
नई दिल्ली। न्यायाधीशों की नियुक्ति से जुड़े कॉलेजियम सिस्टम को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट में मतभेद चल रहा है। इसी बीच केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक पूर्व जज का बयान शेयर किया है। रिजिजू ने पूर्व न्यायाधीश की टिप्पणियों का हवाला देते हुए कहा, “यही सबसे समझदार नजरिया है।”
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को हाईजैक किया
देश के कई अहम फैसले सुनाने वाले और दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरएस सोढ़ी ने एक यू-ट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संविधान को हाईजैक किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे। इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी।”
एक जज की नेक आवाज: भारतीय लोकतंत्र की असली खूबसूरती इसकी सफलता है। जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से स्वयं शासन करती है। चुने हुए प्रतिनिधि लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कानून बनाते हैं। हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है लेकिन हमारा संविधान सर्वोच्च है।
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) January 22, 2023
कानून मंत्री ने लिखा- एक जज की नेक आवाज
कानून मंत्री ने इसी इंटरव्यू का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया है। रिजिजू ने सोढ़ी के बयान का समर्थन करते हुए लिखा कि, “एक जज की नेक आवाज : भारतीय लोकतंत्र की असली खूबसूरती इसकी सफलता है। यही सबसे समझदार नजरिया है। जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से स्वयं शासन करती है। चुने हुए प्रतिनिधि लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कानून बनाते हैं। हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है, लेकिन हमारा संविधान सर्वोच्च है। उन्होंने कहा, सिर्फ वही लोग संविधान के प्रावधानों और लोगों के मत को नहीं मानते हैं, जो खुद को संविधान से ऊपर मानते हैं।”
‘जब हमारा संविधान बना था तो इसमें एक सिस्टम था, एक पूरा चैप्टर था कि जज कैसे अपॉइंट होते हैं। जो लोग कहते हैं कि यह प्रणाली असंवैधानिक है, वो संविधान में संशोधन की बात कर सकते हैं। यह संशोधन तो पार्लियामेंट ही करेगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को ही हाइजैक कर लिया है। उन्होंने कहा कि हम खुद को अपॉइंट करेंगे और इसमें सरकार का कोई हाथ नहीं होगा।’
हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अंतर्गत नहीं आता
संविधान के अनुसार, उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के अधीन नहीं हैं। दोनों स्वतंत्र हैं, लेकिन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय को देखना शुरू करते हैं और अधीन हो जाते हैं। हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अंतर्गत नहीं आता है। ये हर राज्य की स्वतंत्र संस्था है। हाईकोर्ट के जज को सुप्रीम कोर्ट के जज अपॉइंट करते हैं और यही उनके ट्रांसफर-पोस्टिंग भी करता है। इसके चलते उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय की तरफ देखते रहते हैं। ऐसी कार्यप्रणाली से हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीन हो जाता है, जो हमारे संविधान ने कभी कहा ही नहीं। संविधान के अनुसार सुप्रीम कोर्ट अपने दायरे में सुप्रीम है और हाई कोर्ट अपने दायरे में।”
लंबे समय से चली आ रही असहमति
न्यायपालिका और सरकार के बीच लंबे समय से चली आ रही असहमति में यह बयान नवीनतम है, जो हाल के महीनों में तेज हो गया है। रिजिजू से लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की टिप्पणियों से, न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अंतिम फैसला करने वाले कॉलेजियम पर दबाव बढ़ गया है। सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में एक बड़ी भूमिका का आह्वान किया है, और अपनी वीटो शक्ति की कमी पर सवाल उठाया है।
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कहां से शुरू हुआ विवाद
पिछले साल नवंबर में रिजिजू ने कहा था कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम प्रणाली संविधान से बिलकुल अलग व्यवस्था है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी दावा किया था कि न्यायपालिका, विधायिका की शक्तियों में अतिक्रमण कर रही है। एक संसदीय समिति ने भी इस पर आश्चर्य जताया था कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच करीब 7 साल बाद भी शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संशोधित प्रक्रिया ज्ञापन (MOP) पर सहमति नहीं बन पाई है।