखाई दी थी। ये दोनों मैहर वाली माता को शारदा माई के नाम से पुकारते थे। आल्हा और ऊदल ने 12 सालों तक मां की खूब सेवा की। मां ने प्रसन्न होकर उन्हें अमरता का वरदान दे दिया। दोनों मां के इतने बड़े भक्त थे कि दोनों ने अपनी जीभ काटकर मां को अर्पण कर दी थी, लेकिन मां ने इसे स्वीकार नहीं किया था। कहा जाता है कि आज भी ये दोनों भाई अदृश्य रुप में आते हैं और रोज सबसे पहले मां शारदा की आरती एंव श्रृंगार करते हैं।

आल्हा

दुनिया भर में गूंजते हैं आल्हा और ऊदल की वीरता के किस्से

बुंदेलखंड में आल्हा और ऊदल की वीरता से जुड़ी कई कहानियां काफी प्रचलित हैं। आल्हा और ऊदल महोबा के वीर थे, जिन्होंने अपने जीवन काल में 52 लड़ाइयों में भाग लिया। कालिंजर के राजा परमार के दरबारी कवि जगनिक ने इनके नाम पर आल्हा खण्ड नाम से एक काव्य की रचना भी की है, जिसमें उन्होंने 52 युद्धों का वर्णन करते हुए लिखा है कि आल्हा की आखिरी लड़ाई पृथ्वीराज चौहान के साथ हुई थी, जिसमें चौहान को पीछे हटना पड़ा था। तब से लेकर आज तक बुंदेलखंड में हर किसी की जुबान पर आल्हा होता है। ऐसा माना जाता है कि आल्हा की तान के जरिए ही समूचा बुंदेलखंड दोनों भाईयों की वीरता और उनकी मां शारदा के प्रति भक्ति को याद करता है।

52 शक्ति पीठों में एक भाग मैहर में गिरा था

हिंदू ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ का आयोजन किया था। इस में सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया लेकिन अपनी पुत्री सती को आमंत्रण नहीं भेजा। सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष की आज्ञा के बिना भगवान शिव से शादी की थी। इसलिए उनके पिता उनसे नाराज थे। सती इस महायज्ञ में शामिल होना चाहती थीं और भगवान शिव से यज्ञ में जाने की जिद करके बिना बुलाए वहां पहुंच गईं। मां सती को देखकर उनके पिता प्रजापति गुस्से में आ गए। उन्होंने सती और भगवान शिव का खूब अपमान किया। इस अपमान से दुखी होकर सती ने जलते हुए अग्नि कुंड में कूदकर खुद को भस्म कर लिया।

भगवान शिव को जैसे ही इसके बारे में पता चला वह अपनी अर्धांगनी सती के शरीर को लेकर विलाप करते हुए घूमने लगे। इसे देख भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया। ऐसी मान्यता है कि सती के शरीर के 51 हिस्से भारत के विभिन्न भागों में आकर नीचे गिरे। जहां-जहां ये हिस्से गिरे वहां शक्ति पीठ का निर्माण हुआ। उन्हीं 51 शक्तिपीठों में एक मां शारदा धाम है। पौराणिक मान्यता है कि यहां मां सती का हार गिरा था, इसीलिए इसका नाम मैहर हो गया।

 

रात में खाली हो जाता है मंदिर परिसर

प्राचीन मान्यता यह है कि जो भी रात में मंदिर में रुकता है, उसकी मृत्यु हो जाती है। यही कारण है कि शाम ढलते ही मंदिर के कपाट बंद कर मंदिर के पुजारी, सेवक और सुरक्षा बल का अमला भी पहाड़ी से नीचे उतर आता है। इसके बाद जब सुबह मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो माता का पूजन और उनकी प्रतिमा का श्रृंगार हो चुका होता है। इसका कारण जानने के लिए कई बार वैज्ञानिकों की टीम ने खोज की, लेकिन वे भी इस रहस्य को नहीं सुलझा पाए कि आखिर मां का श्रृंगार अपने आप कैसे हो जाता है और सबके जाने के बाद मंदिर के अंदर से घंटियों और आरती की आवाज कैसे आती है ?

तलवार की नोंक आज भी टेढ़ी

मान्यता है कि मां के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी तलवार मां को अर्पण कर उसकी नोक टेढ़ी कर दी थी, जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया। मंदिर परिसर में ही तमाम ऐतिहासिक महत्व के अवशेष अभी भी हैं जो आल्हा और पृथ्वीराज चौहान की लड़ाई की गवाही देते हैं। मंदिर के पीछे आल्हा तालाब है और एक अखाड़ा भी है। ऐसा माना जाता है कि दोनों भाई यहां कुश्ती लड़ा करते थे। उसके बाद दोनों मां के दर्शन करने त्रिकुट पर्वत पर आते थे।

(इनपुट – सोनाली राय)

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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