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सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर लगाई रोक, कहा- जनता को सूचना का अधिकार, SBI सारी जानकारी चुनाव आयोग को दे

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुना दिया है। लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अवैध करार दिया। साथ ही इसके जरिए चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दी। ये फैसला केंद्र सरकार के लिए झटका माना जा रहा है। फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और इसे असंवैधानिक माना है। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि जनता को सूचना का अधिकार है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) साल 2023 के अप्रैल महीने से लेकर अब तक की सारी जानकारियां चुनाव आयोग को दे और आयोग ये जानकारी कोर्ट को दे।

स्कीम के जरिए ब्लैक मनी व्हाइट की जा रही- कोर्ट

कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को सूचना के अधिकार का उल्लंघन पाया। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में लोगों को जानने का अधिकार है। इस तरह मनी बिल के जरिए लाया गया भारत सरकार का फैसला कोर्ट ने सही नहीं माना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी व्हाइट की जा रही है और चुनावी बॉन्ड सिस्टम पारदर्शी नहीं है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वो 2019 से अब तक की जानकारी तलब करे।

SBI को जानकारी साझा करनी होगी

बॉन्ड जारी करने वाले एसबीआई को यह जानकारी देनी होगी कि अप्रैल 2019 से लेकर अब तक कितने लोगों ने कितने-कितने रुपए के चुनावी बॉन्ड खरीदे। SBI चुनाव आयोग से 6 मार्च तक जानकारी साझा करेगी। साथ ही, SBI को दान के रसीद के साथ एक हफ्ते में सार्वजनिक करना होगा।

SBI की 29 ब्रांच में जारी किए जाते हैं ‘चुनावी बॉन्ड’

चुनावी बॉन्ड जमा करने को लेकर देशभर में SBI की अधिकृत कुल 29 ब्रांच हैं। जहां पर कोई भी चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है और राजनीतिक दलों को फंड दे सकता है। हालांकि, कोर्ट ने अब इस स्कीम पर ब्रेक लगा दिया है। इससे राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। क्योंकि, आम चुनाव करीब हैं और पार्टियों को चुनावी चंदे की सबसे ज्यादा जरूरत होगी।

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?

2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को वित्त विधेयक के रूप में सदन में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना जारी की गई थी। चुनावी बॉन्ड ब्याज मुक्त धारक बॉन्ड या मनी इंस्ट्रूमेंट था, जिसे भारत में कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता था। ये बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख और 1 करोड़ रुपये की संख्या में बेचे जाते थे। किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए उन्हें केवाईसी-अनुपालक खाते के माध्यम से खरीदा जा सकता था। राजनीतिक दलों को इन्हें एक निर्धारित समय के भीतर भुनाना होता था। दानकर्ता का नाम और अन्य जानकारी दस्तावेज पर दर्ज नहीं की जाती है और इस प्रकार चुनावी बॉन्ड को गुमनाम कहा जाता है। किसी व्यक्ति या कंपनी की तरफ से खरीदे जाने वाले चुनावी बॉन्ड की संख्या पर कोई सीमा नहीं थी।

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