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भाजपा ने डॉ. यादव को मप्र की कमान देकर काऊ बेल्ट में ओबीसी सियासत की नई चौसर बिछाई

मनीष दीक्षित- बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन की दक्षिण विधानसभा सीट से तीसरी बार निर्वाचित हुए डॉ. मोहन यादव अंतत: मुख्यमंत्री बन गए। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का यह फैसला न केवल भाजपा के दिग्गज नेताओं, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों और तमाम मीडियाजनों को भी अचंभित कर रहा है। बीते एक हफ्ते से पार्टी के जिन दिग्गज नेताओं के नाम पर कयास लगाए जा रहे थे, उनमें से कोई भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं पहुंच सका और जिस नाम की चर्चा तक न थी वह मुख्यमंत्री बन गया। एक बार फिर से प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने साबित किया है कि भारतीय राजनीति में उनके जैसे दूर की सोच रखने वाले नेता कम ही हैं और नई भाजपा में चौंकाने वाले फैसले ही होते हैं। छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के बाद मप्र में मोहन यादव को कमान देकर भाजपा हाईकमान ने साबित किया की दूरगामी राजनीति के लिए साहसिक निर्णय लेने में उनका कोई सानी नहीं है।

अब जबकि डॉ. मोहन यादव को केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री बना दिया है, तब इस फैसले पर चिंतन-मनन हो रहा है कि आखिर वह मुख्यमंत्री क्यों बनाए गए। जबकि प्रदेश की ही सियासत में तमाम बड़े नेता और इससे भी ज्यादा यह कि इस विस चुनाव में प्रदेश की लगभग आधा दर्जन सीटों पर उतारे गए राष्ट्रीय नेताओं को छोड़कर यह फैसला क्यों लिया गया! आने वाले समय में लोकसभा के चुनाव होने हैं, इसके लिए भाजपा ने पहले से ही बड़ी तैयारी शुरू कर दी है। मप्र के मुख्यमंत्री का चयन भी ऐसी ही तैयारी का एक फैसला है। डॉ. यादव ओबीसी वर्ग में आते हैं।

दरअसल, देश के हृदय प्रदेश में डॉ. यादव को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने काऊ बेल्ट में ओबीसी सियासत की एक नई चौसर बिछा दी है। उत्तर प्रदेश और बिहार में बीजेपी के इस फैसले का बड़ा असर देखने को मिलेगा। बिहार में जातिगत जनगणना के बाद पूरे देश में जिस तरह से ओबीसी की राजनीति कांग्रेस समेत ‘इंडिया’ गठबंधन से जुड़े दल कर रहे हैं, उसका प्रधानमंत्री मोदी की ओर से यह सीधा जवाब दिखाई पड़ता है।

बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव सबसे बड़ी सिंगल जाति है। जाहिर है राजनीति में भी यादवों का असर सबसे अधिक है। ओबीसी राजनीति तो इन्हीं के इर्द गिर्द घूमती रहती है। बीजेपी अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद यूपी और बिहार में यादवों को अपने पाले में नहीं ला सकी है। इन राज्यों में यादव के अलावा बाकी ओबीसी जातियां बीजेपी के साथ आ चुकी हैं। उप्र में यादव आज भी समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के साथ पूरी तरह जुड़े हुए हैं। इसी तरह बिहार में लालू प्रसाद यादव के साथ यादव खड़े दिख रहे हैं। तेजस्वी की सफलता भी इसीलिए है। बिहार में हाल ही में हुई जातिगत जनगणना के अनुसार करीब 14% यादव है। विधानसभा और लोकसभा की कई सीटों पर ये निर्णायक हैं।

यादव के सीएम बनने का असर अब सीधे 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल समेत जो भी दल पिछड़ों की राजनीति के भरोसे 2024 को लोकसभा चुनाव की रणनीति बना रहे थे, उन्हें अब नए सिरे से सोचना पड़ेगा। फिलहाल तो यह साफ है कि मप्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली जिन्हें हम हिन्दी भाषी राज्य या काऊ बेल्ट भी कहते हैं, इनमें बीजेपी को 2024 के लिए एक नया स्टार प्रचारक मिल गया है।

वैसे केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी मान रखा है और उनके दो करीबी समर्थक विधायक और मंत्री डॉ. राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा को उपमुख्यमंत्री की पदवी से नवाज दिया है। शायद यह फैसला शिवराज सिंह के जख्मों पर मरहम का काम करेगा!

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