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दागी खाकी के खिलाफ पुलिस विभाग की कार्यवाई सख्त, न्यायोचित क्यों नहीं?

जितेंद्र सिंह यादव इंदौर। कॉलेज परिसर में जिंदा जलाकर मौत के घाट उतार दी गई प्रिंसिपल विमुक्ता शर्मा हों या बीएससी का दलित छात्र आकाश बाड़िया। दोनों ही मामलों की तह में जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों की भूमिका ने खाकी को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अमानवीयता की हदों को पार करते सामने आए दोनों मामलों में दागी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ महज आंशिक कार्यवाही ही हुई है। देखने में ये भी आया है कि पुलिस के खिलाफ पुलिस की कार्यवाही पर भी असंतोष के सवाल उठते रहे हैं।

गैर इरादतन हत्या , महज लाइन अटैच

एसपी ग्रामीण भगवंत सिंह बिरदे ने बताया, ‘महिला प्राचार्य की मौत के बाद उन दो थाना प्रभारियों धर्मेंद्र शिवहरे और आरएनएस भदौरिया को लाइन अटैच कर दिया गया है, जिन्हें मृतक महिला प्राचार्य ने जीवित रहते बीते एक वर्ष में चार आवेदन देकर आरोपी छात्र के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। इसी क्रम में एक एएसआई संजीव तिवारी को निलंबित भी किया गया है।’ सवाल ये है कि सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष जिम्मेदारों की लापरवाही से एक महिला की मौत हो गई जबकि इसी मामले में एक 24 वर्ष का नवयुवक छात्र हत्या जैसा संगीन अपराध कर बैठा । क्या ऐसे मामलों में आरोपी अधिकारियों को महज कुछ समय के लिए लाइन हाजिर किया जाना और निलंबित किये जाने जैसी शॉर्ट टर्म पनिशमेंट क्या न्यायोचित है ?

रखवालों की निगाह में प्रेम गुनाह है !

अधिवक्ता नीरज सोनी के मुताबिक ‘छात्र आकाश बाड़िया का गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने एसआई विकास शर्मा की परिचित लड़की से प्रेम किया और दोनों रजामंदी से विवाह करने वाले थे। सबक सिखाने और बदले की भावना से एसआई शर्मा ने आकाश को अवैधानिक रूप से लॉकअप में बंद किया और इतना टॉर्चर किया कि उसने प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। आरोप है कि जब ये सब हो रहा था तब थाना प्रभारी दिलीप पुरी ने अपनी आंखें मूंद रखी थीं। दोनों के अमानवीय कृत्यों पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने जांच भी की और हैरानी इस बात की है कि दोनों को क्लीनचिट भी दे दी थी। पीड़ित के परिजनों की फरियाद पर एक वर्ष न्यायालय ने गुणदोष पर विवेचना की और हाल ही में दोनों अधिकारियों के खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं।

बगैर एफआईआर पुलिस जांच अवैधानिक !

विधि विशेषज्ञ एन एल तिवारी की माने तो ‘कुछ विशेष मामलों को छोड़कर शिकायतों पर न्यूनतम शून्य पर एफआईआर किये बगैर जांच करने को न्यायालयीन कार्य पर अतिक्रमण मानते हैं। बिगड़ते हालातों पर सुधार को लेकर वे कहते हैं कि खाकी के दागियों के मामलों में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच समिति या आयोग का जिला स्तर पर गठन किया जाना चाहिए। दरअसल पुलिस के पास असीमित शक्तियां हैं। सक्षम निगरानी तंत्र के अभाव में इनका बेलगाम होना और कई मामलों में भक्षक बन जाना लाजमी है।’

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