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1989 से दमोह सीट पर हार रही कांग्रेस

लोस चुनाव: लोधी समाज का नेतृत्व अधिक रहा, इस बार राहुल v/s तरवर

धीरज जॉनसन- दमोह। बुंदेलखंड की सबसे महत्वपूर्ण लोकसभा सीट दमोह में भाजपा लगातार 34 वर्ष से जीत दर्ज करती आ रही है। इस सीट पर लोधी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। कांग्रेस यह अपना जनाधार लगातार खोती जा रही है। 2014 और 2019 में भाजपा ने प्रहलाद पटेल को चुनाव मैदान में उतारा। वे लगातार जीते और केंद्र में मंत्री बने। पूर्व में इस सीट पर पूर्व राष्ट्रपति वीवीगिरि के बेटे सहित दूसरे जिलोें के नेता चुनाव जीतते रहे हैं। दमोह सीट अपने अस्तित्व 1962 से 1971 तक तो कांग्रेस के पास रही और 1977 में जनता पार्टी की झोली में पहुंचा, 1980 और 1984 में फिर कांग्रेस जीती। इसके बाद से भाजपा का कब्जा बरकरार है।

सीट पर लोधी वोटर्स निर्णायक भूमिका में

जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो इस क्षेत्र में लोधी समाज का नेतृत्व अधिक रहा है। यहां प्रह्लाद पटेल, शिवराज लोधी, चंद्रभान सिंह जीत हासिल करते रहे। इस बार भाजपा ने राहुल सिंह लोधी को मैदान में उतारा है जो पहले कांग्रेस से विधायक रहे और दलबदल के बाद उप चुनाव 2020 में कांग्रेस से हारे थे। अब भाजपा प्रत्याशी राहुल सिंह का मुकाबला कांग्रेस के तरवर सिंह से है, जो बंडा से विधायक (2018) रहे हैं। यह क्षेत्र महाकोशल से लगा हुआ है।

कांग्रेस से भाजपा में गए राहुल उपचुनाव में हारे थे

राहुल लोधी 2018 के चुनाव में दमोह विस क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2020 में मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार गिरने के कुछ महीनों बाद राहुल सिंह लोधी भाजपा में चले गए, जिन्हें कैबिनेट मंत्री दर्जा देकर दमोह विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में अपना प्रत्याशी भी बनाया लेकिन राहुल लोधी कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन से लगभग 17 हजार मतों से चुनाव हार गए थे। दमोह में पहली बार 1962 में चुनाव हुए।

1962 के बाद से कोई महिला प्रत्याशी नहीं

1980 में स्थानीय प्रत्याशी प्रभु नारायण टंडन ने जीत हासिल की । इसके बाद जीत हासिल करने वाले डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया, चंद्रभान सिंह और शिवराज सिंह लोधी भी स्थानीय प्रत्याशी थे। 1962 में सहोद्रा राय सांसद चुनी गई थीं, हालांकि इसके बाद महिला उम्मीदवार या प्रत्याशी इन प्रमुख दलों से दिखाई दी। 1991 से 1999 तक सांसद रहे डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया को जब 2018 में टिकट नहीं मिला तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा।

मुख्य मुद्दे- चिकित्सा रोजगार, जल और सड़क

  • सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है यहां पर कोई उद्योग नहीं होने से हजारों की संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं।
  • संसदीय क्षेत्र में चिकित्सा की सुविधा नहीं है जिससे लोग जबलपुर, नागपुर और सागर इलाज के लिए जाते हैं।
  • संसदीय क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा जलसंकट है। कई परियोजनाएं लंबे समय से चल रही हैं। लेकिन जिले वासियों को जल संकट से निजात नहीं मिली है।
  • जिले में सड़क दुर्घटनाएं बहुत होती है। उसके पीछे वजह यह है कि सड़कों में मोड़ बहुत है। और हालत भी दयनीय है। लोगों में इसी को लेकर आक्रोश है।

पांच लोकसभा चुनावों पर एक नजर

साल             जीते                                                हारे
1999    रामकृष्ण कुसमरिया (भाजपा)         तिलक सिंह लोधी (कांग्रेस)
2004    चंद्रभान (भाजपा)                          तिलक सिंह लोधी (कांग्रेस)
2009     शिवराज लोधी (भाजपा)                 चंद्रभान (कांग्रेस)
2014     प्रहलाद सिंह पटेल (भाजपा)           चौधरी महेंद्र प्रताप सिंह (कांग्रेस)
2019     प्रहलाद सिंह पटेल (भाजपा)            प्रताप सिंह लोधी (कांग्रेस)

दमोह लोकसभा

  • मतदान केंद्र – 2285
  • मतदाता-19,19,510
  • अब तक 15 लोकसभा चुनाव
  • भाजपा को 9 और कांग्रेस को 5 बार मिली जीत
  • महिला प्रबंधन मतदान केन्द्रों की संख्या- 100

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