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सिफारिश के बाद भी जजों के नामों पर फैसला नहीं लेना लोकतंत्र के लिए घातक, रिटायर्ड जस्टिस नरीमन ने रिजिजू को याद दिलाया कर्तव्य

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन ने कॉलेजियम सिस्टम मामले को लेकर कानून मंत्री किरेन रिजिजू पर निशाना साधा है। नरीमन ने शुक्रवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री के ‘‘आक्षेप” के लिए उनकी निंदा की और कहा कि कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित न्यायाधीशों के नामों पर फैसला नहीं लेना लोकतंत्र के लिए ‘‘घातक” है। साथ ही कानून मंत्री को याद दिलाया कि अदालत के फैसले को स्वीकार करना उनका कर्तव्य है।

एक नए अंधकार युग की शुरुआत होगी अगर…

नरीमन ने कहा कि, अगर आपके पास स्वतंत्र और निडर न्यायाधीश नहीं हैं, तो कुछ नहीं बचा है। वास्तव में, मेरे अनुसार, अगर स्वतंत्र न्यायपालिका का आखिरी स्तंभ गिर जाता है, तो हम एक नए अंधकार युग में चले जायेंगे।” फली नरीमन खुद अगस्त 2021 में सेवानिवृत्त होने से पहले कॉलेजियम का हिस्सा थे।

सरकार के जवाब देने की सीमा तय हो

नरीमन ने सुझाव दिया कि, एक बार कॉलेजियम द्वारा किसी न्यायाधीश के नाम की सिफारिश करने के बाद सरकार को 30 दिनों के निश्चित समय के भीतर जवाब देना चाहिए। ‘‘नामों पर फैसला नहीं लेना लोकतंत्र के लिए घातक है। क्योंकि आप केवल यह कह रहे हैं कि आप एक विशेष कॉलेजियम की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि अगला कॉलेजियम अपना विचार बदलेगा। नियुक्ति एक उचित समय अवधि के भीतर की जानी चाहिए। संविधान इसी तरह काम करता है।”

दो बुनियादी संवैधानिक मूलभूत बातें

रीजीजू ने न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी कॉलेजियम प्रणाली पर बार-बार सवाल उठाया है। नरीमन ने कहा, हमने इस प्रक्रिया (न्यायाधीशों की नियुक्ति) के खिलाफ केंद्रीय कानून मंत्री की निंदा सुनी है। मैं कानून मंत्री को आश्वस्त करता हूं कि दो बहुत ही बुनियादी संवैधानिक मूलभूत बातें हैं जिन्हें उन्हें जानना चाहिए।

एक मौलिक बात यह है कि अमेरिका के विपरीत, भारत में कम से कम पांच न्यायाधीशों पर संविधान की व्याख्या के लिए भरोसा किया जाता है। इसलिए, संविधान की व्याख्या करने के लिए इस संविधान पीठ पर भरोसा किया जाता है और एक बार जब वे ऐसा कर लेते हैं, तो एक प्राधिकारी के रूप में यह आपका कर्तव्य है कि आप उस निर्णय का पालन करें।

उन्होंने कहा, ‘‘आप इसकी आलोचना कर सकते हैं…एक नागरिक के तौर पर मैं इसकी आलोचना कर सकता हूं…कोई समस्या नहीं…लेकिन यह कभी न भूलें कि आप एक प्राधिकारी (अथॉरिटी) हैं और एक प्राधिकारी के तौर पर आप सही या गलत के फैसले से बंधे हैं।”

कहां से शुरू हुआ विवाद

पिछले साल नवंबर में रिजिजू ने कहा था कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम प्रणाली संविधान से बिलकुल अलग व्यवस्था है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी दावा किया था कि न्यायपालिका, विधायिका की शक्तियों में अतिक्रमण कर रही है। एक संसदीय समिति ने भी इस पर आश्चर्य जताया था कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच करीब 7 साल बाद भी शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संशोधित प्रक्रिया ज्ञापन (MOP) पर सहमति नहीं बन पाई है।

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