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बंदर हीरा खदान पर सरकार-बिड़ला ग्रुप में ठनी, मामला हाईकोर्ट पहुंचा

मप्र खनिज विभाग ने बिड़ला ग्रुप को दिया था नोटिस

भोपाल। छतरपुर स्थित बक्स्वाहा बंदर हीरा खदान मेसर्स ऐस्सल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आदित्य बिड़ला ग्रुप) मुंबई द्वारा सरेंडर करने के बाद यह मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। बिड़ला ने दो माह पहले हीरा खदान को चलाने में असमर्थता जाहिर करते हुए इसे सरेंडर करने के लिए खनिज साधन विभाग को प्रस्ताव भेजा था। विभाग ने उन्हें पक्ष रखने को कहा है। इससे नाराज बिड़ला ग्रुप करीब एक माह पहले हाईकोर्ट चला गया। बता दें कि कंपनी को 50 वर्ष के लिए खदान लीज पर दी गई थी, पर 3 वर्ष में वन एवं पर्यावरण की अनुमति लेने में अक्षम रहने पर कंपनी ने खदान सरेंडर कर दी।

क्या है मामला

बिड़ला ग्रुप को खदान सरेंडर करने पर 27 करोड़ रुपए (अर्नेस्ट मनी) से अधिक की राशि देनी पड़ सकती है। इसको लेकर कंपनी और सरकार में खींचतान है। कंपनी खदान सरेंडर के बाद सरकार से धरोहर राशि वापस लेना चाहती है, लेकिन सरकार देने और नहीं देने को लेकर कानूनी पहलुओं का परीक्षण कर रही है।

बिड़ला ग्रुप ने वर्ष 2019 में लीज पर ली थी खदान

आदित्य बिड़ला ग्रुप ने अगस्त 2019 में सर्वाधिक बोली लगाकर 364 हेक्टेयर में फैली यह हीरा खदान ली थी। 19 दिसम्बर 2019 को सरकार ने आशय पत्र (एलओआई) जारी किया था। तत्कालीन खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल ने ये पत्र कंपनी के तत्कालीन प्रबंध संचालक तुहीन कुमार मुखर्जी और अशोक कुमार को सौंपा था। बंदर डायमंड ब्लॉक की अधिकतम बोली बिड़ला ग्रुप द्वारा 30.05 प्रतिशत लगाई गई थी, जो उच्चतम रही। इस नीलामी प्रक्रिया में देश की बड़ी कंपनियों में शुमार अडाणी ग्रुप 30 प्रतिशत अधिकतम बोली लगाकर दूसरे स्थान पर रही।

प्रोजेक्ट केन-बेतवा लिंक परियोजना में उलझा

केन-बेतवा लिंक परियोजना में अब यह मामला और उलझ गया है। बंदर हीरा खदान में 34.20 मिलियन कैरेट हीरा भंडार होने की संभावना है, जिसका अनुमानित मूल्य 55 हजार करोड़ रुपए आंका गया है। इस खदान के चालू होने पर राज्य शासन को लीज अवधि में लगभग 16 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त प्रीमियम के रूप में मिलते। इसके अतिरिक्त 6,000 करोड़ रुपए रॉयल्टी के रूप में खनिज मद में प्राप्त होना था। इसकी लीज की अवधि 50 वर्ष के लिए दी गई थी। लेकिन, केन-बेतवा लिंक परियोजना और वन एवं पर्यावरण की अनुमति नहीं मिलने पर कंपनी पीछे हट गई।

21 वर्ष से चल रहा है मामला

बक्स्वाहा में रियो टिंटो ने साल 2002 में रिकोनेंस परमिट पर काम शुरू किया था, जिसके तहत सर्वे किया जा सकता है। 2006 में उसे 5 साल के लिए 950 हेक्टेयर में प्रॉस्पेक्टिंग लायसेंस (पीएल) मिला था। हीरे के कॅमर्शियल खनन के लिए 2008 में कंपनी ने माइनिंग लाइसेंस के लिए आवेदन किया था, लेकिन खदान क्षेत्र वनभूमि में आ रही थी। इसके चलते केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने खनन की अनुमति नहीं दी थी।

पर्यावरण के चक्कर में उलझी खदान

यह खदान पर्यावरण के चक्कर में उलझी है। रियोटिंटो ने भी पर्यावरण की अनुमति नहीं मिलने से वर्ष 2017 में खदान संचालित करने से मना कर दिया था। इसके बाद कमलनाथ सरकार में इसकी नए सिरे से नीलामी हुई थी। नीलामी में बिड़ला ग्रुप को अधिकतम पांच वर्ष तक तमाम अनुमति और खदान संचालित करने का समय दिया था।

मैं तेलंगाना में चुनाव ड्यूटी पर हूं। मुझे अपडेट जानकारी नहीं है। खनिज नियम के अनुसार ही बक्स्वाहा हीरा खदान के मामले में कार्रवाई की जाएगी। – राजीव रंजन मीना, संचालक, खनिज साधन विभाग मप्र

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