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वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक का निधन: बाथरूम में गिरने से हुआ हादसा, राजनीतिक विश्लेषक और स्वतंत्र स्तंभकार थे

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक का मंगलवार (14 मार्च) को 78 साल की उम्र में निधन हो गया। जानकारी के मुताबिक, सुबर करीब 9 जबे नहाने के दौरान वे बाथरूम में गिर गए। जिसके बाद तत्काल उन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। वे एक राजनीतिक विश्लेषक और स्वतंत्र स्तंभकार थे।

CM शिवराज ने जताया दुख

मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी डॉ. वेदप्रताप वैदिक के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा- वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक जी के निधन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। ईश्वर से दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान और परिजनों को यह गहन दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करता हूं। ऊँ शांति।

मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड का किया था इंटरव्यू

डॉ. वेदप्रताप वैदिक हिंदी भाषा के जाने माने पत्रकार थे। आखिरी बार वह सुर्खियों में तब आए थे जब उन्होंने साल 2014 में मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड और आतंकी हाफिज सईद का इंटरव्यू किया था। उनका इंटरव्यू काफी चर्चा में रहा था।

हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया

डॉ. वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ. राम मनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ाने वाले योद्धाओं में वैदिकजी का नाम अग्रणी है।

मप्र के इंदौर में हुआ था जन्म

पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तृत्व, संगठन-कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्षित करने वाले डॉ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उन्होंने 1958 से ही पत्रकारिता शुरू कर दी थी। वे देश के बड़े पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक थे। उन्होंने 78 वर्ष की उम्र में हरियाणा के गुडगांव जिले में आखिरी सांस ली।

कई भाषाओं के जानकार थे वेदप्रताप वैदिक

वे रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार थे। उन्होंने अपनी पी.एच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड एफ्रीकन स्टडीज़’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया।

उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की थी। वे चार साल तक दिल्ली में राजनीति शास्त्र के टीचर रहे। उनकी फिलॉस्फी और राजनीतिशास्त्र में भी काफी दिलचस्पी रही। वेदप्रताप वैदिक अनेक भारतीय और विदेशी शोध-संस्थानों और विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिंदी में लिखा

डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने 1957 में सिर्फ 13 साल की उम्र में हिन्दी के लिए सत्याग्रह किया और पहली बार जेल गए। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिंदी में लिखा था। इस वजह से स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (JNU)ने उनकी छात्रवृत्ति रोक दी थी। 1966-67 में भारतीय संसद में इस मुद्दे पर हंगामे के बाद इंदिरा गांधी सरकार की पहल पर JNU के नियमों में बदलाव हुआ और उन्हें वापस लिया गया।

 

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