
अशोक गौतम-भोपाल। प्रदेश में बाघ और चीतों की तर्ज पर हाथियों में भी सैटेलाइट कॉलर लगाए जाएंगे। इससे हर 3 से 4 घंटे में हाथियों की लोकेशन का पता चल सकेगा। इसका एक्सेस हाथी कॉरिडोर वाले जिलों के डीएफओ और वाइल्ड लाइफ मुख्यालय में स्थिति कंट्रोल कमांड सेंटर में होगा। हाथी झुंड में होते हैं, इसलिए कॉलर हर झुंड के एक हाथी को लगाया जाएगा। फिलहाल कोदो- कुटकी खाने से मरने वाले समूह में से बचे हाथियों को पहनाया जाएगा।
कॉलर लगाने के लिए कर्नाटक वाइल्ड लाइफ मुख्यालय ने स्वीकृति दे दी है। कर्नाटक में इस तरह के प्रयोग हो रहे हैं। बताया जाता है कि हाथी प्रति दिन करीब दस किमी तक चलते हैं। गौरतलब है कि प्रदेश के जंगलों में मौजूदा समय में लगभग 160 हाथी हैं। अकेले बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में ही 70 और संजय डुबरी नेशनल पार्क में 25 हाथियों का डेरा है।
हाथी मैनेजमेंट सीखने ‘दक्षिण’ जाएंगे अधिकारी
हाथी मैनेजमेंट के गुर सीखने के लिए अधिकारियों के दो दल मैसूर और कोयम्बटूर जाएंगे। इन दोनों दलों में कान्हा, संजय दुबरी, बांधवगढ़, उमरिया, मंडला, सीधी, शहडोल, अनूपपुर, मंडला सहित अन्य हाथी कॉरिडोर और प्रभावित इलाकों के डीएफओ शामिल हैं। इसके बाद इसके नीचे के अमले को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके साथ ही प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को भी इनसे बचने और इनके साथ व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें एनजीओ, समुदाय और सरकारी संगठनों को जोड़ा जाएगा।
कोदो-कुटकी की रखवाली करेगा अमला
वन विभाग का अमला किसानों के कोदो-कुटकी की रखवाली करेगा। इसके लिए अमले को फूल आने और उसके पकने तक इंतजार करना होगा, क्योंकि इस दौरान इसमें फंगस लगने की आशंका होती है। वन मुख्यालय के अनुसार करीब पांच हजार एकड़ में कोदो-कुटकी की खेती की जाती है, जो पार्क बफर एरिया के आस-पास अथवा हाथी कॉरिडोर में खेती होती है। इसकी खेती करने वाले किसानों को भी यह बताया जाएगा कि जब उनकी फसल (कोदो-कुटकी ) में फूल आए और जब तक न पक जाए तब तक उसकी विशेष निगरानी रखें।
हाथियों को सैटेलाइट कॉलर लगाया जाएगा। इससे हाथियों की लोकेशन मिल जाएगी। अगर ये गांव की तरफ जाते हैं तो इन्हें मैनेज कर जंगल की तरफ हाका लगाया जाएगा। लोगों को भी जागरूक किया जाएगा। – एल. कृष्णमूर्ति, एपीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ