
विकास शुक्ला, भोपाल। देश के वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक व जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल राम कुमार चतुर्वेदी का कहना है कि भूकंप लोगों को नहीं मारता, बल्कि आदमी की मूर्खता से अधिक तबाही होती है। क्या वजह है कि जापान में 9.2 तीव्रता वाला शक्तिशाली भूकंप भी उतनी तबाही नहीं मचाता जितना जान-माल का नुकसान दूसरी जगह रिक्टर पैमाने पर 6-7 तीव्रता वाला भूकंप कर देता है। तुर्की के भूकंप ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया, 28 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। हमें तुर्की, इंडोनेशिया और अपने देश में जबलपुर, भुज और लातूर के जलजले से सबक लेकर जरूरी उपाय सुनिश्चित करना चाहिए। यह दुर्भाग्य ही है कि भू-वैज्ञानिकों की रिसर्च और रिपोर्ट पर अपेक्षित गंभीरता नजर नहीं आती।
वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक चतुर्वेदी पीपुल्स समाचार के दफ्तर में बतौर ‘ गेस्ट इन द न्यूज रूम ‘ उपस्थित थे। लंबी चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि भूकंप को हम रोक नहीं सकते, नुकसान जरूर कम कर सकते हैं, यह कब और कहां आएगा, यह पता लगाने का भी कोई पैमाना नहीं। उन्होंने भूकंप सहित जीवंत गृह पृथ्वी की हलचल, नर्मदा के बांध और कितने सुरक्षित हैं मप्र के शहर, जैसे कई सवालों के जवाब सरल शब्दों में समझाए। उनसे हुई चर्चा के अंश….
भूकंप क्या हैं और यह किन कारणों से आते हैं?
चतुर्वेदी : पृथ्वी एक जीवंत गृह है। यह बिल्कुल फुटबॉल की तरह प्लेट्स से जुड़कर बनी है। ऊपर के हिस्से की मोटाई 7 से 8 किमी से लेकर 100 से 125 किमी तक है। इसके अंदर थिक लिक्विड और हैवी मेटल हैं। इन सबके बीच कुछ न कुछ हलचल हमेशा होती रहती है, जिससे अंदर प्रेशर इकट्ठा होता है। जब यह प्रेशर बहुत अधिक हो जाता है तो रिलीज होकर झटका देता है। इससे प्लेट्स खिसकती हैं और यही भूकंप की वजह बनती है।
तुर्की में भूकंप क्यों आया?
चतुर्वेदी: तुर्की एक ऐसा क्षेत्र है, जहां से तीन टेक्टोनिक प्लेट्स गुजरती हैं। एक तरफ अरेबियन प्लेट, दूसरी तरफ अफ्रीकन प्लेट और नॉर्थ में यूरेशियन प्लेट है। तीन बड़े टुकड़ों के बीच में छोटा सा प्लेट का टुकड़ा फंसा है। यहीं पर तुर्की है। इस भूकंप में सर्वाधिक मूवमेंट अरेबियन प्लेट पर था। यहां एक प्लेट के टुकड़े ने धक्का मारा तो पूरी तुर्की और सीरिया हिल गया। तुर्की में इतना शक्तिशाली भूकंप1822 के बाद आया है।
क्या भूकंप का अनुमान लगाया जा सकता है?
चतुर्वेदी: पृथ्वी का क्या व्यवहार होगा, कितना प्रेशर कहां बनेगा यह बताना अभी हमारे बस में नहीं है। हालांकि, सिस्मो टेक्टोनिक मैप में हमने कुछ एरिया को रेड लाइन से मार्क कर रखा है। इसमें पता रहता है कि कहां प्लेटें एक दूसरे से टकराने की आशंका रहती है। एक्टिव लाइन्स में भी अगर मेजर फॉल्ट लाइन जहां एक दूसरे को क्रॉस करते हैं, वह क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं। हालांकि, पक्षियों की गतिविधियां भूकंप से पहले थोड़ी बदल जाती हैं।
क्या मप्र में नर्मदा बेल्ट भूकंप के लिए संवेदनशील है?
चतुर्वेदी: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने सिस्मो टैक्टोनिक मैप आफ इंडिया तैयार किया है। इसमें एक्टिव फॉल्ट वाले एरिया को मार्क किया गया है। एक्टिव फॉल्ट आते हैं और खत्म हो जाते हैं। यह घावों की तरह होते हैं। मप्र में एक्टिव लाइन सोन – नर्मदा लीनीमेंट कहलाती है। यह भरूच (गुजरात) से होते हुए जबलपुर को कनेक्ट करते हुए डेहरी ऑन सोन से होते हुए मेघालय से होते हुए पूरे इंडिया को क्रॉस करके निकल जाती है।
जब एक्टिव फॉल्ट पता हैं तो इंतजाम क्यों नहीं होते?
चतुर्वेदी : भू वैज्ञानिक समय-समय पर सरकार को रिपोर्ट भेजते हैं। ये हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे डेटा को समझने के लिए कोई नहीं है। मैंने हिमालय में 11 साल काम किया। वहां के ग्लेशियरों पर एक टेक्निकल रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया गया था कि कैसे ग्लेशियर पिघलने से लेक बन सकती हैं। इनके टूटे से डाउन स्ट्रीम में त्रासदी हो सकती है। यह इसीलिए सबमिट की गई थी ताकि त्रासदी से बच सकें।
भूकंप से नर्मदा के बांध कितने सुरक्षित हैं?
चतुर्वेदी : जब कोई डैम बनता है, तब जीएसआई डिपार्टमेंट से सर्टिफिकेशन रिपोर्ट ली जाती है। इसके बिना डैम नहीं बनता है। डैम की नींव, पानी का रिसाव, गैलरी आदि में जांच होती है। जबलपुर के भूकंप से बरगी में डैमेज इसलिए भी नहीं हुआ क्योंकि यहां फॉल्ट उतना एक्टिव नहीं था।
Mp में तमाम छोटे-छोटे भूकंप आए, क्या यहां खतरा अधिक है?
चतुर्वेदी : फॉल्ट लाइन जहां भी हैं, वहां प्रेशर बनता रहता है। मूवमेंट चलता रहेगा। लेकिन थोड़ा-थोड़ा कर एनर्जी रिलीज हो जाना अच्छी बात है, कयोंकि रुकी हुई एनर्जी कभी न कभी रिलीज होगी और उतना बड़ा नुकसान करेगा। जबलपुर में आने वाले 25-30 साल में भूकंप जरूर आएगा।
सबसे ज्यादा भूकंप कहां और क्यों आते हैं?
चतुर्वेदी : प्रशांत महासागर सिकुड़ रहा है। इसके कारण जापान, फिलीपींस के पास एक थ्रस्ट (धरती के ऊपर का पार्ट) के नीचे दूसरा हिस्सा जा रहा है। यही वजह है कि सबसे बड़े भूकंप वहीं आते हैं। जापान में 2011 में 9.1 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था।
भूकंप की तीव्रता कैसे पता चलती है?
चतुर्वेदी : इसके लिए इंटेंसिटी स्केल का इस्तेमाल किया जाता है। जितनी इंटेंसिटी से भूकंप आता है, उतना नुकसान होता है। एक और फैक्टर मैग्नीट्यूड होता है। यानी भूकंप का केंद्र कितनी गहराई में था। अगर भूकंप का केंद्र 100 किमी की गहराई पर है तो कम प्रभाव होगा। यदि यह केंद्र 10 किमी है तो छोटे एरिया में नुकसान होगा, लेकिन बहुत अधिक होगा।
भूकंप का ज्यादा नुकसान किसे होता है?
चतुर्वेदी : एक 100 साल पुरानीकच्ची बिल्डिंग है, वह तो जरा से झटके में गिर जाएगी। RCC के जो पूरे पक्के कंस्ट्रक्शंस हैं, उनमें झटकों की संभावना कम होती है। पिरामिड की तरह सही आर्किटेक्ट बना है, नीचे का बेस मोटा और ऊपर हल्का है तो इमारतें गिरने की संभावना नहीं होती। आप जापान का उदाहरण देख सकते हैं, जहां 9.2 का भूकंप भी नुकसान नहीं पहुंचाता है। भूकंप आदमी को नहीं मारता है। आदमी ही आदमी को मारता है, उसकी मूर्खता आपको मारती है।
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