ताजा खबरराष्ट्रीय

‘सेफ खेलना छोड़िए, कॉमन सेंस का इस्तेमाल कीजिए…’, CJI चंद्रचूड़ बोले- जमानत देने में हिचकिचाते हैं ट्रायल कोर्ट के जज

नई दिल्ली। भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने जमानत मामलों पर जजों को बड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि, जब अपराध के अहम मुद्दों को संदेह के नजरिए से देखा जाता है, तो ट्रायल जज जमानत न देकर सेफ खेलना पसंद करते हैं। ऐसे में हर केस की बारीकियों को समझने के लिए ‘मजबूत कॉमन सेंस’ की जरूरत है।

CJI ने यह बात बर्कले सेंटर फॉर कम्पेरेटिव इक्वालिटी और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन के 11वें सालाना सम्मेलन के आखिर में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कही। उनसे मनमाने ढंग से की जाने वाली गिरफ्तारियों के बारे में सवाल किया गया था।

मनमाने ढंग से गिरफ्तार हुए लोग होते हैं परेशान

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, जिन लोगों को ट्रायल कोर्ट में जमानत मिलनी चाहिए, लेकिन नहीं मिलती, वे लोग मजबूरन हाईकोर्ट जाते हैं। जिन्हें हाईकोर्ट में जमानत मिलनी चाहिए, जरूरी नहीं कि उन्हें भी वहां जमानत मिल जाए, इसकी वजह से उन्हें सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ता है। यह देरी उन लोगों की मुश्किल को और बढ़ा देती है, जो मनमाने ढंग से गिरफ्तारियों का सामना कर रहे हैं।

CJI से किया गया सवाल

सवाल पूछने वाले ने कहा कि, हम ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां पहले एक्शन लिया जाता है और बाद में माफी मांगी जाती है। यह बात विशेष रूप से पब्लिक अथॉरिटीज के लिए सच हो गई है। वे राजनीति से प्रेरित होकर एक्टिविस्ट, एकेडमिक्स, जर्नलिस्ट्स और यहां तक कि राजनेताओं को भी हिरासत में लेकर काम कर रहे हैं। इनमें विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्री तक शामिल हैं। सवाल करने वाले शख्स के मुताबिक, ये सभी काम गहरे विश्वास के साथ किए जाते हैं, क्योंकि इंसाफ मिलने में बहुत ज्यादा वक्त लग जाता है।

गंभीर मामलों में जमानत देने से बच रहे ट्रायल जज

होने के पीछे कई कारणों में से एक कारण यह भी है कि लोगों को देश के संस्थानों में भरोसा नहीं रह गया है। मुझे लगता है कि यह बहुत जरूरी है कि हम उन लोगों पर भरोसा करना सीखें जो कानूनी प्रणाली में निचले स्तर पर आते हैं, जैसे कि ट्रायल कोर्ट। हमें ट्रायल कोर्ट को प्रोत्साहित करना होगा कि वे न्याय की मांग करने वाले लोगों की चिंताओं को सुनें और समझें।

CJI ने आगे कहा कि, दुर्भाग्य से आज की समस्या यह है कि ट्रायल जजों की तरफ से दी गई किसी भी राहत को हम शक की नजरों से देखते हैं। इसका मतलब है कि ट्रायल जज गंभीर अपराधों के अहम मामलों में जमानत देने से बचते हुए आगे बढ़ रहे हैं। वे गंभीर आपराधिक मामलों में जमानत नहीं दे रहे हैं।

जजों में होना चाहिए बेहतर कॉमन सेंस

CJI ने कहा कि जजों में बेहतर कॉमन सेंस होना चाहिए। जजों को हर मामले की बारीकियों और उसके बारीक पहलुओं को देखना चाहिए। जब तक हम आपराधिक न्यायशास्त्र में गेहूं को भूसे से अलग नहीं करेंगे, तब तक यह बहुत ही मुश्किल है कि हमें न्यायपूर्ण समाधान मिलें। फैसला देने वालों को अनाज को भूसे से अलग करने की छूट देने के लिए, यह अहम है कि हम भरोसा भी रखें।

मेरे हिसाब से कई मामले सुप्रीम कोर्ट आने ही नहीं चाहिए। हमारे सामने जो छोटे केस रखे जाते हैं, उन्हें देखकर मैं यह कह सकता हूं कि उच्च अदालतों में याचिका लगाकर हम निचली अदालतों को निष्क्रिय नहीं कर सकते। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हम जमानत को प्राथमिकता इसलिए दे रहे हैं, ताकि देशभर में यह संदेश दे सकें कि, फैसला लेने की प्रक्रिया के सबसे शुरुआती चरण पर जो लोग हैं, उन्हें अपनी ड्यूटी निभानी होगी। बिना यह सोचे कि उनका करियर खतरे में आ जाएगा।

ये भी पढ़ें- स्विस कंपनी ने लॉन्च की राम जन्मभूमि घड़ी, कीमत 34 लाख; लिमिटेड एडिशन में जय श्रीराम व बजरंगबली है अंकित

संबंधित खबरें...

Back to top button