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Bhai Dooj 2023 : कैसे हुई थी भाई दूज की शुरुआत? जानें इस पर्व से जुड़ी यमुना और यमराज की कहानी

धर्म डेस्क। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भाई दूज मनाया जाता है। भाई दूज का त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। इस त्योहार को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना के पूजन का विधान है। रक्षाबंधन की तरह ही यह त्योहार भी भाई-बहन के लिए बेहद खास है। भाई दूज पर बहन भाई का टीका करती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। वहीं भाई भी बहन को गिफ्ट देकर अपना प्यार जताते हैं। आइए जानते हैं इसकी तिथि, शुभ मुहूर्त और पौरणिक कथा के बारे में।

भाई दूज 2023 शुभ मुहूर्त

  • तिथि : 15 नवंबर
  • पहला शुभ मुहूर्त : सुबह 6 बजकर 44 मिनट से सुबह 9 बजकर 24 मिनट।
  • दूसरा शुभ मुहूर्त : सुबह 10 बजकर 40 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजे तक। इसके बाद राहुकाल शुरू हो जाएगा।

भाई दूज पूजा विधि

  • स्नान आदि से निवृत्त होकर घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित कर भगवान का ध्यान करें।
  • श्री गणेश और श्री हरी विष्णु की पूजा करें।
  • भाई के लिए पिसे हुए चावल से चौक बनाएं।
  • इसके बाद भाई के हाथों पर चावल का घोल लगाएं।
  • फिर भाई को तिलक लगाएं।
  • तिलक लगाने के बाद भाई की आरती उतारें।
  • अब भाई के हाथ में कलावा बांधें और उसे मिठाई खिलाएं।
  • अब भाई को हाथ में नारियल दें और फिर भोजन कराएं।
  • बहन को उपहार में भाई को कुछ न कुछ जरूर देना चाहिए।

 

भाई दूज पर तिलक का विशेष महत्व

तिलक लगाना विजय, वीरता और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार तिलक लगाने से व्यक्ति की स्मरण शक्ति बढ़ती है। चावल को तिलक पर रखने से मन को शांति मिलती है। अक्षत चंद्रमा का प्रतीक है। इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाते हैं। उन्हें कलह, बदनामी, शत्रु, भय आदि का सामना नहीं करना पड़ता है। उनके जीवन में धन, प्रसिद्धि, आयु और शक्ति में बढ़ोतरी होती है।

भाई दूज के दिन भाइयों को तिलक लगाने का विशेष महत्व है। मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन सबसे पहले यमुना ने अपने भाई यमराज को तिलक लगाया था। इस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि के लिए तिलक लगाती हैं।

भाई दूज की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संध्या की संतान धर्मराज यम और यमुना थे। लेकिन भगवान सूर्य के तेज को सहन न कर पाने के कारण उनकी पत्नी संध्या देवी अपनी संतानों को छोड़ कर मायके चली गईं। जाते समय अपनी प्रतिकृति छाया को भगवान सूर्य के पास छोड़ गईं। यमराज और यमुना छाया की संतान न होने के कारण मां के प्यार से वंचित रहते थे। दोनों ही भाई बहन में आपस में खूब प्यार था। यमुना की शादी होने बाद वे भाई यम को कई बार अपने घर बुलाया करती थी, लेकिन वे नहीं जाते थे। एक बार काफी समय बाद धर्मराज यम बहन के लगातार बुलाने पर यम द्वितीया के दिन उनके घर पहुंचे। भाई के घर आने की खुशी में यमुना ने भाई का खूब सत्कार किया। उन्हें तिलक लगाकर पूजन किया।

यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वरदान मांगने का आदेश दिया। यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैया दूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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