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‘कुब्जा’ नदी के सूखने से सब्जियों की फसल नहीं ले पा रहे किसान

इसके किनारे बसे दर्जनों गांवों के किसान खेती से हुए वंचित

नीलम तिवारी सोहागपुर। नर्मदापुरम जिले के सोहागपुर ब्लॉक मे नर्मदा नदी के दक्षिण तट पर ‘कुब्जा संगम’ स्थित है। सतपुड़ा की तलहटी से निकली कुब्जा नदी कोरनी, मछुवासा, रेन, पीलिया आदि नदियों को साथ लेती हुई अजेरा गांव में नर्मदा नदी में समाहित हो जाती हैं। इसलिए इस स्थान को रेवा कुब्जा संगम कहा गया है। हालांकि, लंबे समय से अवैध उत्खनन, वनों की कटाई, अत्यधिक नलकूपों की खुदाई और अन्य कारणों से यह नदी सूख गई। नदी के किनारे बसे गांवों के स्थानीय लोगों को कहना है कि कोई 8-10 साल पहले तक कुब्जा नदी के डूब क्षेत्र में सब्जियों का उत्पादन हो जाया करता था, लेकिन अब मार्च तक यह पूरी तरह सूख जाती हैं, जिससे सब्जियों का उत्पादन बंद हो चुका है। इसके अलावा मूंग की खेती पर भी असर डाला। अब केवल गेहूं की फसल कहीं-कहीं ली जाती है।

रूपराम केवट का कहना है कि बरगी बांध बन जाने के बाद हर कभी पानी छूट जाने की वजह से नर्मदा-कुब्जा संगम के किनारे लगने वाली डंगर की बाड़ी भी अब नहीं लगाई जाती है। इससे केवट समाज को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। अजेरा के सरपंच बबलू शाह बताते हैं कि कुब्जा नदी के प्रवाह क्षेत्र में आने वाले बीसियों गांवों में बारिश के बाद होने वाली सब्जियों की खेती बंद हो चुकी है। थोड़ी-बहुत तरबूज की फसलें ही होती थी, लेकिन बरगी बांध से पानी छूटने की अनिश्चितता के चलते अब यह काम भी नहीं हो पाता है।

पौराणिक महत्व : मरीचिक मुनि के श्राप से हुआ जन्म

प्रख्यात नर्मदा पुराण वाचक पिपरिया निवासी पं. हरि शरणम महाराज बताते हैं कि नर्मदा पुराण में उल्लेख है कि मरीचिक मुनि ने माता सरस्वती को तीन जन्मों का श्राप दिया था। पहले जन्म में वे कैकेई की दासी मंथरा बनीं। दूसरे जन्म में कंस की दासी कुब्जा हुई, जिसका भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धार किया। तीसरे जन्म में कुब्जा नदी बनी। पुराणों के मुताबिक यहां स्नान करने से कुष्ठ आदि असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और विद्या की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण के रेवा खंड में 21वें अध्याय में ऋषि मार्कंडेय और युधिष्ठिर के संवाद में इसे मोक्षदायिनी कहा गया है।

सख्ती से तमाम नदियों में उत्खनन रोका जाना चाहिए। इन नदियों के कैचमेंट क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। इसमें उन वनस्पतियों का समावेश हो, जो नैसर्गिक रूप से इन नदियों के किनारे उगती आई हैं। – सारिका घारू, विज्ञान संचारिका और शिक्षिका, सोहागपुर

जन जागरूकता के अलावा जनभागीदारी से इन तमाम नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के अलावा सख्ती से उत्खनन रोका जाना जरूरी है। आज नर्मदा से लेकर उनकी तमाम सहायक नदियां बुरी तरह छलनी हो चुकी है। – गोपाल राठी, एक्टिविस्ट, सोहागपुर

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