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बांग्लादेश से लौटे छात्रों ने बताए हालात : कहा- वहां के लोगों ने मदद की, पुलिस ने रात के अंधेरे में बॉर्डर तक छोड़ा

आंदोलन तेज हुआ तो कॉलेज प्रबंधन ने पासपोर्ट लौटाते हुए वहां से निकलने की व्यवस्था की, पुलिस ने रात के अंधेरे में बॉर्डर तक छोड़ा

प्रवीण श्रीवास्तव, भोपाल। बांग्लादेश में उग्र आंदोलन और हिंसा जारी है। इसके बीच बांग्लादेश से सैकड़ों भारतीय छात्रों को अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर अपने देश लौटना पड़ा। छात्रों की ये वतन वापसी आसान नहीं रही। बिगड़े हालात के बीच स्थानीय लोगों ने भारतीय छात्रों को बाहर निकालने में मदद की। वतन लौटने वालों में ज्यादातर छात्र वहां मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। इन छात्रों ने पीपुल्स समाचार से वहां के हालात साझा किए। इन छात्रों का कहना है कि भारतीय दूतावास और स्थानीय पुलिस के सामंजस्य के चलते वे समय से अपने देश पहुंच चुके।

पुलिस ने बॉर्डर तक पहुंचाया

बांग्लादेश के मानिकगंज जिले में एमबीबीएस थर्ड ईयर के छात्र मोहम्मद जैद अंसारी ने बताया कि वहां आंदोलन की शुरुआत जुलाई के पहले हफ्ते में हो गई थी। हालांकि उस समय आंदोलन ढाका तक सीमित था। हमारे कॉलेज में इंडिया के साथ नेपाल के 200 छात्र थे। आंदोलन न सिर्फ धीरे-धीरे हिंसक हो गया बल्कि ढाका से पूरे देश में फैल गया। 15 जुलाई को अफवाह उड़ी कि राष्ट्रपति शेख हसीना देश छोड़कर स्पेन चली गई हैं। इसके बाद वहां आंदोलन तेज हो गया। इंटरनेट बंद हो गया और हम किसी से बात नहीं कर पा रहे थे। आंदोलन तेज हुआ तो कॉलेज प्रबंधन ने हमारे पासपोर्ट लौटाकर देश लौटने की व्यवस्था की। कॉलेज वार्डन ने स्थानीय पुलिस से बात इंडियन और नेपाल एंबेसी के माध्यम हमारे लौटने व्यवस्था की। हम सभी 200 छात्रों को  20 गाड़ियों में दर्शना बॉर्डर भेजा गया। हमारी गाड़ियों के आगे पीछे और बीच में पुलिस एस्कॉर्ट चल रहा था। दर्शना बॉर्डर से हमें दोनों एंबेसी की मदद से कोलकाता, मणिपुर और अन्य शहर पहुंचाया गया। वहां से हम घर लौट सके। मो.जैद शहर के चिकित्सक डॉ. मो. तनवीर के बेटे हैं।

आधी रात को निकले, नदी से पार किया बॉर्डर

बिहार के रहने वाले देबाशीष मोइत्रो ने एक मित्र के माध्यम से बताया कि बांग्लादेश ब्राह्मणबेरिया जिले में मेडिकल कॉलेज में थर्ड ईयर के छात्र हैं। यह जिला ढाका से दूर है, इसलिए यहां आंदोलन देर से पहुंचा। हालांकि 10 दिन पहले यहां प्रदर्शन होने लगे थे। आंदोलन बढ़ने लगा को बांग्लादेश के सीनियर्स ने हमें सुरक्षित निकलने में मदद की। आधी रात को पुलिस की गाड़ियों में अगरतला-अंखोरा चैकपोस्ट पर छोड़ा गया। यहां से हमने जेट्टी से नदी पार की और भारत आए। देबाशीष ने बताया कि अब भी उनके कई सीनियर्स बांग्लादेश में ही अस्पताल में काम कर रहे हैं।

आखिर छात्र क्यों जाते हैं बांग्लादेश

जो छात्र देश में एमबीबीएस नहीं कर पाते वे यूक्रेन, चाइना, कजाकिस्तान के साथ बांग्लादेश के कॉलेजों से मेडिकल की डिग्री लेते हैं। बांग्लादेश के एमबीबीएस का खर्च 30 से 40 लाख रुपए के बीच आता है, जबकि भारत में यह एक करोड़ तक पहुंच जाता है। भारत से बांग्लादेश आना जाना आसान है। साथ ही बांग्लादेश में रहने वाले भारतीय छात्रों को खानपान की अधिक समस्या नहीं होती हैं। बांग्लादेश का मुख्य भोजन मांस-मछली है। वहीं शाकाहारी भोजन की बात करें तो यहां दाल चावल आसानी से मिल जाता है। ऐसे में भारतीय स्टूडेंट्स के लिए परेशानी नहीं आती।

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