धर्म

महाशिवरात्रि पर रीढ़ की हड्डी सीधा कर बैठने से होती है मोक्ष की प्राप्ति, जानें इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण

न्यूसी समैया (ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु शास्त्राचार्य)।

यूं तो हम सभी महाशिवरात्रि को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का पर्व मानते हैं। शिवभक्तों को साल भर इस पर्व का इंतजार रहता है। एक साल में 12 शिवरात्रियां होती हैं, जो कि हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती हैं। यह माह की सबसे अंधेरी रात होती है, परंतु फागुन मास की शिवरात्रि का विशेष महत्व है। इसलिए इसे महाशिवरात्रि की संज्ञा दी गई है।

शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन रात्रि जागरण कर रीढ़ की हड्डी को सीधा करके बैठने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक महत्व के साथ-साथ इसके पीछे वैज्ञानिक महत्व भी है, जिसका जिक्र हम बाद में करेंगे। पहले पौराणिक महत्व समझ लें।

धार्मिक दृष्टिकोण से पुराणों में एक से अधिक कथाओं का वर्णन है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं। सर्वप्रथम यह तथ्य सर्वमान्य है कि इस दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। अतः विवाह योग्य युवक-युवतियां, जिनका विवाह नहीं हो रहा हो, इस दिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव 64 स्थानों पर विभिन्न लिंगों के रूप में प्रकट हुए थे। हालांकि, अभी 64 ज्योतिर्लिंगों की पहचान तो नहीं हो सकी है, लेकिन 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में सभी को पता है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब देवासुर संग्राम हुआ तब देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इससे जो विष निकला वह महाशिवरात्रि के दिन ही शिवजी ने अपने कंठ में धारण किया था। अतः इस दिन अर्थात फागुन कृष्ण चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है।

अब बात करते हैं इसे वैज्ञानिक महत्व की! जब सूरज पृथ्वी की भूमध्य रेखा या विषुवत रेखा की सीध में होता है तब दिन और रात्रि बराबर होते हैं। यह स्थिति वर्ष में दो बार बनती है। 21 मार्च और 23 सितंबर। 21 मार्च को सूर्य उत्तरायण रहते हैं। इसके ठीक पहले पड़ने वाली फागुन कृष्ण अमावस्या पर पृथ्वी के अपनी धुरी पर चक्कर काटने और झुकाव के कारण एक ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो कि नीचे से ऊपर की ओर बढ़ती है। विज्ञान की भाषा में इसे अपकेंद्रिक बल या centrifugal force कहते हैं। यानी, यह गुरुत्वाकर्षण के विपरीत काम कर रहा होता है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं…यत ब्रह्मांडे तत् पिंडे! अर्थात जो ब्रह्मांड में है वही, हमारे शरीर में है। हम इस दिन अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा करें और योग की मुद्रा में बैठे तो हमें शिव की ऊर्जा मिलती है। इस प्रक्रिया को करने के लिए साधु -महात्मा वर्षों तपस्या करते रहे हैं। लेकिन, शिवरात्रि के दिन यह प्राकृतिक रूप से होता है। इस दिन प्रकृति स्वयं मनुष्य को आध्यात्मिक रूप से मुक्त करने का प्रयास करती है। इसीलिए कहा जाता है कि इस दिन पीठ को सीधा करके ध्यान लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन जो भी मनुष्य अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखकर भगवान के उर्जा कुंज के साथ पूजा-अर्चना करता है, उसे एक सुपर नेचुरल पॉवर का एहसास होता है, क्योंकि धरती का अपकेंद्रीय बल ऊपर की ओर कार्य कर रहा होता है। अतः शिव रात्रि जो की वर्ष की सबसे काली रात होती है वह मोक्ष दायनी भी मानी जाती है।

(न्यूसी समैया ने इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोलॉजी (भारतीय विद्या भवन) नई दिल्ली से ज्योतिष अलंकार की डिग्री ली है। ज्योतिष शास्त्र विशेषज्ञ, ज्योतिष शिरोमणि सम्मान से पुरस्कृत न्यूसी 25 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। वह स्कूल ऑफ एस्ट्रोलॉजी की डायरेक्टर भी हैं।)
मोबाइल नंबर 7470664025

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