
विजय एस गौर-भोपाल। यह वाकया 1942 का है, जब नैनीताल के तल्लीताल से मल्लीताल रास्ते पर एक बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था ‘‘इधर कुत्तों व भारतीयों का प्रवेश मना है’’ इसको मेरे पिता ने उखाड़कर फेंक दिया था। इस पर अंग्रेजों ने बेंतों से उनकी बेरहमी से पिटाई की थी, जिसके बाद छूटने पर पं. गोविंद वल्लभ पंत ने उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा था कि, बेटे अंग्रेज का एक एक बेंत हमें देशभक्ति का पाठ पढ़ाता है।
यह बताते हुए राजधानी के मशहूर नाड़ी वैद्य स्व. डॉ. लक्ष्मीकांत मिश्र के बेटे रविकांत मिश्र पूर्व उप महा प्रबंधक , उद्यमिता का चेहरा चमक उठता है। वह अपने पिता के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी यादों को पीपुल्स समाचार के साथ साझा कर रहे थे। उन्होंने बताया कि लक्ष्मीकांत मिश्र ने अपने पिता बालमुकुंद मिश्र से आयुर्वेद की शिक्षा लेने के साथ ही आयुर्वेद रत्न की परीक्षा भी उत्तीर्ण की।
1940 से शुरू गिरफ्तारी का सिलसिला आजादी तक चला
1940 में तहसील के घंटाघर पर तिरंगा फहराने पर गिरफ्तारी का शुरु हुआ सिलसिला देश को आजादी मिलने तक जारी रहा। रवि मिश्र बताते हैं कि 1942 में कोतवाली का घेराव किया तो पुलिस ने लाठियों से से मारा, जिसकी चोट से बना निशान ताजिंदगी उनके चेहरे पर रहा। जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो 12 अगस्त 1942 को जेल भेजे गए, जिसके छह महीने बाद बाहर आए। फिर 10 जुलाई 1945 से 26 जनवरी 1946 तक जेल में रहे।