
गणगौर निमाड़ी जन-जीवन का गीति काव्य है। चैत्र दशमी से चैत्र सुदी तृतीया तक पूरे नौ दिनों तक चलने वाले गणगौर उत्सव का ऐसा एक भी कार्य नहीं, जो बिना गीत के हो। गणगौर के रथ सजाए और दौड़ाए जाते हैं। इसी अवसर पर गणगौर नृत्य भी किया जाता है। झालरिया दिए जाते हैं। महिला और पुरुष रनुबाई और धणियर सूर्यदेव के रथों को सिर पर रखकर नाचते हैं। ऐसे ही उत्साह से भरे नृत्य की प्रस्तुति रविवार को जनजातीय संग्रहालय में खंडवा से आईं अनुजा जोशी ने अपनी साथी कलाकारों के साथ दी।
पति की दीर्घायु व अच्छे वर के लिए होती है प्रार्थना
ढोल और थाली वाद्य गणगौर के केंद्र होते हैं। गणगौर निमाड़ के साथ राजस्थान, गुजरात, मालवा में भी उतना ही लोकप्रिय है। इस नृत्य में कन्याएं व महिलाएं एक दूसरे का हाथ पकड़े वृत्ताकार घेरे में गौरी मां से अपने पति की दीघार्यु की प्रार्थना करती हुई नृत्य करती हैं। वहीं, कुंआरी कन्याएं अच्छे वर की कामना से इस नृत्य को करती हैं। इन गणगौर नृत्य के गीतों का विषय शिव-पार्वती, ब्रह्मा-सावित्री तथा विष्णु-लक्ष्मी की प्रशंसा से भरा होता है।
बुंदेलखंड का अति प्राचीन वाद्ययंत्र है तमूरा
इस दौरान सागर के सरदई से आए चरण सिंह गोंड एवं साथियों द्वारा तमूरा नृत्य- गायन प्रस्तुत किया गया। तमूरा बुंदेलखंड का अति प्राचीन वाद्य है। मुख्यत: आंचलिक गायन परंपरा में तमूरा का उपयोग निर्गुण गीत गायन में किया जाता है। बुंदेलखंड में निर्गुण गायन के साथ ही श्रीराम, भगवान शिव, श्रीकृष्ण की आराधना के साथ ही बुन्देली चरित्र नायक लाला हरदौल की गाथा गायन में तमूरा का उपयोग किया जाता है। इस मौके पर चरणसिंह गोंड और साथी कलाकारों ने तमूरा पर चरित्र नायक लाला हरदौल की गाथा का गायन किया, जिसे सुनकर श्रोता भावुक हो गए।