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ED दफ्तर पहुंचे मंत्री कैलाश गहलोत : दिल्ली शराब घोटाले में पूछताछ के लिए एजेंसी ने भेजा था समन, पॉलिसी बनाने वाली टीम में थे शामिल

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी के एक और नेता की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रहीं हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शराब नीति केस से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में दिल्ली के मंत्री कैलाश गहलोत को शनिवार को पूछताछ के लिए बुलाया है। दिल्ली के परिवहन मंत्री ईडी दफ्तर पहुंच गए हैं। उन पर आबकारी नीति का ड्राफ्ट तैयार करने का आरोप है।

इससे पहले शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी ने कई बड़े नेता पहले से ही जेल में हैं। मुख्यमंत्री केजरीवाल ईडी की रिमांड पर हैं। वहीं मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और सत्येंद्र जैन अन्य मामले में जेल में बंद हैं।

ED ने गहलोत को समन क्यों भेजा

नजफगढ़ से आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक गहलोत केजरीवाल सरकार में परिवहन, गृह और कानून मंत्री हैं। ED ने समन में गहलोत से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत अपना बयान दर्ज कराने के लिए कहा है। कैलाश गहलोत से शराब नीति बनाने को लेकर पूछताछ किए जाने की उम्मीद है। एजेंसी का कहना है कि, वे 2021-22 के लिए नई शराब नीति की तैयारी और कार्यान्वयन के समय डिप्टी CM मनीष सिसोदिया और पूर्व शहरी विकास मंत्री सत्येंद्र जैन के साथ मंत्रियों के समूह (GoM) का हिस्सा थे।

एजेंसी ने अपनी चार्जशीट में गहलोत का नाम लिखा था। ED का आरोप है कि, साउथ लॉबी को शराब नीति लीक की गई थी, जिसमें BRS नेता के कविता भी शामिल थीं। साउथ लॉबी पर AAP और उसके नेताओं को 100 करोड़ की रिश्वत देने का आरोप है। इसेक साथ ही कहा गया है कि, गहलोत ने एक ही सिम नंबर इस्तेमाल किया, लेकिन उनकी आईएमईआई (अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल उपकरण पहचान) तीन बार बदली गई।

शराब कारोबारी को दिया सरकारी घर

कैलाश गहलोत पर साउथ के शराब कारोबारी विजय नायर को अपना सरकारी आवास भी देने का आरोप है। वो गहलोत को आवंटित सरकारी बंगले में रहता था। ईडी ने पहले भी कहा था कि इस दौरान कैलाश गहलोत ने अपना मोबाइल नंबर भी कई बार बदला था। ED ने किसी लोक सेवक के सरकारी आवास का इस्तेमाल किसी और को करने की अनुमति देने पर इसे आपराधिक विश्वासघात करार देते हुए केस की जांच CBI से करवाने कहा था।

1 अप्रैल तक बढ़ी केजरीवाल की रिमांड

दिल्ली शराब नीति केस में राऊज एवेन्यू कोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ED कस्टडी 4 दिन और बढ़ा दी थी। अब वे एक अप्रैल तक रिमांड पर रहेंगे। ED ने केजरीवाल की सात दिन की कस्टडी मांगी थी। कोर्ट ने 39 मिनट की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। केजरीवाल ने खुद अपने केस की पैरवी की। वे ऐसा करने वाले देश के पहले सिटिंग सीएम बन गए हैं। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कहा कि, क्या 4 स्टेटमेंट एक मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करने के लिए काफी हैं? इसके जवाब में ED ने कहा- मुख्यमंत्री कानून से ऊपर नहीं हैं।

इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की याचिका खारिज कर दी। दिल्ली हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस (ACJ) ने मामले में दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि ये कार्यपालिका का मसला है।

21 मार्च गिरफ्तार हुए थे केजरीवाल

ईडी ने लगभग दो घंटे की पूछताछ के बाद अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को उनके आधिकारिक आवास से गिरफ्तार किया था। इसके बाद उन्हें शुक्रवार (22 मार्च) को राऊज एवेन्यू कोर्ट में पेश किया और पूछताछ के लिए 10 दिनों की रिमांड मांगी, लेकिन कोर्ट ने छह दिन की रिमांड दी। 28 मार्च को केजरीवाल की रिमांड अवधि खत्म हुई। केजरीवाल ने 23 मार्च को अपनी गिरफ्तारी और राउज एवेन्यू कोर्ट के रिमांड के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए फौरन सुनवाई की मांग की थी। जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने 27 मार्च को केजरीवाल को राहत देने से इंकार कर दिया। इसके अलावा दिल्ली HC ने मुख्य याचिका के साथ-साथ याचिकाकर्ता की अंतरिम रिहाई की अर्जी पर 2 अप्रैल तक ED से जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई अब 3 अप्रैल को होगी।

क्या है पूरा मामला ?

दिल्ली में केजरीवाल की सरकार में डिप्टी सीएम रहे मनीष सिसोदिया ने 22 मार्च 2021 को नई शराब नीति का ऐलान किया था। 17 नवंबर 2021 को नई शराब नीति यानी एक्साइज पॉलिसी 2021-22 लागू कर दी गई। नई शराब नीति लागू करने के बाद सरकार शराब के कारोबार से बाहर आ गई और शराब की पूरी दुकानें निजी हाथों में चली गई। नई नीति लाने के पीछे सरकार का तर्क था कि इससे माफिया राज खत्म होगा और सरकार का रेवेन्यू में बढ़ेगा। नई नीति से रेवेन्यू में 1500-2000 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की उम्मीद जताई गई थी।

नई पॉलिसी में कहा गया था कि दिल्ली में शराब की कुल दुकानें पहले की तरह 850 ही रहेंगी। हालांकि, नई नीति शुरू से ही विवादों में रही। जब बवाल ज्यादा बढ़ गया, तब 28 जुलाई 2022 को सरकार ने नई शराब नीति रद्द कर फिर पुरानी पॉलिसी लागू कर दी। मामले में सीबीआई को जांच ट्रांसफर दी गई। मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा एंगल आने पर इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय की एंट्री हो गई। उसके बाद से AAP के कई सीनियर नेता और उनके करीबी सहयोगी जांच एजेंसी के निशाने पर आ गए।

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