
Shri Krishna Janmashtami : 16 कला युक्त श्रीकृष्ण का जन्म जीवन और मृत्यु तीनों बड़े रहस्यमय थे। पीपुल्स अपडेट में सुनिए कान्हा के जन्म से लेकर कृष्ण लीलाओं की अद्भुत कहानी। क्यों कान्हा को 16 कलाओं में पारंगत कहा जाता था?
देवकी-वसुदेव की आठवीं संतान
कथा इस प्रकार है कि कृष्ण के अत्याचारी मामा कंस ने अपने पिता राजा उग्रसेन को गद्दी से उतारकर स्वयं मथुरा का राज हथिया लिया था। एक बार जब वे अपनी प्रिय बहन देवकी और उनके पति वसुदेव को ले जा रहे थे तभी आकाशवाणी हुई कि हे कंस! जिस बहन को तू उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसके गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान तेरी मौत का कारण बनेगी।’ आकाशवाणी सुनकर क्रोधित कंस वासुदेव को मारने बढ़ा। तब देवकी ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए कहा कि उनकी जो भी संतान जन्मेगी, उसे वो कंस को सौंप देंगी। कंस ने बहन की बात मान कर दोनों को कारागार में डाल दिया। मैं नूपुर शर्मा पीपुल्स अपडेट में आपको बता रही हूं कृष्ण जन्म की ये कथा।
रोहिणी नक्षत्र में हुआ श्रीकृष्ण का जन्म
कृष्णावतार के समय पृथ्वी से अंतरिक्ष तक समूचा वातावरण सकारात्मक और सुरम्य हो गया। प्रकृति, पशु पक्षी, देव, ऋषि, किन्नर सभी हर्षित और प्रफुल्लित थे। श्रीकृष्ण ने योजनाबद्ध रूप से पृथ्वी पर मथुरापुरी में अवतार लिया। द्वापर युग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात में सबसे शुभ लग्न और रोहिणी नक्षत्र में बुधवार के दिन उनका जन्म हुआ। जन्म के समय शंखनाद के साथ चारों ओर प्रकाश फैल गया, भगवान श्रीनारायण ने दिव्य रूप में देवकी और वसुदेव को दर्शन दिए। 7 बच्चों की मृत्यु से दुखी वासुदेव और देवकी भगवान के चरणों में गिर पड़े। उनके दुखी जीवन को देखकर ईश्वर ने वापस नवजात शिशु का रूप धारण कर लिया, उनकी माया से कारागार के सभी ताले टूट गए। प्रहरी सो गए। वसुदेव बालकृष्ण को सूप में लेकर गोकुल में अपने मित्र नंदबाबा के घर चल दिए। उस रात घनघोर बारिश के बीच यमुना पूरे उफान पर थी, लेकिन बालकृष्ण के चरण पखारकर यमुना शांत हो गई। जल दो भागों में विभाजित हो गया और बीच में रास्ता बन गया, जिससे होकर वसुदेव गोकुल पहुंचे और कृष्ण को यशोदा के बगल में सुलाकर उनकी कन्या को लेकर कारागार में वापस लौट आए।
कन्या ने कहा- तुझे मारने वाला जन्म ले चुका
जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली, तो वह कारागार में आया और कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा। लेकिन कन्या उसके हाथ से निकल कर आसमान में चली गई। कन्या ने कहा- कंस! तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है। जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड मिलेगा। वह कन्या कोई और नहीं, स्वयं योग माया थीं। सार यही है कि माता पिता को कारागार में रखकर भी कंस कृष्ण को भी समाप्त नहीं कर सका।
इस बारे में एक कथा यह है कि भगवान के द्वारपाल जय विजय एक श्राप के कारण बार बार अधर्मी बनकर जन्म ले रहे थे। जैसा कि कृष्ण गीता में कहते हैं जब जब धर्म का नाश होता है, अधर्म और अत्याचार बढ़ता है तब बुराई की रक्षा और धर्म की स्थापना के लिए वे जन्म लेते हैं। इस रूप में कृष्ण ने कंस, शिशुपाल, वकासुर, शकटासुर, पूतना पौड्रक आदि का अंत किया। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण जन्म की पवित्र कथा का पाठ करने से आनंद के साथ उनकी शिक्षाओं को जीवन में उतारने का अवसर मिलता है।