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Swatantrya Veer Savarkar : सावरकर पर फिल्म बनेगी, तो गांधीजी की सोच क्यों दिखाएंगे, पढ़िए अभिनेता संतोष ओझा का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू…

चर्चित फिल्म 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' में लोकमान्य तिलक का किरदार निभाने वाले संतोष ओझा आलोचकों को करारा जवाब

अमिताभ बुधौलिया/अमित सेन, मुंबई। रणदीप हुड्डा अभिनीत ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ बायोग्राफिकल फिल्म (Actor Randeep Hooda New Film) लगातार चर्चा में है। एक तबका फिल्म की तारीफ में कसीदे गढ़ रहा है, तो दूसरा आलोचना। फिल्म में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की भूमिका निभाने वाले मंझे हुए अभिनेता संतोष ओझा (actor Santosh Ojha interview) ने फिल्म को लेकर चल रहीं आलोचनाओं, सावरकर और गांधी के बीच वैचारिक मतभेद सहित विभिन्न सवालों का बखूबी जवाब दिया। पढ़िए Peoplesupdate.com पर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू…

सवाल-गांधीवादी खेमा ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ की जबर्दस्त आलोचना कर रहा है, आप क्या कहेंगे?

जवाब- ये तो हमेशा से रहा है कि नरम दल वाले गरम दल वालों की आलोचना करते रहे हैं। विचारों की लड़ाई है…और लोकतंत्र है। वो भी अपनी जगह सही हैं और जो ये फिल्म बनाकर विचार को दिखाना चाहते हैं, वो भी अपनी जगह सही हैं। ये सब तो चलता ही रहता है। जब सावरकरजी पर फिल्म बनेगी, तो गांधीजी की सोच थोड़ी ही दिखाएगी जाएगी।

जाहिर तौर पर गांधीजी के चाहने वाले तो आलोचना करेंगे ही। पर इस फिल्म को देखने के बाद ही ये पता चलेगा कि सावरकरजी गांधीजी से नफरत नहीं करते थे, उनकी जो अहिंसा वाली नीति है उसके विरोध में थे, क्योंकि सावरकरजी सशस्त्र क्रांति की बात करते थे। 1857 में जो पहली सशस्त्र क्रांति शुरू हुई थी, वहां से ये जो है न…एक यज्ञ शुरू हुआ था, उसे आगे बढ़ाने का इन्होंने एक काम किया। बाद में सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह सबने किया था। तो गरम दल की यही नीति थी कि अब बातचीत से नहीं, अहिंसा से काम नहीं करना है…अंग्रेजों को मार भगाना है और ये तो हर जगह हुआ…विश्व में हर जगह इस तरह के युद्ध हुए।

सवाल-सावरकर को एक तबगा देशभक्त नहीं मानता?

जवाब- हां, आप सही कह रहे हैं कि देश में एक तबगा सावरकरजी को देशभक्त नहीं मानता, क्योंकि इतिहास में बहुत सारी ऐसी चीजें हैं, जो बताई नहीं गईं, पढ़ाई नहीं गईं, तो कैसे समझ में आएगा? जब सच सामने आएगा, तब पता चलेगा न। आखिर वो क्या हैं, उसको देखने के बाद ही समझ में आएगा। मुझे लगता है कि गरम दल…नरम दल; जितने भी पहले के लोग थे; सब देश को आजाद कराना चाहते थे, उनके तरीके कुछ भी हों। अब कोई एक तरीका हावी हो गया है, तो उसके लिए किसी एक को दोष नहीं दे सकते हैं। आप जब तक कि ये फिल्म देखेंगे नहीं, इनके बारे में पढ़ेंगे नहीं…तब तक आप कुछ नहीं कह सकते और आप उनके विरुद्ध-खिलाफ जा सकते हैं, पर उन्होंने जो योगदान किया है, उसको नकार नहीं सकते हैं।

सवाल- गांधीजी को लेकर आपके क्या विचार हैं, हिंदू-मुस्लिम के बीच जो खाई है, उसके लिए कौन जिम्मेदार?

देखिए क्या है कि बहुत सारी चीजें आजादी से पहले ऐसी हुई हैं, जिसके बारे में बहुत सारे टकराव हैं। गांधी जी तो खुद एक समय में कांग्रेस को भंग करना चाहते थे। तो उनके जो विचार हैं…यानी अहिंसा; हर समय वो सही नहीं है। अन्यथा ये जो सारी कंट्रीज हैं, उनके पास सेना नहीं होती, मतलब; सेना की जरूरत नहीं होती, बॉर्डर की जरूरत नहीं होती, वीजा की जरूरत ही नहीं होती। तो अहिंसा एक स्पेसिफिक सिचुएशन में लागू होती है। लेकिन अगर सामने सशक्त सशस्त्र क्रांति वाले लोग हों और जो शैतान हों, तो उनके सामने आप आत्मरक्षा के लिए क्या करेंगे? इतनी जो सेनाएं हैं, उनपे जो खर्च हो रहा है, वो क्यों? तो इसका मतलब है कि सामने वो कौन बंदा है, जिससे आप निपटने वाले हो? बात उस लेवल पे होती है।

जाहिर तौर पर गांधीजी के चाहने वाले तो आलोचना करेंगे ही। पर इस फिल्म को देखने के बाद ही ये पता चलेगा कि सावरकरजी गांधीजी से नफरत नहीं करते थे, उनकी जो अहिंसा वाली नीति है उसके विरोध में थे, क्योंकि सावरकरजी सशस्त्र क्रांति की बात करते थे। 1857 में जो पहली सशस्त्र क्रांति शुरू हुई थी, वहां से ये जो है न…एक यज्ञ शुरू हुआ था, उसे आगे बढ़ाने का इन्होंने एक काम किया। बाद में सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह सबने किया था। तो गरम दल की यही नीति थी कि अब बातचीत से नहीं, अहिंसा से काम नहीं करना है…अंग्रेजों को मार भगाना है और ये तो हर जगह हुआ…विश्व में हर जगह इस तरह के युद्ध हुए।

सवाल-सावरकर को एक तबगा देशभक्त नहीं मानता?

जवाब- हां, आप सही कह रहे हैं कि देश में एक तबगा सावरकरजी को देशभक्त नहीं मानता, क्योंकि इतिहास में बहुत सारी ऐसी चीजें हैं, जो बताई नहीं गईं, पढ़ाई नहीं गईं, तो कैसे समझ में आएगा? जब सच सामने आएगा, तब पता चलेगा न। आखिर वो क्या हैं, उसको देखने के बाद ही समझ में आएगा। मुझे लगता है कि गरम दल…नरम दल; जितने भी पहले के लोग थे; सब देश को आजाद कराना चाहते थे, उनके तरीके कुछ भी हों। अब कोई एक तरीका हावी हो गया है, तो उसके लिए किसी एक को दोष नहीं दे सकते हैं। आप जब तक कि ये फिल्म देखेंगे नहीं, इनके बारे में पढ़ेंगे नहीं…तब तक आप कुछ नहीं कह सकते और आप उनके विरुद्ध-खिलाफ जा सकते हैं, पर उन्होंने जो योगदान किया है, उसको नकार नहीं सकते हैं।

सवाल-गांधीजी को लेकर आपके क्या विचार हैं, हिंदू-मुस्लिम के बीच जो खाई है, उसके लिए कौन जिम्मेदार?

देखिए क्या है कि बहुत सारी चीजें आजादी से पहले ऐसी हुई हैं, जिसके बारे में बहुत सारे टकराव हैं। गांधी जी तो खुद एक समय में कांग्रेस को भंग करना चाहते थे। तो उनके जो विचार हैं…यानी अहिंसा; हर समय वो सही नहीं है। अन्यथा ये जो सारी कंट्रीज हैं, उनके पास सेना नहीं होती, मतलब; सेना की जरूरत नहीं होती, बॉर्डर की जरूरत नहीं होती, वीजा की जरूरत ही नहीं होती। तो अहिंसा एक स्पेसिफिक सिचुएशन में लागू होती है। लेकिन अगर सामने सशक्त सशस्त्र क्रांति वाले लोग हों और जो शैतान हों, तो उनके सामने आप आत्मरक्षा के लिए क्या करेंगे? इतनी जो सेनाएं हैं, उनपे जो खर्च हो रहा है, वो क्यों? तो इसका मतलब है कि सामने वो कौन बंदा है, जिससे आप निपटने वाले हो? बात उस लेवल पे होती है।

800 साल तो आदमी इसलिए गुलाम हुआ है न…कि हमने ऐसी नीतियां बना दीं, आत्मरक्षा के लिए हमने कभी सोचा नहीं। जाहिर तौर पर अगर आप किसी भी एक आदमी का पक्ष लेंगे, दूसरे आदमी की चीजों को नहीं समझेंगे…तो खाई तो बीच में पड़ेगी ही। जो विभाजन हुआ है, वो सही थोड़ी हुआ है। धर्म के आधार पर विभाजन हुआ है। तो कुछ ऐसे विवाद हैं, जिसपे डिबेट होना चाहिए और हो भी रहे हैं। वो सच सामने आना चाहिए…पता चलेगा कि आखिर ये दोनों लोग क्यों लड़ते रहे? जब दोनों तरफ से प्रेम होता है, तो अच्छी बात होती है। प्रेम के लिए हमें एक साथ काम करना चाहिए। सबका विकास करना चाहिए, तब प्रेम बनेगा और सब एक-दूसरे के धर्म की, जात की इज्जत करेंगे। तब यह प्रेम बनेगा। विभाजन तो एक तरह से त्रासदी है।

सवाल-कुछ लोग ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ को फ्लॉप बताने में लगे हैं?

देखिए क्या है एंटी पब्लिसिटी भी होती है। जो लोग नहीं चाहते हैं…वो तो यह बोलेंगे ही। सोशल मीडिया में तो यह लिखा ही जाएगा न कि फिल्म नहीं चली…लेकिन आप यह देखिए फिल्म धीरे-धीरे अपनी गति बढ़ा रही है और दर्शकों के दिलों पर राज कर रही है। फर्स्ट वीक में जरूर थोड़ी कमजोर थी फिल्म, क्योंकि चुनाव का माहौल था और होली भी थी, लेकिन धीरे-धीरे सेकंड वीक में फिल्म चली।

माउथ पब्लिसिटी से जो लोग देखने जा रहे हैं..फिल्म को बहुत पसंद कर रहे हैं। हुड्डा साहब की बहुत तारीफ कर रहे हैं। सारे अभिनेताओं की तारीफ़ हो रही है…मेरी भी, जो मैंने लोकमान्य तिलक की भूमिका निभाई। बैकग्राउंड की हो रही है…सिनेमेटोग्राफी की, एडिटिंग की…हर चीज की तारीफ़ हो रही है। यह काबिल-ए-तारीफ़ है कि ऐसे प्रोड्यूसर, ऐसे डायरेक्टर बहुत कम होते हैं, जो यह रिस्क ले सकें। इस तरह की फिल्म बनाते हैं, जो आने वाली जेनेरेशन को एक सोशल मैसेज दे।

इस तरह की फिल्म आज की जेनेरेशन को दिखाना बहुत मुश्किल काम है। मतलब जोखिम भरा काम है। अब आप जब फिल्म देखेंगे, तो आपको पता चलेगा की कितनी सही बायोपिक है। जो कहीं भी Inappropriate (अनुचित) नहीं लगेगी। कहीं से भी आपको गलत फील नहीं आएगा। कहीं से ऐसा नहीं आएगा कि नाच गाने वाली फिल्म है। यह सच पर आधारित फिल्म है। लोग देखेंगे इसको और लोग देख रहे हैं। दिलों पे राज कर रही है। यह फिल्म एक क्रांति है.. देखना चाहिए देश में और भी क्या-क्या हुआ है।

सवाल-लोकमान्य तिलक के किरदार को निभाने किस हद तक तैयारी की?

Obesely तिलक की भूमिका के लिए मुझे तो तैयारी करनी ही पड़ी है…जो एक एक्टर करता है। पढ़ना पड़ा है, देखना पड़ा है, रिसोर्स कलेक्ट करने पड़े हैं। डायरेक्टर ने समझाया कि आपको इंटर्नली कैरेक्टर पर ज्यादा ध्यान देना है। एक्सटर्नली नहीं। कॉपी करने के चक्कर में नहीं रहना है। तो इंटर्नली मैंने सोचा है और तिलक जी के बारे में पढ़ा। वो तो लीजेंड थे। उनके समान तो कोई भी एक्टर हो ही नहीं सकता है। बस एक छोटी सी Stimuli(उत्तेजना) है, जो काम करती है।

शुरू से हम भी क्रांतिकारी हैं। पापा इंजीनियर बनाना चाहते थे। नेवी में था, लेकिन एक्टर बनने के लिए छोड़कर आ गया। एज एन एक्टर में ट्रेंड हूं, तो यह सारी चीजें मुझे हेल्प करती रहीं। दो साल लगे इस फिल्म को बनने में। इस बीच तिलकजी के बारे में इतना कुछ रिसर्च किया है कि उसने मुझे बहुत हेल्प किया।

जाहिर तौर पर इस तरह के कैरेक्टर चुनौतीपूर्ण होते ही हैं। डर लगा रहता है हमेशा एक एक्टर को, लेकिन डायरेक्टर साहब और सबने बहुत हेल्प की मेरी। एक फ्रीडम दिया। मेहनत रंग ला रही है तो ख़ुशी भी हो रही है बहुत ज्यादा।

सवाल-सावरकर को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ा हुआ है, आप क्या कहेंगे?

अब आप कुछ भी कह सकते हैं सावरकर जी को, पर हमारे जो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने सावरकर के बारे में कहा है…पूरी तरह सत्य है। दूसरे आपके बारे में क्या कह रहे हैं, उससे मतलब नहीं होना चाहिए। कोई कायर कह सकता है उनको…कोई कुछ भी कह सकता है, लेकिन उसपे मत जाइए…आप पिक्चर को देखिए…आप देखिए की एक बंदे को 50 साल की कारावास हुई है, जबकि हम एक दिन जेल में नहीं काट सकते हैं। आखिर क्यों कारावास हुई? जितने भी गरम दल के लोग थे, जो क्रांतिकारी थे…वे फांसी पर क्यों चढ़ गए…क्यों मर गए? उनके बारे में पढ़ाया नहीं जाएगा… उनके बारे में चैप्टर नहीं होगा। किसी एक की वजह से थोड़ी आजादी मिली…उसको देखना होगा…समझना होगा। यहां किसी एक पार्टी की बात ही नहीं हो रही है। यहां तो हम एक क्रांतिकारी के बारे में बात कर रहे हैं। पार्टियां तो बदलती रहती हैं, लेकिन देश सबसे ऊपर है…धर्म से भी ऊपर है राष्ट्र। सावरकरजी ने राष्ट्र के लिए किया है। जितने सारे भी क्रांतिकारी हैं, जो शहीद हुए हैं या उन्होंने जो लड़ाइयां लड़ी हैं, मैं तो यह मानता हूं की नरम दल और गरम दल दोनों ने मिलकर आजादी दिलाई।

तिलक साहब ने तो पूर्ण स्वराज की सबसे पहले बात की थी। उन्होंने तो गोखले साहब को डांट भी दिया था कि आप 20 साल से कांस्टिट्यूशनल रिफार्म(संवैधानिक सुधार) की बात कर रहे हैं, क्या मिला आपको? इन सबके नतीजे अंग्रेजों के अत्याचार बढ़ गए थे। आप किसी भी आइडियोलॉजी को फॉलो कर सकते हैं, लेकिन आपको विकास देखना पड़ेगा। इस देश में कितना सारा कुछ बदल रहा है…लोग तो बोलते ही रहेंगे न। लोगों का काम है कहना…छोड़ो बेकार की बातों को। आप फिल्म देखिए। मैं अपने दर्शकों से अनुरोध करूंगा कि फिल्म को देखिए…बहुत ही अच्छी फिल्म है। फैमिली के साथ जाइए…नेक्स्ट जेनेरेशन को यह फिल्म दिखाइए। उनको पता होना चाहिए कि आजादी के लिए हमारे जो क्रांतिकारी हैं, उन्होंने कितना दुःख झेला है…कितनी यातनाएं झेली हैं। मुझे मंगल पांडे से लेकर रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, बाबू कुंवर सिंह, लाल-बाल-पाल, गोखले, गांधी, आजाद, भगत सिंह, खुदीराम, अशफाक, बोस और वो सब क्रांतिकारी पसंद हैं, जो हिंसा और अहिंसा से बस आजादी चाहते थे। सब अपनी-अपनी जगह सही थे। बस जरूरत है हमें राष्ट्र के लिए एक रहने की…एकता में बल है।

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