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ये होता है प्यार… मां की याद में बेटों ने घर के बाहर बनवा दिया मंदिर, पति भी करते हैं पूजा

कोरोना की दूसरी लहर में महिला की मौत हो गई थी, मां को बेहद याद कर रहे थे बेटा

शाजापुर। जिला मुख्यालय से करीब 3 किमी दूर सांपखेड़ा गांव। यहां एक ऐसा मंदिर बनाया गया है, जिसकी पूरे इलाके में चर्चा है। यह मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें अपनापन है, प्यार है और ढेर सारी मीठी यादें भी। आपने भी आज तक ऐसा मंदिर ना देखा होगा, ना ही सुना होगा। जी हां, इस मंदिर में भगवान के रूप में एक महिला की तीन फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है। पति ने बेटों के संग-साथ मिलकर घर के बाहर पत्नी का मंदिर बनवाया है। यहां प्रतिदिन परिवार के लोग उन्हें निहारते हैं और दर्शन करते हैं। सुबह-शाम पूजा-अर्चना भी करते हैं। पति की भी रोज यही दिनचर्या है।

बंजारा समाज के नारायण सिंह राठौड़ सांपखेड़ा गांव में पत्नी और बेटों के साथ परिवार समेत रह रहे थे। परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था। पत्नी गीता बाई धार्मिक कार्यक्रमों में ज्यादा हिस्सा लेती थी। भगवान की भक्ति और प्रतिदिन भजन-कीर्तन करती थी। पति नारायण भी धार्मिक प्रवृत्ति के हैं और पत्नी से ज्यादा लगाव रहता था। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 27 अप्रैल को गीताबाई का निधन हो गया था। इससे परिवार को गहरा सदमा लगा। बेटे संजय उर्फ लक्की राठौड़ ने बताया कि डॉक्टरों ने मां का इलाज किया। लाखों रुपए खर्च हुए, लेकिन उनकी तबीयत में सुधार नहीं हो पाया था।

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अलवर में डेढ़ माह में बनकर तैयार हुई तीन फीट ऊंची प्रतिमा

मां की मौत के बाद बेटे भी टूट से गए थे। ऐसे में नारायण सिंह ने बेटों के साथ मिलकर प्लान बनाया कि पत्नी की स्मृति में घर के बाहर एक मंदिर बनवाया जाए। 29 अप्रैल को बेटों ने अलवर (राजस्थान) में गीता बाई की प्रतिमा बनवाने का ऑर्डर दिया और डेढ़ माह बाद तीन फीट बड़ी यह सुंदर प्रतिमा बनकर आ गई।

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अब मां सिर्फ बोलती नहीं हैं, मगर हर पल हमारे साथ रहती हैं: बेटा

इसके बाद परिजन ने घर के बाहर एक छोटा-सा मंदिर बनवाया और पूरे विधि-विधान के साथ प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। अब हर रोज सुबह-शाम नारायण सिंह और उनके बेटे पूजा-अर्चना करते हैं। बेटों का कहना था कि मां भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन इस प्रतिमा के तौर पर सदैव उनके साथ हैं। नारायण कहते हैं कि गीताबाई मेरे लिए देवी स्वरूप जैसी थीं। उनका आचरण और संयमित जीवन शैली हमेशा से प्रभावित करती रही है। मंदिर में प्रतिमा को प्रतिदिन परिजन साड़ी ओढ़ाकर ही रखते हैं।

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