भोपालमध्य प्रदेश

देश में राजस्थान के बाद मप्र हाईकोर्ट में महिलाओं के सबसे ज्यादा मामले, विधि विशेषज्ञ बोले- अधिकारों को लेकर बढ़ी जागरुकता

पुष्पेन्द्र सिंह, भोपाल। राज्यों के उच्च न्यायालयों में राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश दूसरा ऐसा राज्य हैं जहां सबसे ज्यादा महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा है। इनमें ज्यादातर मामले विवाह विच्छेद, पिता की प्रापर्टी पर अधिकार और सरकारी कर्मचारियों से संबंधित हैं। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि कानूनी लड़ाई लड़ने में महिलाएं आगे आ रही हैं। उनमें जागरुकता आई है।

क्या कहते हैं आंकड़े

अदालतों में महिलाओं द्वारा दायर मामलों को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार वर्ष 2014 से 2022 के बीच देश में राजस्थान पहला उच्च न्यायालय हैं जहां महिलाओं द्वारा 61 हजारसे ज्यादा मामले दायर किए गए हैं। इसके बाद मध्यप्रदेश का नम्बर है। दोनों ही राज्यों में सिविल प्रकरण सबसे अधिक हैं। जबकि जिले और उसके अधीन न्यायालयों में दर्ज मामलों के आंकड़े बता रहे कि सबसे ज्यादा प्रकरण आपराधिक हैं। इनमें दहेज हत्या, दहेज, उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, छेड़खानी आदि।

इन पांच उच्च न्यायालयों में सर्वाधिक मामले दायर

(वर्ष 2014 से 2022 तक)

उच्च न्यायालय सिविल दांडिक कुल
राजस्थान 49,832 12,017 61,849
मध्यप्रदेश 46,501 10,818 57,319
बंबई 44,163 7,281 51,444
इलाहाबाद 23,626 15,904 39,530
पंजाब-हरियाणा 14,750 7,138 21,888

अदालतों में मामलों की बढ़ रही पेंडेंसी

इधर, अदालतों में लगातार बढ़ रही पेंडेंसी को लेकर सरकारों की चिंता है। इस समस्या को दूर करने के लिए अदालतों को आधुनिक बनाया जा रहा है। वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई बढ़ाई जा रही है। बावजूद एनजेडीजी के आंकड़े बता रहे कि मध्यप्रदेश में अभीतक 4.29 करोड़ से अधिक मामले पेंडिंग हैं। जबकि 13.51 करोड़ से अधिक मामलों के निराकरण होने की जानकारी दी गई है।

निराकरण और पेंडेंसी को लेकर प्रदेश के टॉप-8 जिले

(सिविल एवं क्रिमिनल) (वर्ष 2015 से 2022 तक की स्थिति)

जिला निराकरण पेंडिंग
इंदौर 7,82,997 2,38,687
जबलपुर 6,70,468 1,38,181
भोपाल 9,66,256 1,27669
ग्वालियर 4,50,818 95,765
रीवा 1,44,082 83,672
उज्जैन 3,78,375 70,217
सागर 3,44,933 63,155
सतना 2,92,229 61,617

स्त्रोत-नेशनल जुडीशियल डाटा ग्रिड (एनजेडीजी)

अदालतों में बढ़ रही पेंडेंसी के ये प्रमुख कारण

  • न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों, सहायक न्यायालय कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या नहीं होना।
  • उलझे हुए मामलों में तथ्यों की जटिलता।
  • साक्ष्यों की प्रकृति।
  • विवेचना की स्थिति, गवाहों का साक्ष्य नहीं दे पाना, नियमों की प्रक्रियाएं।
  • नयायाधीशों के पदों का रिक्त होना, बार बार स्थगन और सुनवाई के लिए मामलों की मॉनीटरिंग।

लव मैरिज के ज्यादा मामले आ रहे

पहले अरेंज मैरिज होती थीं तो वैवाहिक जीवन अच्छा चलता था। अब लव मैरिज होने से कुछ ही दिनों में तलाक की नौबत आ जाती है। सोशल मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे को पंसद करने और फिर ब्लेकमेल करने के भी मामले आ रहे हैं। मेरे पास हर माह औसतन 15 महिलाएं याचिका दायर करने संपर्क करती हैं। सोशल मीडिया का सही उपयोग नहीं हो रहा है।

(भारती शास्त्री, सीनियर एडवोकेट भोपाल)

महिलाएं अपने अधिकारों को लेने आगे आ रहीं

निचली अदालतों के निर्णय से संतुष्ट नहीं होने पर वादी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं। इनमें ज्यादातर सिविल के मामले होते हैं। अगर हाईकोर्ट में महिलाओं के वाद दायर करने की संख्या बढ़ी है तो इसका मतलब यही कि प्रदेश में महिलाओं में कानूनी अधिकार पाने के लिए जागरुकता आई है। यह सही है कि परिवार संबंधी मामलों में बढ़ोतरी है।

(रेणु शर्मा, पूर्व जिला जज)

पेंडेंसी कम करने कोर्ट और जजों की संख्या बढ़े

प्रदेश की अदालतों में लाखों की संख्या में मामले विचाराधीन है। सिविल के प्रकरण सालों साल चलते हैं। हमने केन्द्र सरकार से मांग की है कि प्रदेश में परिवार कोर्ट की संख्या बढ़ाई जाए जिससे महिलाओं को त्वरित न्याय मिल सके।

(शंकर लालवानी, सांसद, इंदौर)

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