
नई दिल्ली। अमेरिकी प्रशासन के ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स (जीपीयू) के आयात पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्तावित नियम देश के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) मिशन को प्रभावित कर सकते हैं। बता दें कि भारी एआई मॉडल्स और अनुप्रयोगों को चलाने के लिए जीपीयू जरूरी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, उन्नत एआई चिप्स तक सीमित पहुंच नवाचार और विकास की प्रक्रिया को धीमा कर सकती है। लाइसेंसिंग संबंधी अनिवार्यताओं की वजह से लागत में बढ़ोतरी और विलंब हो सकता है।
नियम लागू पर संशोधनों के लिए खुला है रास्ता
13 जनवरी को जारी किए गए इस नियम की वजह से कंपनियों को अनुपालन में अधिक जटिलताओं का सामना करना पड़ेगा। यह नया ढांचा तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है, हालांकि इसमें संभावित संशोधनों के लिए सार्वजनिक टिप्पणियां आमंत्रित की गई हैं। सरकारी अधिकारियों ने इस कदम को बेहद कठोर बताया है, क्योंकि इससे देश का एआई मिशन अब देश के कुल कंप्यूट पावर कैप के तहत आ गया है, जिसके लिए लाइसेंस के लिए आवेदन करना होगा।
भविष्य में होगी और जीपीयू की जरूरत
नए नियमों के तहत, देश-विशेष की सीमा 50,000 जीपीयू या उनके समकक्ष क्षमता पर तय की गई है। भारत वर्तमान में एआई मिशन के तहत लगभग 10,000 जीपीयू का उपयोग कर रहा है, लेकिन भविष्य में यह संख्या बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी। हालांकि, बड़े एआई डेटा सेंटर्स, जिन्हें सैकड़ों हजारों जीपीयू की जरूरत होती है, अब या तो विलंबित हो सकते हैं या उनके पैमाने को घटाया जा सकता है।
रिलायंस इंडस्ट्रीज की योजना को झटका
मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एनविडिया के सबसे उन्नत जीबी 200 जीपीयू का उपयोग करके 24 महीनों में भारत का सबसे बड़ा एआई डेटा सेंटर बनाने की योजना बनाई है। रिलायंस ने हाल ही में एनविडिया को आर्डर प्लेस किया है। जीबी 200 जीपीयू अपने पूर्ववर्ती एच100 से छह गुना अधिक शक्तिशाली है।
अन्य कंपनियों पर प्रभाव
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही रिलायंस जीपीयू को सुरक्षित कर ले, लेकिन उनकी मात्रा सीमित हो सकती है, जिससे परियोजना में देरी हो सकती है। यह नियमन टाटा कम्युनिकेशंस, योट्टा डेटा सर्विसेज, ई2ई नेटवर्क और कंट्रोलएस जैसे डेटा सेंटर प्रदाताओं को अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले नुकसान में डाल सकता है, जो एआई क्लाउड कंप्यूटिंग पेशकश के लिए विस्तार कर रहे हैं।
इसके अलावा, लाइसेंसिंग प्रक्रिया से नौकरशाही बाधाएं और लागत बढ़ने की भी संभावना है, जिससे जीपीयू क्लस्टर्स के विकास में और देरी हो सकती है। साथ ही, यह भी अनिश्चितता बनी हुई है कि बड़े और छोटे देशी कंपनियों के बीच समान वितरण और प्रतिस्पर्धा को कैसे संतुलित किया जाएगा।
तीन समूहों में बंटा दुनिया का एआई चिप एक्सेस
नियमों के तहत, दुनिया को तीन समूहों में विभाजित किया गया है। पहले समूह में एआई चिप्स तक बिना किसी प्रतिबंध के पहुंच है। दूसरे समूह में चीन, रूस, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे 23 देश हैं, जिन्हें कोई पहुंच नहीं होगी। शेष 140 देशों, जिनमें भारत भी शामिल है, के लिए 50,000 उन्नत जीपीयू (लगभग 1 अरब डॉलर के बराबर) की सीमा लागू होगी।
बड़े एआई मिशनों पर क्या होगा असर
यह नियम देश के एआई हार्डवेयर पर बड़े पैमाने पर निवेश और विकास की योजनाओं को चुनौती दे सकते हैं। हालांकि, छोटे स्तर के सेटअप अब भी सीमित नवाचार और प्रयोग में सक्षम हो सकते हैं। लेकिन बड़े एआई मिशनों के लिए नए नियमों से पैदा हुई अनिश्चितताएं देश की महत्वाकांक्षाओं को धीमा कर सकती हैं।
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