भोपालमध्य प्रदेश

Bhopal News : कोरोना के बाद अब मीजल्स का खतरा, बच्चों के साथ बड़े भी हो रहे संक्रमित

अस्पतालों में हर दिन एक से दो मरीज पहुंच रहे, एक साल में संक्रमण खत्म करने का टारगेट

भोपाल। अवधपुरी निवासी रोहित मिश्रा का परिवार मीजल्स जैसे लक्षण वाली बीमारी से जूझ रहा है। पहले उनकी जुड़वां बेटियों को बुखार के बाद शरीर पर दाने निकल आए। वह ठीक हुईं तो रोहित, उनकी पत्नी और बहन को इसी तरह की दिक्कत हुई। जांच करवाई तो डॉक्टरोें ने आइसोलेट रहने की सलाह दी।

यह परेशानी सिर्फ रोहित के परिवार की नहीं है। दरअसल, कोरोना (Covid-19) के बाद डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया के मामलों के बीच अब मीजल्स रूबेला (खसरा) शहरियों के लिए मुसीबत बन रहा है। शहर के सरकारी अस्पतालों में खसरा के लक्षणों के साथ मरीज सामने आ रहे हैं। कोरोना काल में मीजल्स रूबेला टीकाकरण ठप होने से अब संक्रमण बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि खसरा गंभीर वायरल बीमारी है, जो बच्चों में सबसे ज्यादा होती है। अब यह वयस्कों में भी तेजी से हो रही है।

खसरे के लक्षण

बुखार, स्किन रैशेज, गले में खराश और खांसी जैसी दिक्कत होती है। सांस नली और श्वसन प्रणाली को गंभीर नुकसान पहुंचता है। खसरे से पीड़ित व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकता है।

अब अभियान चलाकर होगा टीकाकरण

संक्रमण बढ़ने के बाद अब स्वास्थ्य विभाग ने खसरा के निर्मूलन की तैयारी की है। दोनों बीमारियों से बचाव के लिए 95 प्रतिशत से ज्यादा टीकाकरण किया जाएगा। टीका लगाने के लिए विशेष अभियान चलेगा। इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों को पत्र लिखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने की बात कही है। इसी तर्ज पर जल्द ही 2023 तक खसरा-रूबेला को खत्म करना है।

कोरोना में 6% कम हो गया टीकाकरण

भोपाल के जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. कमलेश अहिरवार बताते हैं कि कोरोना के पहले प्रदेश में दो साल तक के 92 प्रतिशत बच्चों को खसरा-रुबेला का टीका लगाया जा चुका था। कोरोना काल में टीकाकरण लगभग बंद रहा। हेल्थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (HMIS) के हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में दो साल तक के 86 प्रतिशत बच्चों को ही यह टीका टीका लगा है। यानी इसमें करीब 6 प्रतिशत की कमी आई है।

एक संक्रमित से 18 लोगों को हो सकता है खसरा

जेपी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. राकेश श्रीवास्तव के अनुसार, खसरे की एक मूल प्रजनन संख्या या आर-नॉट (आर 0) 12 से 18 होती है। यानी, एक संक्रमित व्यक्ति 12 से 18 अन्य लोगों में संक्रमण फैला सकता है। यह उन बच्चों के लिए विशेष रूप से खतरनाक हो सकता है, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है और वे कुपोषित हैं। संक्रमित होने वाले प्रत्येक 1,000 बच्चों में से लगभग 1 से 3 बच्चों की मौत हो जाती है।

जानें क्या हैं खसरा और रूबेला

खसरा : यह वायरस से होने वाली बीमारी है, जो कोरोना और दूसरी बीमारियों से बहुत ज्यादा संक्रामक है। इससे प्रभावित होने वाले बच्चों में करीब 30 प्रतिशत की मौत हो जाती है। बाकी को अलग-अगल तरह की दिव्यांगता होती है। यह वायरस शरीर के भीतर की झिल्लियों पर असर डालता है।

रूबेला : यह भी वायरस से फैलती है। इस बीमारी से प्रभावित महिला से जन्म लेने वाले बच्चों में जन्मजात विकृति रहती है। 9 से 12 माह की उम्र में खसरा-रुबेला का पहला और 16-24 माह में दूसरा टीका लगता है।

ऐसे करें बचाव

  • यह रोग छूने से फैलता है, इसलिए मरीज को आइसोलेट कर दें।
  • पर्याप्त आराम जरूरी है। कोई निश्चित दवा नहीं, सिर्फ लक्षणों के आधार पर इलाज होता है।
  • शरीर में पानी की कमी न होने दें। सूप, जूस और हर्बल चाय जैसी चीजों का भी सेवन करें।
  • विटामिन ए वाले खाने का सेवन करना चाहिए, विटामिन ए की कमी होने से खसरे का खतरा बढ़ जाता है।
    (MP में इस साल खसरा के 248 मरीज मिले, जबकि रूबेला के 117 मरीज सामने आए।)

खसरा रूबेला के उन्मूलन के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का पत्र मिला है। 2023 तक प्रदेश को एमआर मुक्त बनाना है। इसके लिए विशेष अभियान चलाए जाएंगे।
-डाॅ. संतोष शुक्ला, राज्य टीकाकरण अधिकारी

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