
भोपाल। कहते हैं हाथों की रेखाओं में भविष्य छिपा होता है, लेकिन उम्र के अंतिम पड़ाव में यह लकीरें ही दगा दे जाएं तो क्या करें। जीवनभर हाथों की लकीरों के सहारे भविष्य के सपने बुनने वाले कई बुजुर्गों को फिंगर प्रिंट घिस जाने के कारण आयुष्मान योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा। ऐसे में यह बुजुर्ग आयुष्मान योजना के लिए पात्र होने के बावजूद या तो हजारों रुपए खर्च कर इलाज कराते हैं या बिना इलाज लौट जाते हैं। आयुष्मान भारत निरामयम मप्र से मिली जानकारी के मुताबिक, बीते एक माह में हमीदिया अस्पताल सहित मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में 38,000 से ज्यादा आयुष्मान केस रिजेक्ट किए गए। इनमें से 10 से 15 फीसदी मामले फिंगर प्रिंट स्कैन न होने से रिजेक्ट हुए। सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं, अस्पताल में आने वाले कैंसर, बर्न के पेशेंट भी इसी परेशानी से जूझते हैं।
आधार में रेटिना स्कैन की सुविधा :
पेंशन, आधार सहित अन्य योजनाओं में फिंगर प्रिंट स्कैन नहीं होने पर हितग्राहियों के रेटिना स्कैन के साथ फेस इंपे्रशन और अन्य तरीके भी होते हैं। लेकिन आयुष्मान योजना में फिंगर प्रिंट स्कैन ही एकमात्र उपाय है। कई अस्पतालों ने भी इस बारे में शिकायत की है, लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया।
केस-1 मरीज का दर्द: कैसे यकीन दिलाऊं कि यह मैं ही हूं
टीला जमालपुरा निवासी 78 साल की लक्ष्मीबाई बताती हैं, एक माह पहले हर्निया के ऑपरेशन के लिए एक निजी अस्पताल गई थीं। यहां भर्ती करने के बाद कहा गया कि आयुष्मान भारत से अप्रूवल मिलने के बाद ऑपरेशन करेंगे। दो दिन बाद बताया गया कि फिंगर प्रिंट स्कैन न होने से क्लेम रिजेक्ट हो गया है। ऑपरेशन के लिए पूरे पैसे देने होंगे। हमीदिया में ऑपरेशन कराने की बात कही, तो दो दिन का 18 हजार का बिल दे दिया। डॉक्टर से मिन्नत के बाद 12 हजार जमा करने पड़े। वह कहती हैं कि अब मैं कैसे यकीन दिलाऊं कि ये मैं ही हूं।
केस-2 कार्ड है, फिर भी 30 हजार रु. लगे
शाहजहांनाबाद में रहने वाले 69 वर्षीय मसरूर अंसारी बताते हैं कि वह पिछले दिनों घुटने के ऑपरेशन के लिए हमीदिया अस्पताल में एडमिट हुए थे। वहां फिंगर प्रिंट का मिलान नहीं होने के कारण उनका आयुष्मान क्लेम रिजेक्ट हो गया। उन्होंने बताया कि क्लेम रिजेक्ट होने के बाद घुटने के ऑपरेशन के लिए उन्हें इम्प्लांट बाजार से खरीदकर लाना पड़ा। यही नहीं, दवाओं के खर्च को मिलाकर उन्हें करीब 30 हजार रुपए चुकाने पड़े।
यह होता है असर-खर्च करने पड़ रहे 30 से 50 हजार रुपए
- आयुष्मान के तहत क्लेम रिजेक्ट होने के बाद मरीज को इलाज के लिए कई बार 30 से 40 हजार रुपए तक खुद खर्च करने पड़ रहे हैं। वजह-जो दवाएं आयुष्मान भारत योजना के तहत मरीजों को उपलब्ध कराई जानी हैं, वे नहीं मिल रहीं।
- कई बार मरीजों को ऐसे इंप्लांट लगाने की जरूरत पड़ती है, जिनका आयुष्मान भारत योजना के तहत आपूर्ति के लिए अनुबंध नहीं किया जाता है।
- दवा आदि सामग्री की आपूर्ति समय पर नहीं होती। हड्डी के मरीज ही नहीं, सर्जरी और दूसरे विभागों में भी इस तरह की दिक्कतें आ रही हैं।
कोशिश रहती है मेडिकल कॉलेजों में भर्ती मरीजों को आयुष्मान का लाभ मिले। इसके लिए आयुष्मान भारत योजना को पत्र भी लिखा गया है। जल्द ही स्थिति सुधरेगी। -डॉ. एके श्रीवास्तव, संचालक, चिकित्सा शिक्षा
मेडिकल कॉलेज रिजेक्ट प्रकरण
इंदौर 3,548
ग्वालियर 7,873
ग्वालियर एसएस 78
जबलपुर 7,328
जबलपुर एसएस 2,297
रीवा 4,995
रीवा एसएस 3,748
भोपाल 2,856
शिवपुरी 1,455
दतिया 3,421
रतलाम 884
शहडोल 42
विदिशा 5
सागर 3
ग्वालियर मानसिक 81
(एसएस-सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल)