इंदौरमध्य प्रदेश

कश्मीर घाटी की एक मासूम को मदद की दरकार : चार साल की उम्र में एक आंख खोने वाली नुसरत के इलाज के लिए इंदौर के बाशिंदों से उम्मीद

नेहा जैन, इंदौर। कश्मीर घाटी की हसीन वादी गुलमर्ग की एक मासूम को इंदौर शहर से मदद की दरकार है। करीब चार साल की उम्र में बीमारी के बाद अपनी एक आंख खो देने वाली मासूम को उसके पिता इंदौर इस उम्मीद में लाएं हैं कि इस दरियादिल शहर में उनकी बेटी के इलाज़ में मदद मिल सकेगी।

शहर से करीब 1700 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग निवासी मुश्ताक अहमद अपनी 14 वर्षीय मासूम बेटी नुसरत को इलाज के लिए इंदौर लाएं हैं। उनकी बेटी की एक आंख नहीं है। यह बात बताते वक्त मुश्ताक गला रुंध जाता है। डबडबाई आंखे लिए मुश्ताक बताते हैं कि करीब चार साल की उम्र में उनकी बेटी नुसरत को माता निकली थी (एक ऐसी बीमारी, जिसमें बच्चों को शरीर पर फुंसियां हो जाती है)। इस दौरान नुसरत की एक आंख में संक्रमण हो गया। तकलीफ बढ़ने पर चिकित्सकों ने नुसरत की एक आंख निकाल दी। इससे मासूम की सामान्य जिंदगी पूरी तरह बदल गई। नुसरत पढ़-लिख कर डॉक्टर बनकर जरूरतमंदों की सेवा का सपना संजोए है, लेकिन उसका वर्तमान बेहद चुनौतीपूर्ण और दर्दभरा है। एक आंख से देखना तो सहज नहीं है, अपने सहपाठियों के बीच भी उसे असहजता महसूस होती है। इससे वह अवसाद में घिर रही है।

अपनी बेटी की इस विकृति को दूर करने के लिए मुश्ताक ने दिल्ली, मुरादाबाद और इंदौर में पिछले दस सालों में करीब दर्जन भर ऑपरेशन करवा लिए हैं, लेकिन अब तक नुसरत की आंख की विकृति दूर नहीं हो सकी है। प्लास्टिक सर्जरी के जरिये उसकी आंख पर पलकें तैयार करने की कोशिश जरूर की गई है, लेकिन वह नाकाफी है। अब उसकी आंख लिए जगह बनाकर आर्टिफिशियल आंख लगानी है, जिसके लिए एक निजी अस्पताल ने 60 हज़ार का खर्च बताया है। इसमें आर्टिफिशियल आंख अन्य खर्च शामिल नहीं है।

गुलमर्ग में बर्तनों पर पालिश कर गुजर-बसर करने वाले मुश्ताक लिए यह रकम जुटा पाना मुश्किल है। अपनी इसी मज़बूरी के चलते वह बेटी का दर्द बताते हुए कई बार रुआंसा हो जाता है। वह बताता है कि मासूम नुसरत अपनी विकृति छुपाने के लिए एक शोपीस नुमा आंख चेहरे पर लगाती है लेकिन वह कभी भी निकलकर गिर जाती है, तब लोगों की असहज प्रतिक्रिया उसके दर्द को और बढ़ा देती है। मुश्ताक को अब दरियादिल शहर इंदौर के बाशिंदों से उम्मीद है कि वे इलाज की रकम जुटाकर मासूम नुसरत की हसरत और सहज जिंदगी जीने के अरमान को पूरा करेंगे।

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