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आंखों के डॉक्टर कर रहे ड्रेसिंग,तो लेडी डॉक्टर कर रहीं हैं सर्पदंश का उपचार

भोपाल। जिला अस्पतालों में आपको आंख के डॉक्टर हड्डी का इलाज करते मिलें या लेडी डॉक्टर सांप के काटे का इलाज कर रही हो तो चौंकना लाजिमी है, लेकिन यह हकीकत है। दरअसल, यह स्थिति जिला अस्पतालों में पीजी छात्रों को तीन-तीन महीने की अनिवार्य ट्रेनिंग के पदस्थ किए जाने से बनी है। इन मेडिकल छात्रों को जिला अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए तैनात किया गया है। एमडी/एमएस में अध्यनरत एवं वर्ष 2021 मे प्रवेश प्राप्त करने वाले 1,284 पीजी डॉक्टरों की चरणबद्ध ड्यूटी लगाई गई है। इस कार्यक्रम को चार सत्रों में बाटा गया है। जिससे मेडिकल कॉलेजों में जूनियर डॉक्टर्स की कमी न हो। इन छात्रों की पोस्टिंग से पहले उनके विभागों का ध्यान नहीं रखा गया।

छात्रों का तर्क : जो सीखा है, तीन महीने में भूल जाएंगे: छात्रों का कहना है कि मेडिकल कॉलेजों में वार्ड में 30 से 35 घंटे तक ड्यूटी करते हैं। कई जिला अस्पतालों में व्यवस्थाएं नहीं हैं। जो मरीज मेडिकल कॉलेज में आते हैं, वो जिला अस्पतालों में नहीं आते। ऐसे में तीन महीने तक हम अपने कोर्स से दूर रहेंगे। तीन महीने प्रेक्टिकल न करने से जो सीखा है, वह भी भूल जाएंगे।

विभाग का तर्क: अलग-अलग स्थिति में काम करने का अनुभव मिलेगा: अफसरो  का तर्क है कि इसका उद्देश्य जिला अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी को दूर करना है। साथ ही पीजी कर रहे छात्रों को भी अलग -अलग स्थिति में काम करने का अनुभव मिलेगा। जिला अस्पतालों में भी जूनियर डाक्टरों की सेवाएं ओपीडी, सहित अन्य यूनिट में मिल सकेगी।

बिना कंसल्टेंट नहीं लगा सकते ओपीडी: विशेषज्ञों का कहना कि बिना पीजी कम्पलीट किए कोई भी डॉक्टर विशेषज्ञ ओपीडी नहीं चला सकता। एमबीबीएस डॉक्टरों को इतना अनुभव नहीं होता कि वह विशेषज्ञ उपचार कर सकें।

डिस्ट्रिक्ट रेजिडेंसी प्रोग्राम

पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेग्युलेशन एक्ट 2020 के तहत डिस्ट्रिक्ट रेजिडेंसी प्रोग्राम को तैयार किया गया। इसे एक अक्टूबर 2022 से पूरे राज्य में लागू किया गया। इसके तहत मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले एमडी, एमएस के छात्रों को 3 माह तक जिला अस्पताल में अनिवार्य रेजिडेंन्सियल रोटेशन कोर्स पूरा करना होगा। 2021 के बाद मेडिकल कॉलेजों की पीजी स्ट्रीम में दाखिला लेने वाले स्टूडेंट्स पर यह लागू होगा।

अब तक इनकी लगाई गई ड्यूटी: अप्रैल से जून 2023 के पहले बैच के जूनियर डॉक्टर विभिन्न जिला अस्पताल में सेवाएं देने लगे हैं। इनमें एनेस्थीसिया के 33, सामुदायिक चिकित्सा के 15, ईएनटी के 15, जनरल मेडिसिन के 37, जनरल सर्जरी के 35, स्त्री एवं प्रसूति रोग के 39, नेत्र रोग के 15, अस्थि रोग के 28 और शिशु रोग के 15, पैथोलॉजी के 21, रेडियोडायग्नोसिस के 20 और छाती व श्वांस रोग विभाग के 10 छात्र शामिल हैं।

 

केस-1

गांधी मेडिकल कॉलेज के ऑर्थोपेडिक्स और गायनिक विभाग के पीजी छात्रों को ट्रेनिंग के लिए हरदा जिला अस्पताल भेजा गया। यहां दोनों विभागों के वरिष्ठ चिकित्सक नहीं है।

केस-2

होशंगाबाद जिला अस्पताल में गायनिक और एनस्थीसिया के छात्रों को भेजा गया। यहां ओटी में काम नहीं होता ऐसे में छात्र स्नैक बाइट, बुखार के मरीजों को देख रहे हैं।

केस-3

राजगढ़ में पीडियाट्रिक, पैथोलॉजी, ईएनटी विभाग के छात्रों की ड्यूटी लगाई गईं। वहां तीनों विषयों में काम नहीं होता। ऐसे मे यह मेडिकल ऑफिसर का काम कर रहे हैं।

यह योजना छात्र और जिला अस्पताल दोनों के लिए लाभकारी है। इससे जिला अस्पताल में डॉक्टरों की कमी दूर होगी। मरीजों को विशेषज्ञ डॉक्टरों की सेवाएं मिल सकेंगी। -डॉ. प्रभुराम चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री

(इनपुट – प्रवीण श्रीवास्तव)

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