
टोक्यो। जापान के अंतरिक्ष उद्योग ने गुरुवार को एक प्रोटोटाइप रॉकेट इंजन का परीक्षण किया, जो अंतरिक्ष सेक्टर में नए अध्याय को खोल रहा है। जापानी वैज्ञानिकों ने इस रॉकेट इंजन को लॉन्च करने गाय के गोबर से बने ईंधन का इस्तेमाल किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये ईंधन प्रचुर मात्रा में मौजूद स्थानीय स्रोत से हासिल किया गया है। वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग के दौरान गाय के गोबर से बने बायोमीथेन गैस से रॉकेट को लॉन्च किया है।
जापान के ग्रामीण उत्तरी शहर ताकी में लगभग 10 सेकंड के लिए एक खुले हैंगर दरवाजे से क्षैतिज रूप से 30-50 फीट की दूरी पर इस रॉकेट के इंजन ने एक नीली और नारंगी लौ फेंकी। इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीज के मुख्य कार्यकारी ताकाहिरो इनागावा ने कहा कि गाय के गोबर से बना ये ईंधन काफी सस्ता है। इंटरस्टेलर ने औद्योगिक गैस उत्पादक फर्म एयर वॉटर के साथ मिलकर रॉकेट के लिए ईंधन बनाने का काम किया है। यह किसानों संग काम करता है, जिनके पास अपने गोबर को बायोगैस में संसाधित करने के उपकरण हैं, जिसे वायु जल एकत्र करता है और रॉकेट ईंधन में बदल देता है।
रास्ते खुले: पूरी दुनिया में होगा इस ईंधन का इस्तेमाल
इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीज के मुख्य कार्यकारी ताकाहिरो इनागावा ने कहा, मुझे नहीं लगता कि यह मान लेना अतिश्योक्ति होगी कि इसे पूरी दुनिया में दोहराया जाएगा। हम ऐसा करने वाले पहले निजी व्यवसाय हैं। जापानी वैज्ञानिकों ने कहा कि गाय के गोबर से बना ये ईंधन काफी हाई क्वालिटी का है और बहुत जल्द ये ईंधन, अंतरिक्ष में रॉकेट को भेजने के लिए पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जाएगा।
मांग: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होना चाहिए बदलाव
एयर वाटर के इंजीनियर टोमोहिरो निशिकावा ने कहा कि जापान के पास नेचुरल रिसोर्सेस यानी ऊर्जा के संसाधनों की कमी है, लिहाजा अब घरेलू स्तर पर उत्पादित, कार्बन-तटस्थ ऊर्जा को सुरक्षित करने का वक्त आ गया है। उन्होंने कहा, इस क्षेत्र की गायों से प्राप्त कच्चे माल में बहुत अधिक संभावनाएं हैं। अंतर्राष्ट्रीय मामलों में कुछ बदलाव होना चाहिए, यह महत्वपूर्ण है कि जापान के पास एक ऊर्जा स्रोत हो, जो पहले से ही उसके हाथ में है।
इधर, चीनी वैज्ञानिकों ने बनाई जमीन से 2.5 किमी नीचे प्रयोगशाला
चीन ने दुनिया की सबसे गहरी प्रयोगशाला बनाई है। इसकी गहराई 2400 मीटर है यानी धरती से करीब 2.5 किलोमीटर नीचे है। चीन ने इस प्रयोगशाला में काम करना भी शुरू कर दिया है। चीन दावा कर रहा है कि धरती की गहराई में वह डार्क मैटर की तलाश में गया है। डार्क मैटर वैज्ञानिकों के लिए आज भी रहस्य बना हुआ है। माना जाता है कि पूरी दुनिया डार्क मैटर से बनी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि डार्क मैटर और डार्क एनर्जी की वजह से ही पूरा यूनिवर्स एक क्रम में बंधा हुआ है। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने माना है कि चांद, तारों, सूरज और ग्रहों के बीच का तालमेल भी डार्क मैटर की वजह से है, क्योंकि पूरे यूनिवर्स में इतना गुरुत्वाकर्षण है ही नहीं कि वो सभी ग्रहों, तारों, सूरज, चांद को एक ऑर्बिट में बांध सकें। माना जाता है कि डार्क मैटर ऐसे पदार्थों से बना है, जो न तो रोशनी को अपनी ओर खींचते हैं और न ही उनसे रोशनी निकलती है। पिछले साल अमेरिका में डार्क मैटर की खोज के लिए लक्स जेप्लिन एलजेड नाम का एक प्रयोग किया गया था। चीन धरती के नीचे जिस प्रयोगशाला में काम कर रहा है, उसका नाम जिनपिंग लैब है और उसे बनाने में तीन साल का समय लगा।
सस्ता होने के साथ पर्यावरण के लिए भी बेहतर
आवश्यक तरल बायोमीथेन गैस पूरी तरह से दो स्थानीय डेयरी फार्मों से गाय के गोबर से बनाया गया था। हम ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कर रहे हैं, क्योंकि यह पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि इसे स्थानीय स्तर पर उत्पादित किया जा सकता है और यह सस्ता भी है। – ताकाहिरो इनागावा, मुख्य कार्यकारी, इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीज, जापान
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